ब्रिक्स का संदेश

विस्तारवादी सोच वाले देशों के अलग फोरम के तौर पर आज विकसित हो रहे ब्रिक्स (BRICS) के भविष्य को लेकर भले ही दुनिया में अलग-अलग सोच हो लेकिन इतना जरूर तय है कि जिस लहजे में दशकों पहले इसका गठन किया गया था, आज ब्रिक्स के मकसद और दिशा दोनों में ही बदलाव हो गया है।

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विस्तारवादी सोच वाले देशों के अलग फोरम के तौर पर आज विकसित हो रहे ब्रिक्स (BRICS) के भविष्य को लेकर भले ही दुनिया में अलग-अलग सोच हो लेकिन इतना जरूर तय है कि जिस लहजे में दशकों पहले इसका गठन किया गया था, आज ब्रिक्स के मकसद और दिशा दोनों में ही बदलाव हो गया है। एक ओर ब्रिक्स को विस्तार दिया जा रहा है तो दूसरी ओर इस बात की उम्मीद जग रही है कि इस फोरम के तहत जी-7 का विकल्प तलाशा जा रहा है।

पश्चिमी जगत के लोगों की नजर भी ब्रिक्स के नए चेहरे पर लगी होगी जिसमें अमेरिकी प्रभाव से अलग कौन सी दिशा तय होने वाली है। बहरहाल, यह तय है कि विस्तारवादी सोच के तहत आगे बढ़ने की चीन की चाल शायद ब्रिक्स के जरिए अब सफल नहीं हो क्योंकि दुनिया के 22 देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने का आवेदन कर रखा है। इनमें से 6 लोगों को फिलहाल इस मंच से जोड़ लिया गया है।

ज्ञातव्य है कि इस मंच के गठन में सबसे अहम भूमिका चीन की ही रही है जिसमें उसने एक ऐसी छतरी तैयार करने की कोशिश की थी जिसके जरिए अमेरिकी झंझावातों को झेला जा सके। चीन शायद यही सोचकर आगे भी बढ़ा था लेकिन बाद में हालात बदलते गए हैं और अब नए-नए देश इस मंच से जुड़ने लगे हैं। ब्राजील, रूस, भारत, चीन तथा दक्षिण अफ्रीका को लेकर गठित किए गए इस फोरम के जरिए एक-दूसरे के कारोबारी हितों के साथ ही अब पर्यावरण की चिंता तथा सीमापार आतंकवाद के मुद्दे को भी जोड़ दिया गया है।

आतंकवाद के सफाए पर चर्चा

इसे भारत की कूटनैतिक जीत ही कहा जाएगा कि उसने इस फोरम पर भी दुनिया को सीमापार आतंकवाद के प्रति सचेत किया है। हाल की ब्रिक्स देशों की बैठक में जो प्रस्ताव पेश किया गया है उसमें बहुत स्पष्ट तो नहीं, लेकिन परोक्ष रूप से ही विकास के लिए अमन की बहाली तथा आतंकवाद के सफाए पर चर्चा की गई है। इसमें मजेदार बात यह कि नए मित्र देशों को शामिल करने की होड़ में चीन को लगता है कि सारे सदस्य देश उसके मुखापेक्षी होंगे लेकिन शायद ऐसा संभव नहीं हो।

दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव विस्तार करने की चेष्टा में लगे चीन को यह पता है कि रूस फिलहाल यूक्रेन की जंग में उलझा हुआ है। इसीलिए सीमापार से आतंकवाद की बात को चीन ने चुपके से हजम कर लिया है। दरअसल इस फोरम के जरिए भारत ने चीन को ही संदेश दिया है कि जिस तरह पाकिस्तान की ओर से चीन के साथ मिलकर भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने की साजिश रची जा रही है, उसकी भारत कड़े शब्दों में निंदा करता है। ब्रिक्स के इस सम्मेलन में जो बातें निकल कर सामने आ रही हैं उनसे यही लगता है कि चीन के पास केवल सुनने के अलावा बोलने का कुछ है ही नहीं।

कश्मीर पर भारत का हक

गौरतलब है कि लगभग दिवालिया हो चुके पाकिस्तान के साथ मिलकर चीन ने बेल्ट एंड रोज की जो परियोजना शुरू की है, उसमें पाक अधिकृत कश्मीर का भी एक हिस्सा शामिल है। और भारत ने पहले ही अपनी संसद के जरिए संदेश दे रखा है कि पाक अधिकृत कश्मीर पर भारत का हक है जिसे हर हाल में पाकिस्तान के कब्जे से छुड़ाना है। ऐसे में भले ही ब्रिक्स के जरिए इन बातों पर चर्चा नहीं हो सकी है लेकिन कूटनैतिक तौर पर भारत ने इस सम्मेलन के जरिए चीन को अपनी बात समझा दी है। अब शी जिन पिंग स्वदेश लौटने के बाद कौन-सी साजिश रचते हैं, इस पर भारत की नजर जरूर रहेगी।