गद्दारी का अंजाम

सवाल है कि गद्दार या बगावती को उसकी असली जगह पहुंचाने के बाद पुतिन का दूसरा कदम क्या होने वाला है। भारत में जी-20 की बैठक से खुद को दूर रख कर उन्होंने यह भी बता दिया है कि रूस किसी भी कीमत पर फिलहाल कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता।

89

राष्ट्र जीवन में इंसान से ज्यादा कीमती होता है मुल्क। और मुल्क भी अगर रूस जैसा हो तो फिर पूछना ही क्या। रूस का इतिहास रहा है कि कम्युनिस्टों के शासन में हजारों ऐसे लोगों की हत्याएं कराई जा चुकी हैं, जिन्होंने मुल्क से (तथाकथित शासकों से) गद्दारी करने की कोशिश की। ताजा घटना में रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन ने भले ही ऐसी किसी साजिश से खुद को अलग रखा हो लेकिन उनकी प्राइवेट आर्मी के सेनानायक रहे येवगेनी प्रिगोजिन की विमान हादसे में हुई मौत को भी लोग पुतिन की ही सोच का नतीजा बताते हैं।

वैसे भी पुतिन के बारे में कहा जाता है कि अपने दुश्मनों की पक्की खबर लिया करते हैं। प्रिवोजिन की मौत की कहानी तो शायद उसी दिन लिख दी गई थी जिस दिन यूक्रेन युद्ध के मोर्चे को छोड़कर उनके सारे लड़ाकों ने मास्को का रूख कर लिया था। लेकिन मास्को से सेंटपीटर्सबर्ग जाने के दौरान एक विमान हादसे में प्रिवोजिन की मौत उनके कई साथियों के साथ हो जाएगी-शायद इसका अंदाजा किसी को नहीं था।

प्रिवोजिन की बगावत

प्रिवोजिन की बगावत से यूक्रेन के साथ ही पश्चिमी दुनिया को भी लगा था कि पुतिन कमजोर हो गए हैं तथा उनकी निजी सेना में विद्रोह कराकर आसानी से क्रेमलिन पर दखल किया जा सकता है। लेकिन अब प्रिवोजिन की मौत को अमेरिका समेत पूरा पश्चिमी जगत यही मान रहा है कि पुतिन ने ही शायद इस घटना को अंजाम दिलवाया है। वैसे भी स्टालिन के जमाने में सत्ता के दुश्मनों के साथ क्या सलूक किया जाता था-यह पूरी दुनिया को पता है।

बहरहाल, जिन लोगों की ओर से भविष्यवाणी की जा रही थी कि जल्दी ही रूसी सेना में बगावत होगी और उनकी सेना के लोग ही पुतिन को गद्दी से उतारकर उनकी हत्या कर देंगे, यह बात उलट गई है। अपनी सूझबूझ और प्रशासनिक समझदारी से प्राइवेट आर्मी के विद्रोह को खामोश रहकर किस तरह कुचला जाता है तथा बाद में दुश्मन को कैसे ठिकाने लगाया जाता है, पूरी दुनिया को पुतिन ने दिखा दिया है। अब आती है बारी यूक्रेन की। अमेरिका समेत पूरी पश्चिमी दुनिया यही मानती है कि रूस लगातार कमजोर होता जा रहा है तथा पुतिन किसी भी वक्त आत्मसमर्पण कर सकते हैं। लेकिन शायद यह भी नेटो देशों की एक भूल होगी।

दरअसल रूस के विभिन्न गुटों को एक साथ लेकर चलने की जो दक्षता पुतिन ने दिखाई है तथा हर गुट में सामंजस्य बनाने के साथ ही उनके कार्यकलापों पर जिस तरह से निगरानी की है- इस जंग के माहौल में उसकी तारीफ करनी होगी। जरूरत पड़ने पर सेना की अग्रिम टुकड़ी तक जाकर स्थिति की समीक्षा करना और शांत रहकर परिस्थितियों को पढ़ना शायद तब संभव नहीं होता यदि ब्लादिमिर पुतिन प्रशासक बनने से पहले गुप्तचर नहीं रहे होते।

पुतिन का दूसरा कदम

अब सवाल है कि गद्दार या बगावती को उसकी असली जगह पहुंचाने के बाद पुतिन का दूसरा कदम क्या होने वाला है। भारत में जी-20 की बैठक से खुद को दूर रख कर उन्होंने यह भी बता दिया है कि रूस किसी भी कीमत पर फिलहाल कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता। उधर, अमेरिका के इशारे पर लगातार नेटो के सदस्यों की ओर से यूक्रेन को हथियारों की खेप देने के साथ ही यूक्रेनी सैनिकों को भी प्रशिक्षण देने का काम हो रहा है।

ऐसे में प्रिवोजिन को अंजाम तक पहुंचाने वाले पुतिन जेलेंस्की के साथ क्या बर्ताव करने वाले हैं-दुनिया की नजर इसी पर टिकी रहेगी। वैसे, पुतिन ने अपने काम करने के तरीके से यह तो जता दिया है कि रूस में उन्हें व्यापक जनसमर्थन हासिल है और वह दिन-ब-दिन और ताकतवर हो रहे हैं।