दवाओं की दवा जरूरी

जेनरिक दवाओं के असर को लेकर तरह-तरह की अफवाहें हैं। इन अफवाहों को दवा बिक्रेताओं ने और बढ़ा-चढ़ाकर परोसना शुरू किया है। इससे दवा बिक्रेताओं के साथ-साथ प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों को भी लाभ हो रहा है।

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लोक जीवन में स्वस्थता और बीमारी के बीच गहरा संबंध है। जो स्वस्थ है, वह बीमार भी हो सकता है। ऐसे बीमार लोगों के इलाज की व्यवस्था भी देश में मौजूद है। इस व्यवस्था के कारण ही विभिन्न बीमा कंपनियों का बाजार चमक रहा है। कालांतर में देखा जा रहा है कि सरकार की ओर से लोक कल्याण के लिए स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने की पहल की गई है। इसके तहत ज्यादातर राज्यों में प्रधानमंत्री की ओर से जारी किए आयुष्मान हेल्थ कार्ड की अवधारणा को मूर्त्त रूप दिया जा रहा है। इससे गरीब तबके के लोगों को कुछ हद तक इलाज में सहूलियत भी हो रही है।

चूंकि लोकशाही में नागरिकों की सेवा करना ही सरकार का धर्म बनता है लिहाजा सरकारें भी आम लोगों के कल्याण के लिए समय-समय पर परियोजनाएं लागू करती रहती हैं। इसी क्रम में एक तरफ लोगों को जहां पांच लाख रुपये तक का इलाज मुफ्त में उपलब्ध कराने के लिए सरकारी तौर पर कोशिश हो रही है, वहीं सस्ते दामों पर जनऔषधि केंद्र भी बनाने पर जोर दिया गया है। जाहिर है कि जनऔषधि केंद्रों में दवाएं जेनरिक नाम से ही मिलती हैं, जिनकी कीमतें खुले बाजार में बिक रही दवाओं की तुलना में बहुत कम हैं।

अचानक यू-टर्न का मतलब

लेकिन इस मामले में भी घालमेल की गुंजाइश बढ़ती जा रही है। पहले डॉक्टरों को हिदायत दी गई थी कि सरकारी प्रतिष्ठानों में काम करने वाले डॉक्टरों को चाहिए कि मरीजों के लिए ज्यादा से ज्यादा जेनरिक दवाओं के नाम ही सुझायें। बाद में अब कहा जा रहा है कि जेनरिक दवाओं के अलावा ब्रांडेड दवाओं के नाम भी मरीजों को सुझाए जा सकते हैं जिनसे उन्हें तुरंत स्वास्थ्य लाभ हो। सरकार के अचानक इस यू-टर्न का मतलब क्या हो सकता है। इससे तो आम लोगों की उस धारणा को बल मिलेगा कि आम तौर पर प्राइवेट डॉक्टर्स जो कह रहे हैं, शायद वही सही है। दरअसल प्राइवेट डॉक्टरों का कहना है कि सरकारी तौर पर जिन दवाओं को जेनरिक दवा बता कर बेचा जा रहा है, उनकी गुणवत्ता बहुत कम है।

जेनरिक दवाओं के असर को लेकर तरह-तरह की अफवाहें हैं। इन अफवाहों को दवा बिक्रेताओं ने और बढ़ा-चढ़ाकर परोसना शुरू किया है। इससे दवा बिक्रेताओं के साथ-साथ प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों को भी लाभ हो रहा है। ऐसे में अगर सरकार की ओर से भी अब कह दिया गया है कि ब्रांडेड दवाओं के नाम भी रोगी को तुरंत लाभ पहुंचाने के लिए सुझाए जाएं, तो इसका लोगों की मानसिकता पर उल्टा असर होगा। लोग जेनरिक दवाओं की तुलना में ब्रांडेड दवाओं की ओर ही ज्यादा झुकेंगे और अंत में जेनरिक दवाओं का बाजार समाप्त होने लगेगा।

ध्यान देने की जरूरत

सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों को इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके अलावा कुछ थोक व्यापारियों पर दवाओं की जमाखोरी या कालाबाजारी के भी आरोप लगते रहे हैं। जेनरिक दवाओं के प्रचलन से यह जमाखोरी थोड़ी कम हो गई थी। अब नए सिरे से ब्रांडेड दवाओं को लागू करने से भी जेनरिक दवाओं की मांग घटेगी और ब्रांडेड दवाओं के बाजार में तेजी आएगी।

इस क्रम में एक बात और है, जिसपर अधिक गौर करने की जरूरत है। बाजार में कुछ असाधु व्यवसायी भी हैं जो नकली या एक्सपायर्ड दवाओं की दुबारा रिसाइक्लिंग करके बेच रहे हैं। ऐसे एक गिरोह का हाल ही में पता भी चला था। सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े विभिन्न अधिकारियों को चाहिए कि ऐसे लोगों की शिनाख्त करें और उन्हें उचित सजा देने की व्यवस्था करें। जिस देश का समाज बीमार हुआ वह देश भी कल बीमार हो सकता है। सावधानी की जरूरत है।