बार-बार विस्फोट
मुकदमा कमजोर होने की वजह से अवैध फैक्ट्रियों में प्राणघातक घटनाओं के बावजूद कारखाने के मालिक आसानी से खुद को बचा ले जाते हैं। इससे दूसरे लोगों का भी उत्साह बढ़ता है और वे भी पटाखा बनाने के गुर सीखने लग जाते हैं।
बंगाल में आए दिन किसी न किसी इलाके से बम विस्फोट की घटनाएं प्रकाश में आती रहती हैं। दुर्भाग्य यह है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मनाही के बावजूद राज्य प्रशासन इस मामले में अब तक नाकाम साबित हुआ है। इस बाबत मुख्यमंत्री को कई बार लोगों के समक्ष आकर माफी भी मांगनी पड़ी है लेकिन तब भी प्रशासन की नींद नहीं खुली। नतीजा यह हुआ कि साढ़े तीन महीने पहले मेदिनीपुर जिले के एगरा में हुए विस्फोट के बाद अब उत्तर 24 परगना में विस्फोट से मारे जाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है।
तर्क यह दिया जाता है कि पटाखा बनाने वाले कारखानों में ही इस तरह के विस्फोट हो रहे हैं। हालांकि सरकार ने इससे पहले कह दिया था कि किसी भी तरह की पटाखा फैक्ट्री अवैध तरीके से चलाने की इजाजत नहीं दी जाएगी। सभी अवैध फैक्ट्रियों को सील करने की हिदायत भी दे दी गई थी। जाहिर है कि सरकारी मनाही के बावजूद यदि इस तरह की घटनाएं राज्य में होंगी तो विपक्षियों को सरकार पर हमला करने का मौका मिलता रहेगा।
नियमावली को ठेंगा
जानकारों का कहना है कि कानून की धाराओं के प्रयोग में ही कारीगरी की जाती है जिसमें पुलिस के एक वर्ग तथा कुछ स्थानीय नेता शामिल होते हैं। दरअसल 15 किलोग्राम तक विस्फोटकों के इस्तेमाल के लिए जिस लाइसेंस की जरूरत होती है वह जिलाधीश या डीएम देते हैं लेकिन उससे अधिक विस्फोटक जमा करने के लिए संबंधित विभाग के शीर्ष लोगों से संपर्क किया जाता है। लेकिन अवैध कारखाने चलाने वाले लोग इस सरकारी नियमावली को ठेंगा दिखा देते हैं। दलील यही दी जाती है कि पुलिस और स्थानीय नेताओं की मदद से चल रही इन अवैध पटाखा फैक्ट्रियों से स्थानीय लोगों को रोजगार हासिल होता है, लिहाजा लोग चाह कर भी इन फैक्ट्रियों का विरोध नहीं कर पाते।
आसानी से जमानत
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की वारदातों में गिरफ्तार किए गए लोगों पर एक्सप्लोसिव सब्सटेंस कानून के तहत मुकदमा दायर किया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है। यहां तक कि मौका-ए-वारदात से जो सामान बरामद होते हैं उन्हें भी अदालत में पेश करने में आनाकानी की जाती है। यहां तक कि केस डायरी में भी विस्फोट होने का जिक्र तो होता है लेकिन विस्फोटक बनाते समय विस्फोट का उल्लेख नहीं रहता। इससे आरोपितों को आसानी से जमानत मिल जाया करती है और वे बाहर आकर फिर नेताओं और पुलिस की मदद से अपना काम शुरू कर देते हैं।
मुकदमा कमजोर होने की वजह से अवैध फैक्ट्रियों में प्राणघातक घटनाओं के बावजूद कारखाने के मालिक आसानी से खुद को बचा ले जाते हैं। इससे दूसरे लोगों का भी उत्साह बढ़ता है और वे भी पटाखा बनाने के गुर सीखने लग जाते हैं। तय मानकों के आधार पर यदि पटाखे बनाए जाएं और सरकारी नियमावली का पालन किया जाए तो हो सकता है कि एगरा या दत्तपुकुर जैसे विस्फोटों को रोकना संभव हो जाए। विपक्षी भी ऐसी घटनाओं को सरकार के खिलाफ मजबूत हथियार के तौर पर चुनाव में सामने रखने की कोशिश करेंगे।
ऐसे में यह सरकार का धर्म बनता है कि जितनी जल्द हो सके पटाखा फैक्ट्री में विस्फोट के जरिए होने वाली मौतों पर लगाम कसी जाए और ऐसी घटनाओं को अंजाम देने में शामिल लोगों के चेहरे बेनकाब किए जाएं। मुख्यमंत्री ने फिर ग्रीन पटाखों की बात कही है तथा पटाखा हब तैयार करने की चर्चा चल पड़ी है। इस परियोजना को अब धरातल पर उतारने का वक्त आ गया है।