गठबंधन की दुविधा

आशंका इसी बात की है कि जिस भाजपा को केंद्र में हराने के लिए इंडिया नामक गठबंधन बनाया गया है, उसका लाभ बंगाल में कहीं भाजपा को न मिल जाए। जाहिर है कि जो लोग अबतक तृणमूल कांग्रेस के कथित गुंडों की मार खाते रहे हैं, उन्हें अपने बचाव के लिए या तो तृणमूल कांग्रेस में ही शामिल होना होगा अथवा भाजपा में जाना होगा।

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केंद्र की मोदी सरकार को हटाने के लिए तमाम विपक्षी दलों की कोशिश कारगर हो रही है। इस बीच कई समीकरण बनने-बिगड़ने भी लगे हें। इससे कम से कम इतना जरूर पता चल रहा है कि भले ही विपक्षी एकता के नाम पर इंडिया नाम का एक गठबंधन खड़ा किया जा रहा है लेकिन अंदरखाने एक अज्ञात आशंका भी घर कर रही है। आशंका तमाम उन राज्यों में है जहां क्षेत्रीय दलों के इशारे पर कांग्रेस को काम करना होगा। कांग्रेस नेतृत्व ने भले ही संकेत दे दिया है कि जो दल जहां मजबूत है, उसी के नेतृत्व में उस प्रदेश में कांग्रेस समेत सभी विपक्षी चुनाव लड़ेंगे। लेकिन इसी से आशंका भी बलवती हो रही है।

सियासत का चेहरा

मिसाल के तौर पर यदि बंगाल को ही लिया जाए तो यहां गठबंधन धर्म निभाने के लिए भले ही तृणमूल कांग्रेस के साथ प्रदेश कांग्रेस या सीपीएम का नेतृत्व साथ खड़ा हो जाए लेकिन आम कार्यकर्ताओं अथवा पार्टी समर्थकों को यह समझाना मुश्किल होगा कि सारे लोग तृणमूल कांग्रेस का ही समर्थन करें। ऐसा कर पाना संभव नहीं है क्योंकि बंगाल की सियासत का चेहरा दूसरे राज्यों से अलग है। यहां एक दल के लोग अपने नेता के इशारे पर दूसरे दल के लोगों की जान लेने पर भी उतारू हो जाते हैं।

यही वजह है कि समर्थकों में आपसी शत्रुता बनी रहती है और वे चाहकर भी एक-दूसरे के साथ रह नहीं पाते। अब सवाल यह है पार्टी के समर्थक या कार्यकर्ता यदि एक दूसरे के शत्रु रहे हैं तो किसी दल के राजनीतिक लाभ के लिए कोई निजी दुश्मनी कैसे भूल सकता है। इसी बात के मद्देनजर सीपीएम और कांग्रेस के बंगाल के नेताओं की चिंता बढ़ी है।

इंडिया नामक गठबंधन

चिंता की वजह यही है कि ऊपर के लोगों में आपसी तालमेल भले हो जाए निचले कार्यकर्ताओं को एक नहीं किया जा सकता। आशंका इसी बात की है कि जिस भाजपा को केंद्र में हराने के लिए इंडिया नामक गठबंधन बनाया गया है, उसका लाभ बंगाल में कहीं भाजपा को न मिल जाए। जाहिर है कि जो लोग अबतक तृणमूल कांग्रेस के कथित गुंडों की मार खाते रहे हैं, उन्हें अपने बचाव के लिए या तो तृणमूल कांग्रेस में ही शामिल होना होगा अथवा भाजपा में जाना होगा। ऐसे में सीपीएम या कांग्रेस का बंगाल में जो भी कैडर है- वह चुनाव में किसका साथ देगा-इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

विकल्प तलाशने की मजबूरी

ठीक वही हालत बिहार और झारखंड में भी देखी जा सकती है। झारखंड में जेएमएम के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ने का संकेत है। वहां भी कांग्रेस के कैडर्स के साथ इसी तरह की नौबत आ सकती है। दूसरे दलों के लोगों के पास उस हालत में या तो जेएमएम की शरण में जाने का विकल्प होगा अथवा भाजपा में। इसके अलावा बिहार समेत उन तमाम राज्यों में जहां क्षेत्रीय दलों के नेतृत्व में कांग्रेस को चुनाव लड़ना है- वहां कांग्रेस के लोगों के पास विकल्प तलाशने की मजबूरी होगी। और इन पेचीदगियों के मद्देनजर ही शायद खूब सावधानी से आगे बढ़ा जा रहा है। इस मामले में लेकिन सबसे हास्यास्पद हालत सीपीएम की है।

कोई गठबंधन कबूल नहीं

सीताराम येचुरी भले ही ममता बनर्जी के साथ हो लें, लेकिन बंगाल माकपा ने साफ कर दिया है कि तृणमूल के साथ कोई गठबंधन कबूल नहीं है। कुल मिलाकर इंडिया गठबंधन की तस्वीर अभी बहुत साफ नहीं हो पा रही है। एक मंच पर आकर एनडीए का विरोध करने वाले दलों को अपने कैडरों को कैसे समझाना है या किस तरह से कार्यकर्ताओं को एकजुट रखा जाता है-इसकी भी अग्निपरीक्षा इस बार के आम चुनाव में होने जा रही है। देखना दिलचस्प होगा क्योंकि दुविधा अंत तक शायद बरकरार रहने वाली है।