रांची : झारखंड में राजधानी रांची से लेकर सुदूरवर्ती ग्रामीणों क्षेत्रों तक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं अक्सर सामने आती रहती है। हाल तो ऐसा है कि अक्सर ही खबरों के माध्यम से ऐसे नजारे सामने आते रहते है।
कहीं एंबुलेंस न होने की वजह से ठेले पर शव को ले जाया जाता है।तो कभी राज्य में चिकत्सकों के कमी के कारण मरीजों को अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ते है। पर्याप्त बेड नहीं होने के कारण जमीन पर मरीजों का इलाज किया जाता है।
कई बार तो चिकत्सकों और इलाज में लापरवाही की वजह से जच्चा और बच्चा दोनो को जान गवानी पड़ती है।वहीँ राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स की बात करें तो, रिम्स में आयेदिन जाँच मशीन खराब रहती हैं। वहीँ पैथ लैब की स्थिति भी दनिय है और पारा मेडिकल स्टाफ की भारी कमी है।
स्वास्थ्य कर्मियों में सेवा के प्रति उत्साह का भी अभाव है। सरकारी अस्पतालों में दवाइयों का अभाव रहता है। इस तरह की परेशानियों से लगातार लोगों को सामना करना पड़ता है ।
अगर इन स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने की बात कि जाए तो झारखंड के लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपल्ब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार से जो राशी मिल रही है राज्य सरकार उसे खर्च करने में भी फिसड्डी साबित हो रही है ।
गत 5 सालों में झारखंड सरकार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से मिली राशी में से 58.75 प्रतिशत ही झारखंड हेल्थ मिशन खर्च कर सका है।लगभग 42 प्रतिशत राशी का उपयोग ही नहीं किया गया।
वहीं स्वास्थ्य विभाग के अपर सचिव अरूण कुमार एक्का ने भी इसे लेकर नाराजगी जाहिर की है।उन्होने कहा की 5 सालो में एनएचएम् द्वारा लगभग 3286.36 करोड़ रूपये खर्च नहीं किया जा सका है।
जिसका परिणाम राज्य के लोगों को स्वास्थ्य संबंधित कई मूलभूत सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाया है ।स्वास्थ्य व्यव्स्था सुदृढ़ नहीं होने के कारण ना जाने कितने लोगों को जिंगदी से हाथ धोना पड़ा है।
लेकिन बड़ा सवाल तो ये है कि आखिर स्वस्थ्य सुविधाएँ सही तरह से राज्य की जनता को ना दे पाने का जिम्मेदार आखिर है कौन?
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