दुनिया के दो कारोबारी

एक ओर चीन के शी जिनपिंग का मानना है कि मध्य एशिया में इजराइल को बढ़ावा देकर अमेरिका पूरी दुनिया की शांति में खलल डाल रहा है, वहीं अमेरिका का मानना है कि जबतक हमास का पूरी तरह सफाया नहीं हो जाता तबतक इजरायली ऑपरेशन चलता रहेगा।

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दुनिया से शीतयुद्ध का कथित तौर पर सफाया हो गया है। अमेरिका और रूस की लड़ाई कहीं न कहीं थम गई सी लगती है। लेकिन अंदर ही अंदर आग जल रही है तथा किसी भी वक्त कोई चिन्गारी भीषण आग को जन्म दे सकती है- इतना तय माना जा रहा है। ऐसे में अमेरिका और चीन नामक दो महाशक्तियों का मिलन हुआ है। दोनों ही देशों की ओर से शह और मात की बाजी खेली जा रही है।

एक ओर चीन के शी जिनपिंग का मानना है कि मध्य एशिया में इजराइल को बढ़ावा देकर अमेरिका पूरी दुनिया की शांति में खलल डाल रहा है, वहीं अमेरिका का मानना है कि जबतक हमास का पूरी तरह सफाया नहीं हो जाता तबतक इजरायली ऑपरेशन चलता रहेगा। इसके उलट चीन को अमेरिका ने कहा है कि वह ईरान को समझाए क्योंकि ईरान के इशारे पर ही हमास ने इजरायली लोगों पर हमला किया था। उधर चीन का कहना है कि अमेरिका को ताइवान के मसले पर खामोश रहना चाहिए क्योंकि ताइवान को चीन अपना हिस्सा मानता है।

कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि दोनों महाशक्तियों की बातचीत में अपने-अपने फायदे की बात की गई है। इस मुलाकात से किसी भी समस्या का समाधान नहीं होने वाला क्योंकि दोनों में से किसी को भी किसी पर भरोसा नहीं है। समझा जा सकता है कि दुनिया की इतनी बड़ी ताकतें अगर एक-दूसरे पर यकीन नहीं कर सकतीं तो भला कौन, किस पर यकीन करेगा।

उपेनिवेशवाद की आड़

चीन ने बाकायदा जो बाइडन को यहां तक कह दिया है कि उसका इरादा उपेनिवेशवाद की आड़ में किसी को लूटने का नहीं है। लेकिन चीन की कथनी और करनी में हमेशा फर्क रहा है। इस बारे में भला भारत से बेहतर और किसे पता है। भारत के साथ सीमा-विवाद पर चीन के साथ कई बैठकें हुई हैं, दोनों देश की सेनाओं की ओर से बाकायदा शांति का प्रस्ताव रखा जाता है लेकिन पता चलता है कि दूसरे ही दिन सरहद पर चीन कोई खास बंकर बना रहा होता है।

दुनिया के कमजोर देशों पर धौंस जमाना या उन्हें अपने अधीन रखना इन दोनों देशों की आदत है। जो चीन उपनिवेशवाद से तौबा कर रहा है, उसके खिलाफ सैनफ्रांसिस्को में ही लोगों का हुजूम खड़ा हो गया। जिनपिंग के अमेरिका दौरे पर उनका विरोध करने वाली सैनफ्रांसिस्को की आबादी ने उनसे हांगकांग को खाली करने की मांग कर दी है। उपनिवेशवाद की बुराई करने वाला चीन कई दशकों से तिब्बत को दखल किए बैठा है और अब उसकी नजर ताइवान पर है। इसके अलावा भारत के कई इलाकों को बार-बार अपना करार देते हुए वह उन इलाकों को दखल करने की साजिश रचता रहा है।

महाशक्तियों की बैठक

दूसरी ओर अमेरिका है जिसे दुनिया के हर  देश में किसी न किसी तरह घुसकर पंचायत करने, विवाद बढ़ाने, जंग के हालात पैदा करने तथा जंग के जरिए हथियारों के कारोबार को आगे बढ़ाने में दिलचस्पी रहा करती है। दोनों ही देशों की सोच लगभग एक जैसी है। ऐसे में बाकी दुनिया अगर जिनपिंग और बाइडन की हो रही मुलाकात को लेकर सपने देख रही है, तो इसे बेवकूफी कहा जाएगा। चीन को ताइवान से मतलब है जबकि अमेरिका को फिलहाल इजरायल से लाभ लेना है। दोनों अपनी-अपनी रोटी सेंक रहे हैं। इन महाशक्तियों की बैठक से दुनिया का भला होगा-ऐसा कोई भी समझदार आदमी नहीं सोच सकता। सब अपने लाभ की सोच रहे हैं, निरीह लोग मरते हैं तो मरें- उनकी बला से।