अय्यर की सीख

अय्यर साहब की सीख का खास मतलब है। उनका कहना है कि भारत को अगर दुनिया में अपनी वास्तविक जगह बनानी है तो पाकिस्तान से वार्ता करनी होगी। मतलब भारत-पाक के बिगड़े रिश्तों को सुधारने की पहल करनी होगी।

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लगता है कि राजनयिक से राजनेता बने मणिशंकर अय्यर को अभी भी कराची की रातें भूली नहीं हैं। यही वजह है कि बेचारे जब भी जुबान खोलते हैं कहीं न कहीं पाकिस्तान के प्रति उनका दर्द छलक ही जाता है। अब फिर एक बार उनका दर्द छलका है, वह भी उनकी नई नवेली किताब में। जाहिर है कि किताब की विषयवस्तु को ऐसा ही लचीला बनाना जरूरी है जिससे किताब के प्रेमियों की संख्या बढ़े।

वैसे राजनेताओं की किताबें अक्सर तथाकथित विद्वानों की आलमारी में ही शोभा पाती हैं। उनके खरीदार भी सरकारी मुलाजिम ही ज्यादा हुआ करते हैं। बहरहाल, नए सिरे से अय्यर ने कहा है कि भारत में दुनिया में अपना वह उचित स्थान तबतक हासिल नहीं कर सकता, जबतक हमारे पास पाकिस्तान की अड़चन बरकरार है। इस अड़चन को दूर करने के लिए अय्यर साहब की दलील है कि भारत अपनी तरक्की के लिए पाकिस्तान से बातचीत करे।

सीख का खास मतलब

इतने बड़े विद्वान की बात को आसानी से समझना भी बड़ा मुश्किल है। अय्यर साहब की सीख का खास मतलब है। उनका कहना है कि भारत को अगर दुनिया में अपनी वास्तविक जगह बनानी है तो पाकिस्तान से वार्ता करनी होगी। मतलब भारत-पाक के बिगड़े रिश्तों को सुधारने की पहल करनी होगी। अय्यर साहब अंग्रेजी पढ़े लिखे विद्वान ठहरे, लेकिन अब हिन्दी भी समझ जाते हैं-कभी-कभी बोल भी लेते हैं। उनके जैसी समझ वाले लोगों के लिए गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है-
दो एक संग न होंहि भुआलू।
हँसब ठठाई फुलाइब गालू।।

आशय यह कि गुस्सा करना और ठहाके मारकर हँसना- दोनों एक साथ संभव नहीं है। पाकिस्तान के साथ भी यही लागू होता है। भारत सरकार की ओर से बार-बार कहा जा चुका है कि दुश्मनी और वार्ता एक साथ संभव नहीं है। जो मुल्क आज दाने-दाने को मोहताज लग रहा है, दुनिया भर में कटोरा लेकर घूम रहा है, अपनी जम्हूरियत तक को सलामत नहीं रख पाता है, जिसके पालतू दरिंदे अब उसी के निरीह लोगों के खून के प्यासे हो रहे हैं- वह तमाम मुश्किलों के बावजूद लगातार भारत में आतंकवादियों को प्रशिक्षित करके भेज रहा है। इससे उसकी नीयत का पता चलता है। मतलब जो छिपकर पीठ में कटार घोंपने का इरादा रखता है और सामने आकर दोस्ताना बातें करने का नाटक करता है, उससे किसी वार्ता की उम्मीद नहीं की जा सकती।

मिला हर बार धोखा

अय्यर को अपनी किताब बेचनी है, बेचते रहें। लेकिन शायद परवेज मुशर्रफ का आगरा दौरा भूल चुके हैं। कारगिल की लड़ाई थोपने वाली ताकत को भी शायद माफ कर दिया है। मुंबई में आतंकवाद के जरिए निरीह लोगों की हत्या करने वाले पाकिस्तान की मंशा कैसी है-यह किसी को भूला नहीं है। दुनिया भर के आतंकी संगठनों को अपनी धरती का इस्तेमाल करने की इजाजत देने वाला पाकिस्तान इस काबिल ही नहीं कि उसके साथ दोस्ताना बातचीत हो सके। भारत ने कई बार वार्ता का माहौल बनाया, क्रिकेट डिप्लोमेसी के जरिए भी दोनों पड़ोसियों के रिश्ते को ठीक करने की पहल की, लेकिन मिला हर बार धोखा।

पाकिस्तान राग में रोना

सच तो यह है कि आतंकवाद को जिंदा रखकर अमेरिकी डॉलर कमाने की नीयत रखने वाले पाकिस्तान के लिए अमेरिका का राजकोष भी अब खाली हो गया है क्योंकि उसे अब अफगानिस्तान से रूस को हटाने या किसी लादेन के शिकार के लिए पाकिस्तान की जरूरत नहीं है। ऐसे बदलते समीकरण में अय्यर का पाकिस्तान राग में रोना केवल अपनी किताब को बेस्टसेलर बनाने की तरकीब का ही एक अंग हो सकता है, किसी सुलझे बुद्धिजीवी की सीख इसे नहीं मान सकते।