भ्रम टूटना जरूरी
अमेरिकी प्रशासन ने जानबूझकर भारत को दुनिया में नीचा दिखाने की कोशिश की है। इसकी वजह के तौर पर ज्यादातर विश्लेषक यही मानते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत के रुख से नाराज अमेरिका ने पन्नू मामले में भारत को बदनाम करने की कोशिश की। ऐसे में भारतीय राजनेताओं को अगर किसी तरह का भ्रम हो रहा है तो इसे भविष्य की सियासत के लिए दुखद कहा जाएगा।
भारत ने जी-20 की अध्यक्षता के तौर पर दुनिया को अपनी समझदारी और ताकत दिखाने का अच्छा मौका हासिल किया है। समझा जाता है कि इस मंच का फायदा उठाकर भारत की ओर से दुनिया को यह भी बताने का प्रयास किया गया कि एशिया में भारत एक ताकतवर देश बनकर उभरा है तथा वह दिन दूर नहीं जब विश्वगुरु का आसन हासिल कर लिया जाएगा। जी-20 की सफलता के बाद से ही घरेलू सियासत में इस बात का प्रचार शुरू हो गया कि भारत अपनी बातें विश्व विरादरी से मनवाने में सक्षम हो गया है।
इसके बाद खुद प्रधानमंत्री का लड़ाकू विमान में उड़ना तथा बाद में उस बारे में ट्वीट करके बताना यह जाहिर करता है कि देसी तकनीक के जरिए भारत अपनी सुरक्षा के इंतजाम भी कर सकता है। लेकिन शायद हकीकत से अभी भारत अंजान ही है। हकीकत यह है कि दुनिया की सियासत में भारत को अभी विश्व विरादरी वह स्थान नहीं दे रही है जिसका दावा घरेलू राजनीति में किया जाता है। यदि भारत की ताकत का लोहा दुनिया मान रही होती या भारत को विश्वगुरु कहने को तैयार होती तो कम से कम मेक्सिको या अमेरिका में भारत सरकार की नीयत पर सवाल नहीं उठाए जाते।
गौरतलब है कि मैक्सिको की ट्रूडो सरकार ने पहले कहा कि उसके देश में होने वाली हत्याओं में भारत का हाथ है। अभी इस विवाद को अंत करने की प्रक्रिया चल ही रही थी कि अमेरिका ने भी भारत पर आरोप लगा दिया कि भारतीय एजेंसियां अमेरिकी नागरिकता हासिल कर चुके गुरपंत सिहं पन्नू का हत्या कराने की साजिश कर रही हैं।
इसमें भारत की ओर से साफ किया गया है कि ऐसा नहीं है। भारत दोनों ही देशों से ऐसे आरोपों के सबूत मांग रहा है। लेकिन समझने की बात है कि ऐसे आरोप क्यों लग रहे हैं। इन आरोपों के आलोक में विश्व विरादरी के ताकतवर देश यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें भारत को विश्वगुरु मानने जैसा कोई कारण नहीं दिखता। खुद को ताकतवर बताने की कोशिश में जुटी भारतीय सियासत को अमेरिका ने चीन के बराबर का स्थान नहीं दिया है।
जानकारों का मानना है कि अमेरिकी प्रशासन ने जानबूझकर भारत को दुनिया में नीचा दिखाने की कोशिश की है। इसकी वजह के तौर पर ज्यादातर विश्लेषक यही मानते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत के रुख से नाराज अमेरिका ने पन्नू मामले में भारत को बदनाम करने की कोशिश की। ऐसे में भारतीय राजनेताओं को अगर किसी तरह का भ्रम हो रहा है तो इसे भविष्य की सियासत के लिए दुखद कहा जाएगा।
सच तो यही है कि भारत बगैर किसी विदेशी सहयोग के अपने तरीके से आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है और इसमें उसे कदम-दर-कदम सफलता भी मिल रही है। लेकिन किसी भी सूरत में यह दंभ पालने की जरूरत नहीं है कि इससे कोई भारत को विश्वगुरु या विश्व शक्ति मान लेगा। बेहतर यही है कि दुनिया के सामने खुद को विश्व शक्ति के तौर पर पेश करने के बजाए भारत हर मामले में खुद को अंदर से ताकतवर बनाए। इस कोशिश में इस बात का ध्यान जरूर रहना चाहिए कि केवल सियासत के लिए खोखले दावे न किए जाएं।