अपराध से खेलने वाले

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समाज में अक्सर देखा जाता है कि गोली से खेलने वाले का अंत भी कहीं न कहीं गोली से ही होता है, बशर्ते कि खेलने वाला असावधान हो। लेकिन खिलाड़ी जानबूझकर गोली-गोली खेलने लगे तो वह दिन भी आता है कि गोली उसकी भी जान ले लेती है। ठीक वही हालत है आजकल भारत के जेलों की। जेल प्रबंधन के बारे में आम तौर पर यही आरोप लगते हैं कि कैदियों के लिए दी गई सुविधाओं की बंदरबाँट जेल प्रबंधन में शामिल लोग ही कर लिया करते हैं। यहां तक कि कैदियों के राशन तथा दवाओं की भी खुले बाजार में बिक्री के आरोप लगते रहे हैं। इसके अलावा बार-बार जेलों में की गई छापेमारी से भी पता चलता है कि कैदियों के पास ऐसी चीजें मिलती हैं, जिन्हें प्रतिबंधित कहा जाता है। यहां तक कि जेलों में बंद कैदियों द्वारा की जाने वाली वसूली के लिए उन तक फोन पहुंचाने वालों में जेल स्टाफ ही शामिल होता है।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अपराधियों को और शातिर तथा बड़ा अपराधी बनाने में सिस्टम का बड़ा हाथ होता है। कैदियों से मिलकर समाज को लूटने वाले जेलकर्मियों के बारे में भी अक्सर खबरें आया करती हैं। मतलब साफ है कि जेल प्रबंधन के कुछ लोगों की कैदियों से खूब छनती है जिसके कारण कैदी भी बेखौफ रहा करते हैं। इन बेखौफ कैदियों ने अब जेल प्रबंधन के माथे पर बल ला दिया है। कैदियों से खेलने वाला जेल प्रबंधन आज उनके आगे मजबूर हो गया है जिसके कारण एनआईए या नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी ने सीधे भारत सरकार को खत लिख दिया है। एनआईए की चिट्ठी में कहा गया है कि शातिर अपराधियों और गैंगेस्टरों को रखने की व्यवस्था अंडमान-निकोबार में की जानी चाहिए। यह घटना अपने आप में काफी चौंकाने वाली है। ब्रिटिश काल में कैदियों को अंडमान भेजा जाता था और अब आजादी के अमृत काल में भी वही करने की मांग रखी जा रही है।

इसके पीछे की सोच को समझना होगा। दरअसल देश की सबसे बड़ी जेल तिहाड़ में जहां 10 हजार कैदियों को रखने की व्यवस्था है, वहां 20 हजार कैदी हैं। इसमें गैंगेस्टरों में कुलदीप बिस्नोई जैसे लोग भी हैं जिन्होंने जेल में रहकर ही दीवारों के बाहर सिद्धू मूसेवाला की हत्या करा दी। इन्हें इस जेल से हटाने या दक्षिण भारत की जेलों में भेजने का प्रस्ताव आया, लेकिन समस्या है। समस्या तकनीकी है। जबतक संबंधित राज्य कैदियों को अपने यहां भेजने की इजाजत नहीं देते, तबतक उन्हें कहीं बाहर नहीं भेजा जा सकता। लेकिन अंडमान की जेल में किसी को भेजने के लिए किसी राज्य सरकार की इजाजत की जरूरत नहीं है क्योंकि वह क्षेत्र केंद्र शासित है। इसीलिए एनआईए ने तिहाड़ जेल के गैंगेस्टरों को अंडमान-निकोबार की जेलों में भेजने का अनुरोध सरकार से किया है। हो सकता है कि केंद्रीय गृहमंत्रालय इस मामले में अपनी राय जाहिर करे लेकिन इससे यह सवाल जरूर उभरता है कि आखिर जेल की सीखचों के भीतर कैदियों का मनोबल इतना किसने बढ़ा दिया। सवाल यह भी है कि यदि अंडमान पहुंचने के बावजूद ऐसे कैदी पूरे देश में तहलका मचाने लगें और जेल कर्मियों की मदद से अपने वसूली नेटवर्क को और बढ़ा लें- तब क्या होगा। एनआईए के काम पर कोई सवाल नहीं है लेकिन कैदियों को इधर-उधर करने से पहले उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की तरकीबों पर भी होमवर्क कर लेना चाहिए। केवल भागने या हटाने से ही रोग निरामय नहीं होने वाला। आगे मर्जी सरकार की।