अपनी डफली अपना राग
जिसे जनता ने चुन कर संसद में भेजा है, संसद पर उसी का हक है। लेकिन इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि जिसने भेजा है, उन मतदाताओं के साथ भी कोई नाइंसाफी नहीं की जाए।
देश की संसद गंभीर चर्चा कर रही है। सभी दलों की ओर से प्रखर वक्ताओं की टीम खड़ी है जो एक-दूसरे को घेरने की कोशिश कर रही है। मुद्दा है अविश्वास का। सरकार पर देश की गैर एनडीए पार्टियों के लोगों को विश्वास नहीं है। इसी अविश्वास के कारण चर्चा हो रही है। जाहिर है कि इससे मणिपुर की समस्या के समाधान की राह निकलनी चाहिए। देश को इस बात की उम्मीद जरूर रखनी चाहिए कि इस सार्थक चर्चा का नतीजा भी सार्थक ही होगा। लेकिन पहले दिन की चर्चा में शामिल नेताओं के बयान से यही लगा कि लोगों की समस्या से ज्यादा पार्टियों को अपनी ही चिंता सताए जा रही है।
आगामी लोकसभा चुनाव के लिए तैयारी की जा रही है तथा हर दल के लोग अपने समर्थकों तक अपनी बात पेश करने के लिए संसद के पटल का इस्तेमाल कर रहे हैं। जाहिर है कि जिसे जनता ने चुन कर संसद में भेजा है, संसद पर उसी का हक है। लेकिन इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि जिसने भेजा है, उन मतदाताओं के साथ भी कोई नाइंसाफी नहीं की जाए।
जनहित की बातें
अपनी-अपनी पार्टी की सोच से एक-दूसरे को अवगत कराने वाले नेताओं से इतनी अपेक्षा जरूर रखी जा सकती है कि जनहित की बातें भी संसद में होंगी। जनहित की बातें इसलिए जरूरी होती हैं क्योंकि जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे से ही संसद का सत्र चला करता है। मणिपुर की समस्या सचमुच पूरे देश के लिए चिंता का सबब बन रही है क्योंकि इसका समाधान अगर सही तरीके से नहीं किया जा सका तो बाकी के राज्यों में भी अतिवादी सोच के लोग उग्रवाद का ही सहारा लेने लगेंगे। लेकिन समस्या के समाधान के लिए सकारात्मक बातचीत होनी चाहिए। सरकारी पक्ष के साथ ही विपक्ष को भी इस मामले में संजीदगी से काम करने की जरूरत आन पड़ी है क्योंकि देश का एक बड़ा हिस्सा अलगाववादी सोच का शिकार हो रहा है। हो सकता है कि अलगाववाद को बढ़ावा देने में किसी पड़ोसी देश का भी हाथ शामिल हो।
चुनावी भाषण की जगह कहीं और होनी चाहिए, संसद नहीं। इसके अलावा नेताओं के भाषण से यही पता चलता है कि किसने क्या किया है, केवल इसी बात की चर्चा हो रही है। किस दल की सरकार ने किसका साथ दिया या किसने किसके साथ विश्वासघात किया है-इस पर चर्चा करने से बेहतर यही है कि आम लोगों की समस्याओं को सुलझाने की दिशा में कोई ठोस प्रस्ताव लाया जाता। इतने सारे सरकारी अस्पताल खोल दिए गए लेकिन आज भी देश के ज्यादातर हिस्सों में लोग बगैर इलाज के ही मर जाते हैं, चर्चा इस पर भी होनी चाहिए।
आपसी बातचीत जरूरी है
देश की शिक्षा नीति कैसी हो तथा भावी भारत को किधर ले जाना है, गरीबी से लोगों को कैसे बाहर लाया जाए या नए निवेश के जरिए किस तरह बेरोजगारी की समस्या का समाधान किया जाए-इस पर भी आपसी बातचीत जरूरी है। केवल अपनी डफली बजाने वाले नेताओं से पूछा जा सकता है कि मौजूदा संसद के चार साल होने को आए क्या ज्यादातर लोग सीने पर हाथ रखकर यह लोगों को बता पाएंगे कि उन्हें उनके इलाके के विकास के लिए राष्ट्रीय फंड से जो धनराशि दी गई है, उसको समुचित तरीके से खर्च किया गया है। क्या जनता को यह जानने का हक नहीं है कि उसके इलाके में चार सालों में जो विकास की गंगा बही है, उसका भी क्षेत्रवार एक ब्यौरा पेश किया जाए। लेकिन शायद संसद ऐसा नहीं करेगी। चर्चा केवल सियासत के लिए नहीं, लोकहित के लिए भी होनी चाहिए।