ख्वाब देखने की बीमारी

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इंसान हर हाल में नए-नए ख्वाब देखने का आदी होता है। और वह भी अगर नेता हुआ तो फिर पूछना क्या है। हर नेता अपने दल की बड़ाई करता फिरता है और दुनिया की हर बुराई उसे दूसरे दलों के लोगों में दिख जाती है। ऐसे कुछ ख्वाब फिलहाल पश्चिम बंगाल के विपक्षी दल जागते-सोते देख रहे हैं। देखने का मौसम जो चल रहा है। पंचायत चुनाव होने वाले हैं। विपक्ष को लगता है कि बंगाल का शासक दल किसी भी कीमत पर लोगों को डरा-धमका कर वोट लेने की कोशिश कर  रहा है। ऐसे में अगर बंगाल पुलिस के अलावा केंद्रीय सुरक्षा बलों को इस राज्य की चुनावी ड्यूटी में लगा दिया जाए तो शायद विपक्षी दलों के समर्थन में ही लोगों का वोट चला जाएगा। इस ख्वाब में जीने की आदत को बुरा नहीं कहा जा सकता है लेकिन ध्यान रहे कि ख्वाब सिर्फ ख्वाब ही हुआ करते हैं। हकीकत से उनका कोई वास्ता नहीं होता।

ख्वाब पूरे करने के लिए विपक्ष ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। राजभवन से शिकायत की गई। राज्यपाल भी हरकत में आए। नए सिरे से लोगों की शिकायतें सुनने के लिए राजभवन में बाकायदा एक नया कंट्रोल रूम ही खोल दिया गया। राज्यपाल महोदय जनता की एक-एक शिकायत पर ग्राउंड जीरो तक जाने लगे। ख्वाब देखने वालों को लगा कि अब शायद उनका काम बन जाएगा। लेकिन यहीं एक बड़ी चूक हो गई है जिसका लाभ विपक्ष को नहीं, बल्कि शासक दल को मिल सकता है। केंद्रीय बलों की मांग करने के लिए जिन लोगों ने अदालत का रुख किया था, उन्हें शायद यह भूल गया कि पंचायतों के चुनाव राज्य चुनाव आयोग ही कराता है।

राज्य चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संस्था है और उसकी मर्जी से ही सबकुछ होगा। मसला यह नहीं है कि राज्य पुलिस चुनाव शांतिपूर्ण करा सकेगी या नहीं, मसला यह है कि केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान भी क्या स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करा सकेंगे। इसका सीधा सा जवाब होगा नहीं। लोकतंत्र में किसी भी बल को तैनात क्यों  कर लिया जाए, मतदाता ही वोट दिया करते हैं। और स्थानीय मतदाताओं को पहचानने का काम राजनीतिक दलों के सक्रिय कार्यकर्ता ही किया करते हैं। इसके लिए हर दल की ओर से बाकायदा बूथ कमेटियां बनाई जाती हैं। ये कमेटियां राजनीतिक दलों के लोग अपने समर्थकों की संख्या और सामर्थ्य के आधार पर बनाया करते हैं। ऐसे में विपक्षी दलों तथा खासकर इस राज्य में सत्ता पाने की ललक में खड़ा भारतीय जनता पार्टी को क्या यह यकीन है कि उसकी बूथ कमेटियां इतनी मजबूत और भरोसेमंद हैं कि अपने मतदाताओं को बगैर डरे मतदान केंद्रों तक ला सकेंगी। शायद ऐसा दावा भाजपा नहीं कर सकती। शासक दल में अंतर्कलह की बात विपक्ष की ओरसे कही जा रही है लेकिन विपक्ष के पास वह कार्यकर्ताओं की ताकत नहीं है कि मतदाताओं को भयमुक्त करा सके।

इसके अलावा यदि बूथ कमेटियों की मजबूती का दावा भी किया जाए तब भी होगा वही जो राज्य चुनाव आयोग की मर्जी होगी। राज्य के निर्वाचन अधिकारी का दावा है कि कहीं भी किसी तरह की बड़ी हिंसा नहीं हो रही है। खुद पुलिस महानिदेशक ने भी दावा किया है कि राज्य में चुनावी हिंसा की कोई बड़ी खबर नहीं है। ऐसे में केंद्रीय बलों के बूते चुनावी वैतरणी पार करने का विपक्ष का ख्वाब कहने को तो अच्छा है लेकिन नतीजे वैसे नहीं होने वाले जैसे ख्वाब में दिख रहे हों। बेहतरी इसी में है कि विपक्ष पहले अपनी सांगठनिक क्षमता का विकास करे। आगे लोकसभा चुनाव की चुनौती भी खड़ी है। ख्वाब से बाहर हकीकत से रूबरू होने की जरूरत है।