बढ़ती बेरोजगारी

सरकार इस मामले में आंकड़ों का खेल खेलना चाहती है। हकीकत यह है कि भारत में सबसे बड़ी संख्या है असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की। असंगठित क्षेत्र ने देश में एक बड़ी आबादी को रोजगार का मौका दे रखा है लेकिन कोरोना महामारी के बाद से इस क्षेत्र को सबसे ज्यादा  परेशानी हुई है।

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यह साल जैसे-जैसे बीत रहा है, सरकारी आंकड़ों के हिसाब से देश में बेरोजगारी का अनुपात भी वैसे-वैसे ही बढ़ता जा रहा है। हालात इतने बदतर हो गए हैं कि नवंबर महीने तक आते-आते तकरीबन 10 फीसदी बेरोजगारी बढ़ी है। ऐसे में आम चुनाव से पहले लोगों का सवाल सरकार से यही है कि आखिर जिस सरकार की ओर से हर साल दो करोड़ रोजगार देने की बात कही जाती थी, उसने इतने सालों में क्या दिया।

और शायद लोगों के सवालों को ही टालने के लिए केंद्र सरकार की ओर से रोजगार मेलों का आयोजन किया जा रहा है जिसमें कुछ लाख लोगों को नौकरियां रोजगार मेले के नाम पर बाँटी जा रही हैं। यह बात और है कि जिन्हें नौकरी दी जा रही है, उनमें से ज्यादातर पहले से ही चली आ रही नौकरियां हैं क्योंकि जिन पदों पर काम कर रहे लोग रिटायर कर गए उनकी जगह ही ज्यादातर लोगों को नियुक्त किया गया है। ऐसे में रोजगार सृजन की बात कहां हुई। इन्हें तो वैसे भी किसी की खाली पड़ी जगह को भरना था।

रोजगार का मौका

दरअसल सरकार इस मामले में आंकड़ों का खेल खेलना चाहती है। हकीकत यह है कि भारत में सबसे बड़ी संख्या है असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की। असंगठित क्षेत्र ने देश में एक बड़ी आबादी को रोजगार का मौका दे रखा है लेकिन कोरोना महामारी के बाद से इस क्षेत्र को सबसे ज्यादा  परेशानी हुई है। एक तो बढ़ती महंगाई, दूसरे सरकारी नीतियां तथा बाजार में तरलता की कमी ने असंगठित क्षेत्र को पूरी तरह तबाह करके रख दिया है।

बेरोजगारी के मूल में झांकें तो पता चलता है कि कोरोना के बहुत पहले से ही असंगठित क्षेत्र सरकारी नीतियों की मार झेल रहा है। मिसाल के तौर पर पहले नोटबंदी को लिया जाए। अचानक कुछ घंटों की मोहलत के भीतर भारत जैसे किसी देश की 85 फीसदी मुद्रा को ही यदि गैर जरूरी घोषित कर दिया जाए तो अर्थव्यवस्था का चरमराना तय था। जैसे-तैसे लोगों ने खुद को नोटबंदी से बचाने की कोशिश शुरू की, तभी अचानक बगैर सोचे-समझे (शायद) जीएसटी को लागू करना भी अर्थव्यवस्था के लिए जोरदार धक्का था। ऐसे में असंगठित क्षेत्र पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया। जीएसटी के चंगुल से खुद को बचाने की कोशिश में जुटे इस क्षेत्र को सबसे गहरा धक्का तब लगा जब कोरोना का आक्रमण हुआ।

बाजार पूरी तरह सुस्त

लेकिन सरकार की ओर से केवल भाषण दिए जाते रहे। लाखों लोग मर गए। बाजार पूरी तरह सुस्त हो गया। किसी भी क्षेत्र को सरकार की ओर से कोई राहत पैकेज देने की बात सपना बनती चली गई और आज हालत यह है कि रोजगार मेलों का आयोजन करके देश को बताया जा रहा है कि अमुक इलाके में इतने लाख लोगों को रोजगार दिया जा रहा है। लोकसभा चुनाव आज सामने खड़े हैं। केंद्र की एनडीए सरकार अपने पांच साल के काम का ब्यौरा लगातार पेश करने की कोशिश कर रही है।

इसी बीच, ताजा आंकड़ों के आ जाने से कम से कम देश को इस बात की जानकारी हो गई है कि 10 फीसदी के आसपास इस देश में बेरोजगारी बढ़ चुकी है। इस समस्या के समाधान के लिए सरकार के पास सीमित समय बचा है। इस तरह असंगठित क्षेत्र को यदि कोई पैकेज दिया जाए तो हो सकता है कि बात बन जाए अन्यथा चुनावी तस्वीर केवल नारों से उकेरने की कोशिश कहां तक सफल होगी-यह देखना दिलचस्प होगा। सरकार को रोजगारोन्मुखी योजनाओं के बारे में सोचना ही होगा।