कांग्रेस की तैयारी
कांग्रेस ने संकेत दे दिया है कि अगर इंडिया गठबंधन सचमुच कारगर होता है तथा सीटों के बँटवारे की चर्चा बंगाल में होती है तो कम से कम कांग्रेस सभी सीटों पर तृणमूल कांग्रेस को ही लड़ने की छूट नहीं देगी।
अगले आम चुनाव से पहले कांग्रेस ने अपनी टीम तैयार करने का संकेत दे दिया है जिसमें कम से कम रायपुर में हुई पिछली बैठक को ध्यान में रखकर ही मल्लिकार्जुन खड़गे ने काम किया है। कुछ लोगों को हो सकता है कि अभी भी यही लगे कि नेहरू-गांधी परिवार की दबंगई के कारण ही शायद खड़गे सही तरीके से काम नहीं कर पा रहे हैं लेकिन कम से कम कांग्रेस कार्यसमिति की जो तस्वीर पेश की गई है, उससे ऐसा नहीं लगता है।
चुनाव में मुद्दे क्या होंगे या किन चेहरों को सामने रखकर एनडीए की सरकार को टक्कर दी जाएगी, अभी भले ही इसका खुलासा नहीं हो सका है लेकिन कम से कम इतना जरूर जता दिया गया है कि अब पार्टी के असंतुष्टों को भी कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है। सबसे खास रहा कार्यसमिति में सचिन पायलट और शशि थरूर को शामिल करना। सचिन लगातार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का विरोध कर रहे थे जबकि शशि थरूर कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव खड़गे के मुकाबले हार जाने के बाद अलग-थलग पड़ गए थे।
एक तीर से कई शिकार
ऐसे असंतुष्ट लोगों को कार्यसमिति में दाखिल करके खड़गे ने एक ही तीर से कई शिकार किए हैं। पहला तो यह कि जिस तरह राजस्थान में अपनी ही पार्टी की सरकार का विरोध अपने लोग कर रहे थे, उस पर विराम लगेगा। दूसरा यह कि शशि को शामिल करने से एक संदेश जाएगा। संदेश यह कि कांग्रेस आलाकमान अपने किसी भी सहयोगी के बारे में वैमनस्यतापूर्ण विचार नहीं रखता। लोकतंत्र में विरोध का स्वर बुलंद करना किसी दुश्मनी का पर्याय नहीं है। थरूर ने खड़गे का विरोध किया था लेकिन उदारता दिखाते हुए खड़गे ने शशि को कांग्रेस की शीर्ष कमेटी में जगह दे दी है।
इस कदम से कांग्रेस यह जाहिर करना चाहेगी कि देश की सबसे बड़ी पार्टी विरोध करने वाले को भी शत्रु नहीं मानती है और यही कांग्रेस का आंतरिक लोकतंत्र भी है। कुछ लोग यह जरूर कहेंगे कि पिछले प्लेनम में तय किया गया था कि कार्यसमिति में उन्हीं लोगों को स्थान दिया जाएगा जिनकी उम्र कम से कम पचास के आसपास हो। लेकिन इस तर्क को भी कांग्रेस ने यह जता कर खारिज कर दिया है कि कार्यसमिति के पचास प्रतिशत सदस्यों में दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक, आदिवासी तथा महिलाएं भी शामिल की गई हैं।
एक और खास बात
इसी क्रम में एक और खास बात ध्यान देने लायक है। बंगाल से दो लोगों को इस समिति में शामिल किया गया है। जिन दो लोगों के नाम हैं वे बंगाल की मुख्यमंत्री तथा तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी के धुर विरोधी माने जाते रहे हैं। एक हैं अधीर रंजन चौधरी जिनका नाम खड़गे, सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह व राहुल गांधी के बाद ही आता है जबकि दूसरा नाम है दीपा दासमुंशी का। दिवंगत नेता प्रियरंजन दासमुंशी की पत्नी दीपा को बंगाल में ममता का विरोधी ही माना जाता है।
ऐसे में कांग्रेस ने संकेत दे दिया है कि अगर इंडिया गठबंधन सचमुच कारगर होता है तथा सीटों के बँटवारे की चर्चा बंगाल में होती है तो कम से कम कांग्रेस सभी सीटों पर तृणमूल कांग्रेस को ही लड़ने की छूट नहीं देगी। कुल मिलाकर कांग्रेस कार्यसमिति के गठन के जरिए खड़गे ने नए व पुराने कांग्रेसियों को साथ लेकर संतुलन बनाने का जहां काम किया है वहीं भविष्य में सीटों के तालमेल के लिए भी बेहतर रणनीति बनाने की संभावना को जीवित रखा है। इसके परिणाम जल्द सामने आएंगे।