ब्यूरो रांची : हरे-भरे पेड़-पौधों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। पेड़ों की कटाई के कारण वन परिक्षेत्र कम होता जा रहा है। पहले जंगल काफी हरे-भरे हुआ करता था, लेकिन इसमें आज कमी आ चुकी है। वही एशिया का सबसे बड़ा साल के जंगल क्षेत्र को कृषि जोन न बनाकर स्पेशल इकोनॉमी जोन बनाने के नाम पर बर्बाद किया जा रहा है. देशी व विदेशी कम्पनियां व बडे़ पूंजीपति घरानों ने सारंडा की खनिज सम्पदा को कृषि जोन की बजाय स्पेशल इकोनॉमी जोन बनाकर, उनका सर्वांगीण विकास व रोजगार से जोड़ने और ऐसा सब्ज बाग दिखाया की आज उसकी तमन्ना हीं नहीं रही. आज सारंडावासी एक बार पुनः सारंडा को स्पेशल इकोनॉमी जोन के बजाय कृषि जोन बनाने की दिशा में न सिर्फ अग्रसर हैं, बल्कि सरकार, वन विभाग व अन्य प्रशासनिक अधिकारियों से सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने की मांग कर रहे हैं.
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डेढ़ दशक पूर्व लौह अयस्क का जब बूम था, तब दर्जनों बाहरी कम्पनियां सारंडा में लौह अयस्क की खनन हेतु आए. खदान का लीज अथवा खदान विस्तारीकरण के लिए आयोजित लोक सुनवाई व ग्राम सभा को सफल बनाने और रोजगार व विकास से जुड़े अनेक लोक लुभावन वादे सरकारी रिकार्ड में दर्ज कराए. दशकों तक सारंडा की खनिज सम्पदा को लूटकर चलते बने. लेकिन सारंडा के ग्रामीणों की न तो स्थिति सुधरी, न हीं गांवों का विकास हो सका. विभिन्न कम्पनियों ने सारंडा में सड़कें, अस्पताल, आवासीय विद्यालय, शुद्ध पेयजल, कृषि की सुविधा, स्वरोजगार, तकनीकी शिक्षा आदि तमाम तरह के सब्जबाग दिखाए लेकिन कार्य कुछ नहीं किया. उल्टे उनके खेतों को लाल मिट्टी व मुरूम से भर बंजर कर गए, तरह तरह की बीमारियां दे गए.