ये जलप्रलय क्यों

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हाल तक देश के ज्य़ादातर इलाकों में गर्मी से लोग परेशान हो रहे थे। कई इलाकों में गर्मी लगातार अपने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ रही थी। लेकिन अचानक मानसून का आगमन हुआ। मौसम खुशगवार होने की उम्मीद थी, लेकिन यह क्या। खुशगवार होने के बदले मौसम ने कहर ढाना शुरू कर दिया है। जिस बारिश का इंतजार हो रहा था आज वही आफत बन गई है। मकान ढह रहे हैं, पहाड़ दरक रहे हैं।

दिल्ली, हिमाचल, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा व गुजरात जैसे राज्यों में जल-प्रलय हो चला है। ऐसे में आम जन के दिमाग में एक ही सवाल है कि आखिर इतनी मात्रा में अचानक बारिश कैसे शुरू हो गई। जाहिर है कि इस सवाल से सबकी चिंता बढ़ी है। वैज्ञानिकों की राय है कि इस अतिवृष्टि का कारण ग्लोबल वार्मिंग है। लेकिन यह शब्द ही इतना गोलमटोल है कि इसको परिभाषित कर पाना सहज नहीं है।

दरअसल ग्लोबल वार्मिंग को समझने के लिए बस इतना बताना ही काफी है कि जिस तरह इंसानों ने लगातार पेड़-पौधों की कटाई शुरू की है तथा जिस तरह प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग किया जा रहा है, उससे वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ती जा रही है। कार्बन डाइ ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड के अलावा मिथेन तथा क्लोरोफ्लोरो समूह की गैसों के लगातार उत्सर्जन से वायुमंडल में दबाव बनता जाता है। दरअसल कुदरत ने बड़ा ही अनोखा संतुलन बना कर रखा है जिसमें दिनभर सूरज की ओर से जितनी ऊर्जा धरती को दी जाती है, उसका आधा ही धरती खपत कर पाती है।

बाकी बची ऊर्जा का 23 फीसदी भाग वायुमंडल में चला जाता है और शेष ऊर्जा फिर से अंतरिक्ष या महाकाश को भेज दी जाती है। इसी सिद्धांत पर कुदरत का खेल लगातार चलता रहता है।

लेकिन ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव से वायुमंडल की सबसे निचली परत में एक छतरी जैसे बन जाती है जो धरती की खपत के बाद बची ऊर्जा को अंतरिक्ष में लौटने नहीं देती। जो ऊर्जा दुबारा लौट नहीं पाती, वह धरती के तापमान को लगातार बढ़ाने का काम करती है। और धरती का तापमान बढ़ने से पहाड़ों के शिखरों पर नमी जमने लगती है।

शिखरों पर जमने वाली यही नमी बाद में अचानक बारिश बनकर धरती पर फूट पड़ती है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही अचानक बादलों में इतना अधिक पानी जम जाता है कि बादल फटने लगते हैं। मतलब साफ है कि धरती के सामान्य तापमान को अगर एक सीमा में नहीं रखा गया तो कुदरत का कहर तथा खासकर ग्रीनहाउस गैसों का प्रभाव दुनिया भर में दिखेगा।

धरती के इसी तापमान को तय सीमा तक लाने की कोशिश में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रसंघ की बैठकों में भी चर्चा होती रही है। दुनिया पर छा रहे संकट के इन बादलों से निपटने के लिए ही ग्रीनहाउस गैसों के प्रयोग को कम करने के उपायों पर माथापच्ची की जा रही है।

लेकिन कथित तौर पर दुनिया के तमाम बड़े और ताकतवर देश अभी भी कार्बन जलाने या जहरीली गैसों के प्रयोग से खुद को रोकने में असमर्थ पा रहे हैं। जीवाष्म आधारित ईंधन जलाने से दुनिया को रोकने की पहल करनी होगी। अभी तो यह शुरूआत है। प्रकृति के लगातार हो रही छेड़छाड़ से परहेज करने के साथ ही वनस्पतियों की रक्षा का भार खुद के कंधों पर लेने का वक्त आ गया है। देश के पहाड़ी इलाकों में फिलहाल जिस तरह का सैलाब देखा जा रहा है वह देर से ही सही लेकिन मैदानी इलाकों को भी प्रभावित जरूर करेगा।