भावी पीएम की सीख

पेशे से इंजीनियर रहे नीतीश बाबू ने लंबी सियासी पारी खेली है तथा उन्हें बिहार में सोशल इंजीनियरिंग का भी बढ़िया अनुभव रहा है। लेकिन एक जगह चूक हो गई। इतने अनुभवी नेता ने सदन में सदस्यों को जिस तरह जनसंख्या नियंत्रण का पाठ पढ़ाया, वैसी सीख शायद ही देश के किसी सदन में किसी नेता ने खुलेआम किसी सदस्य को दी हो।

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हद हो गई है अब। सियासत किस मोड़ पर देश को ले जाएगी, कौन-क्या सीख देगा, कहना मुश्किल हो रहा है। भारत में लोकसभा के चुनाव अब करीब आ रहे हैं। चुनाव से पहले सियासी सरगर्मी बढ़ने लगी है। इसकी तासीर कुछ ऐसी है कि देश के भावी प्रधानमंत्रियों की कतार खड़ी होने लगी है। भाजपा के विरुद्ध सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को पहले से ही देश का भावी पीएम बनाने की मांग हो रही है।

इस बीच मोदी विरोधी गठबंधन भी तैयार हो गया है और इसकी अगुवाई में उतरे थे सबसे पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। नीतीश कुमार को ही नवगठित इंडिया गठबंधन का संय़ोजक बनाने की बात भी चल रही थी लेकिन शायद किसी कारणवश वह मामला खटाई में पड़ गया है। किंतु इतना जरूर है कि बिहार के शासक दल जनता दल (यू) की ओर से मांग की जा रही है कि देश का भावी प्रधानमंत्री नीतीश कुमार को ही बनाया जाए।

लंबी सियासी पारी खेली

पेशे से इंजीनियर रहे नीतीश बाबू ने लंबी सियासी पारी खेली है तथा उन्हें बिहार में सोशल इंजीनियरिंग का भी बढ़िया अनुभव रहा है। इसी अनुभव के आधार पर हाल ही में जाति आधारित जनगणना भी कराई गई और उसी के अनुरूप अब सरकारी नौकरियों में आरक्षण की बात भी की जा रही है। लेकिन एक जगह चूक हो गई। इतने अनुभवी नेता ने सदन में सदस्यों को जिस तरह जनसंख्या नियंत्रण का पाठ पढ़ाया, वैसी सीख शायद ही देश के किसी सदन में किसी नेता ने खुलेआम किसी सदस्य को दी हो।

नीतीश कुमार जैसे सुलझे हुए नेता से इस तरह की सीख की उम्मीद शायद समाज नहीं करता। लेकिन बड़े नेता ठहरे। जो कह दिया सो कह दिया। टोकाटोकी के बावजूद उन्होंने किसी विरोधी की नहीं सुनी और अपना ज्ञान देते रहे। जब लोगों की गालियां पड़ने लगीं, तरह-तरह से आलोचना शुरू की गई तो उन्हें लगा कि शायद गलती हो गई है। चट-पट भावी प्रधानमंत्री ने अपनी सीख के लिए तौबा करते हुए देश के वृहत् नागरिक समाज से माफी की मांग की है।

ज्ञान देते रहे लेकिन…

यह भी उनका बड़प्पन ही कहा जाएगा वरना आजकल की सियासत में लाख गलती करने के बावजूद नेता किसी बात के लिए लोगों से क्षमा याचना नहीं किया करते। यह बात आई-गई हो गई। लोग इसे भूल भी जाएंगे। मगर एक सवाल जरूर खड़ा होगा कि आखिर जिसकी जुबान ऐसी फिसल रही है, उस नेता को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाने को इंडिया गठबंधन में कितने दल सहमत होंगे।

सच तो यह है कि सार्वजनिक जीवन में शुचिता की जगह समाप्त होती जा रही है और कौन किसके बारे में क्या कह दे, इसकी अब राजनीति में कोई गारंटी नहीं है। नीतीश कुमार बड़े नेता रहे हैं और बिहार के मुख्यमंत्री का पद संभालने से पहले भी वे केंद्र सरकार के अहम पदों पर रह चुके हैं। लेकिन जिस तेजी से उनकी जुबान फिसलने लगी है, उसे खुन्नस कहें या तनाव, यह समझ में नहीं आता।

कम से कम इस तरह का बयान देने से पहले किसी बड़े नेता को इतना जरूर ध्यान में रखना चाहिए कि उसके भाषण से समाज किस हद तक प्रभावित होगा। गौरतलब है कि जहां नीतीश जी बोल रहे थे, उनके पीछे ही सदन में एक महिला सदस्य भी बैठी थीं, जिन्हें स्वाभाविक रूप से सीएम की सीख के बाद झेंपना पड़ा होगा। कम से कम नीतीश कुमार जैसे नेता से इस तरह के भाषण की उम्मीद नहीं थी।