अदालत की नसीहत

देश की कई अदालतों में जजों की संख्या की कमी के कारण सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से जजों के नाम प्रस्तावित किए गए थे। इस मुकदमे की सुनवाई में सरकार की ओर से जवाब मिलने का इंतजार किया जा रहा था। बाद में खुद जजों की बेंच की ओर से ही कहा गया कि प्रस्ताव भेजे गए हैं लेकिन उनपर अमल कैसे और कब किया जा रहा है, इसकी निगरानी हर 10-12 दिनों पर अदालत खुद ही करेगी।

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सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति के मसले पर एक बार केंद्र सरकार को चेताया है। दरअसल अंदर ही अंदर इस बात की चर्चा रही है कि कहीं न कहीं केंद्र सरकार की ओर से न्यायपालिका को भी अपने प्रभाव क्षेत्र में लाने की कोशिश की जा रही है। अतीत में यह भी देखा गया है कि पूर्व कानून मंत्री किरेन रिजिजू लगातार कई जजों के खिलाफ कुछ न कुछ बोल दिया करते थे।

लेकिन शायद आम चुनाव को देखते हुए ही केंद्र की एनडीए सरकार ने रिजिजू की जुबान बंद करने का फैसला लिया और उनकी बाकायदा छुट्टी कर दी गई। इससे कम से कम न्यायपालिका को सरकार ने संदेश देने की कोशिश की थी कि देश की न्याय प्रणाली के साथ सरकार किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं करना चाहती। लेकिन यह मामला एक बार फिर से तब उछला है जब कर्नाटक के वकीलों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई है।

जजों की नियुक्ति में देरी

दरअसल बंगलुरू के वकीलों के संगठन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके पूछा गया है कि कॉलेजियम द्वारा प्रस्तावित नामों को अभी तक लंबित रखने तथा जजों की नियुक्ति में देरी करने के केंद्र के तौर-तरीकों के खिलाफ क्या मानहानि का मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए। वकीलों का मानना है कि जब सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजिय़म ने ही देश के लगभग 80 जजों के स्थानांतरण या नियुक्ति का फैसला कर लिया है तो उनको अमल में लाने में की जा रही देरी को आखिर अदालत की अवमानना क्यों नहीं कहा जा सकता। इसी मुकदमे की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हम कहना तो बहुत कुछ चाहते हैं लेकिन फिलहाल जुबान बंद रखते हैं।

जजों की कमी के कारण

देश की कई अदालतों में जजों की संख्या की कमी के कारण सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से जजों के नाम प्रस्तावित किए गए थे। लेकिन अदालत में पेश किए आँकड़ों के आधार पर कहा गया है कि 11 नवंबर 2022 से बाद से अबतक लगभग 70 ऐसे प्रस्तावों को सरकार ने रोक रखा है। इस मुकदमे की सुनवाई में सरकार की ओर से जवाब मिलने का इंतजार किया जा रहा था।

बाद में खुद जजों की बेंच की ओर से ही कहा गया कि प्रस्ताव भेजे गए हैं लेकिन उनपर अमल कैसे और कब किया जा रहा है, इसकी निगरानी हर 10-12 दिनों पर अदालत खुद ही करेगी। इसके जवाब में सरकार की ओर से अदालत को भरोसा दिलाया गया है कि एक सप्ताह में ही इन प्रस्तावों पर काम शुरू कर दिया जाएगा।

सीधे टकराव की नौबत

इस प्रसंग में एक बात उल्लेखनीय है कि एनडीए सरकार पर आरोप लगे थे कि वह न्यायपालिका पर प्रभुत्व कायम करने के लिए कॉलेजियम के ढाँचे में ही बदलाव करना चाहती है। समझा जाता है कि इस मुद्दे पर सरकार से न्यायपालिका की सीधे टकराव की नौबत बनने लगी थी। लेकिन ऐन वक्त पर सरकार ने अपनी जिद छोड़ी और कॉलेजियम प्रणाली को ही लागू करने का फैसला कर लिया गया।

कॉलेजियम की ओर से देश की जरूरतों के मद्देनजर 80 जजों के नाम भी सुझाए गए जिनमें 10 के बारे में कार्रवाई की जा चुकी है। फिर भी 70 प्रस्तावों पर काम किया जाना बाकी है। इसी मसले को लेकर कर्नाटक के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। लेकिन केंद्र सरकार के आश्वासन के बाद लगता है कि इन प्रस्तावों पर कारगर कदम उठाए जाएंगे जिससे आम लोगों को त्वरित इंसाफ दिलाने की प्रक्रिया पूरी हो सके।