अब खुली चर्चा होनी चाहिए

सुखद सच्चाई है कि लंबी चुप्पी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर की घटना पर जुबान खोली है। मगर इसमें देर हो गई। देर इसलिए कि तकरीबन ढाई महीने से देश का एक राज्य जल रहा है। एक वर्ग दूसरे की जान का प्यासा बना हुआ है।

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मणिपुर की घटना से पूरा देश उद्वेलित हो गया है। खुद प्रधानमंत्री ने भी इस पर अफसोस जताया है तथा दोषी लोगों पर कार्रवाई करने का सिलसिला चल पड़ा है। इस पर सियासी बयानबाजी भी तेज हो गई है। लेकिन वक्त की पुकार यही है कि सियासत छोड़कर इस पर सीधी कार्रवाई की जाए। इसकी खास वजह भी है। वजह यह है कि कुकी और मैतेई का विवाद इस कदर बढ़ गया है कि इसने दुनिया के कई देशों का ध्यान अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया है। यह एक सुखद सच्चाई है कि लंबी चुप्पी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर की घटना पर जुबान खोली है। मगर इसमें देर हो गई। देर इसलिए कि तकरीबन ढाई महीने से देश का एक राज्य जल रहा है। एक वर्ग दूसरे की जान का प्यासा बना हुआ है।

खामोशी का ही सहारा

महिलाओं की इज्जत सरेआम लूटी जा रही है। खुद केंद्रीय गृहमंत्री ने कई बार इंफाल पहुंच कर लोगों को शांत कराने की कोशिश की लेकिन उनके दिल्ली लौटते ही हंगामा फिर से शुरू हो जाता है। सैकड़ों लोगों की हत्या कर दी गई, सरकारी संपत्तियां लूट ली गईं। यहां तक कि रिजर्व पुलिस के मालखाने से लाखों की संख्या में कारतूस लूटे गए। सरकारी अधिकारियों की हत्या की गई। केंद्रीय मंत्री के पैतृक मकान तक को जला दिया गया। सेना के जवानों पर जवाबी हमले किये जाते रहे। लेकिन पीएम खामोशी का ही सहारा लिए जा रहे थे। कम से कम दिल्ली को इस मामले में सक्रिय होना चाहिए था। पहली बार पीएम ने इस मसले पर जुबान खोलकर मामले की संजदगी के बारे में देश को अवगत कराया और इसके साथ ही मणिपुर की पुलिस तत्पर हो गई है।

धारा 371 ए के प्रावधानों की समीक्षा

लेकिन पुलिस की इस तत्परता से काम नहीं चलने वाला है। खुद अमित शाह की मौजूदगी में ही सेना की ओर से सुझाव दिया जा चुका है कि राज्य में राजनीतिक प्रक्रिया को शुरू करने का समय आ गया है। राजनीतिक प्रक्रिया की शुरुआत का मतलब है कि हंगामे की जड़ तक पहुंचा जाए और समस्या का स्थायी समाधान किया जाए। समाज में पहले से चली आ रही कुरीतियों पर रोक लगाने की जरूरत है। कुकी समुदाय के लोगों को अब समझाने का वक्त आया है। समझाना यही है कि एक ही राज्य के लोगों के साथ दो तरह का कानून लागू नहीं किया जा सकता। धारा 371 ए के प्रावधानों की समीक्षा करके जनजातियों के आपसी मनमुटाव को दूर करना जरूरी है। इसके लिए अब खुलकर बात करने का समय आ गया है। खुलकर बात करने का मतलब है कि संसद में सभी दलों के साथ इस मसले पर बात करने का समय आ गया है। अब किसी डबल इंजन के भरोसे रहने का समय नहीं बचा है।

कानूनी प्रावधानों में रद्दोबदल

बेहतर यही है कि उत्तर पूर्व के अन्य राज्यों में आग लगने से पहले अब खुली चर्चा की जाए और जरूरत के मुताबिक कानूनी प्रावधानों में रद्दोबदल की जाए। इसमें देर की गई तो पड़ोस में बैठे चीन की नीयत पर नजरदारी करने में देरी हो सकती है। पूरा देश जानता है कि भारत के पूर्वोत्तर में चीन की गिद्ध दृष्टि सदा लगी रहती है तथा मौका देखकर वह पैसे भी खर्च करता रहता है। भारत सरकार जितनी जल्दी जागेगी, उतना ही बेहतर है। एक बात और ध्यान देने लायक है कि एक अपराध को छोटा करने के लिए किसी दूसरे के अपराध का उदाहरण नहीं दिया जाए।