बदलाव की जरूरत

सरकार की दलील है कि अंग्रेजी शासन में चूंकि भारतीय लोगों को दास समझा जाता था लिहाजा तब के कानून में भारतीयों के साथ किया जाने वाला व्यवहार किसी भी कीमत पर मानवाधिकारों की रक्षा से जुड़ा नहीं था।

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एनडीए सरकार ने अपने शासन काल के नौवें साल में एक खास बदलाव का फैसला लिया है। बदलाव किया जा रहा है अंग्रेजी कानून में। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की इस मामले में साफ दलील है कि उनकी सरकार देश के लोगों को सजा देने के बजाय इंसाफ देने की पक्षधर है। दरअसल सरकार की दलील है कि अंग्रेजी शासन में चूंकि भारतीय लोगों को दास समझा जाता था लिहाजा तब के कानून में भारतीयों के साथ किया जाने वाला व्यवहार किसी भी कीमत पर मानवाधिकारों की रक्षा से जुड़ा नहीं था। लेकिन देसी सरकार अपने लोगों को दंडित नहीं कर सकती। वह अपने सह नागरिकों को इंसाफ दिलाने का ही काम कर सकती है। इसी आधार पर अंग्रेजों के जमाने का बनाए गए कानूनों की जगह नए कानून स्थापित किए जा रहे हैं।

देशद्रोह का कानून

जिन तीन बिंदुओं पर खास ध्यान दिया जा रहा है उनमें सबसे ऊपर देशद्रोह का कानून शामिल है। तब की व्यवस्था के तहत अंग्रेजी हुकूमत ने जरूर तय किया था कि व्यवस्था के खिलाफ मुंह खोलने वाले को देशद्रोही बताकर उसे दंडित किया जाएगा। लेकिन आज देश स्वाधीन हो चुका है। भारत में लोकतंत्र की स्थापना हो चुकी है। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में जी रहे लोग सरकार के अच्छे कामों की तारीफ के साथ-साथ उसके गलत कामों का विरोध भी करने के हकदार हैं। लेकिन देखा यही जाता है कि जो बात सरकार को बुरी लगती है, उस पर किसी की टीका-टिप्पणी को झेल नहीं पाने की स्थिति में सरकार उसे देशद्रोही करार देने से चूकती नहीं है।

नए बदलाव से कम से कम किसी के साथ बदले की कार्रवाई करना सरकार के लिए भी थोड़ा जटिल हो जाएगा। इसके अलावा भगोड़ों के खिलाफ सख्त कानून बनाना, अपराध स्थल पर फॉरेंसिक टीम का जाना अनिवार्य करना, नाबालिग से दुष्कर्म करने पर सजा-ए-मौत का प्रावधान तय करना, मॉब लिंचिंग के कानून में सुधार लाना तथा सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मंजूरी तुरंत देने के प्रावधान तय करना भी इसी बदलाव में शामिल किया गया है।

पुलिस को सहूलियत

प्रथम दृष्टया इस बदलाव का स्वागत किया जा सकता है। किसी भी तरह के अपराध को अंजाम देने के बाद अक्सर अपराधी उस अपराध के निशान मिटाने की कोशिश करते हैं। ऐसे में अगर घटनास्थल पर अनिवार्य रूप से फॉरेंसिक टीम पहुंच कर नमूने का संग्रह कर लेती है तो अपराधियों की नकेल कसने में पुलिस को सहूलियत होगी। इसके अलावा कई बार देखा जाता है कि सरकारी कर्मचारियों को अपनी वर्दी की धौंस के कारण किसी निरीह नागरिक को सताने का खुला लाइसेंस मिल जाता है। अगर उसके खिलाफ कार्रवाई की कोई पहल भी करता है कि संबंधित विभाग के दूसरे कर्मचारी ही शिकायतकर्ता को लंबे समय तक दौड़ाते-दौड़ाते थका दिया करते हैं।

इस कानूनी बदलाव से कम से कम इंसाफ की तलाश में सरकारी बाबुओं को घेरने में लगे नागरिकों को सुविधा होगी। इसके साथ ही किसी का अपराध सिद्ध हुए बगैर कुछ लोगों द्वारा उसकी पीट-पीट कर हत्या करने की घटनाएं भी आजकल तेजी से बढ़ी हैं। इस तरह की मॉब लिंचिंग की घटना को भी रोकने का कानून बनाना सराहनीय है। इस कड़ी में नाबालिगों से शारीरिक व मानसिक अत्याचार या उनके यौन शोषण को कानून का नया जामा पहनाना एक अच्छी सोच का पर्याय है। लेकिन ध्यान रहे कि केवल कानून बना देना ही काफी नहीं होगा-उसके अनुपालन के लिए सरकारी तंत्र को भी तत्पर रहना होगा तथा सरकार को सबकी जिम्मेदारी तय करनी होगी। यदि ऐसा हो सका तो कदाचित समाज से कुछ हद तक बुराइयों का सफाया किया जा सकेगा।