हद में रहने की जरूरत

किसी संस्थान को बर्बाद करना बड़ा आसान है लेकिन जादवपुर जैसा संस्थान फिर से खड़ा करना बहुत मुश्किल काम है। नागरिक समाज से अपेक्षा की जाती है कि सकारात्मक सोच के तहत कुछ लोगों को सामने लाएं जो सीधे सरकार, विपक्ष तथा विवि प्रबंधन के साथ बातचीत के जरिए एक सकारात्मक माहौल बनाए।

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अंग्रेजी हुकूमत के जमाने से ही बंगाल का इतिहास शिक्षा के क्षेत्र में काफी उन्नत रहा क्योंकि अंग्रेजी शिक्षा की नींव यहीं पड़ी थी। जाहिर है कि तब कलकत्ता ही देश की राजधानी भी हुआ करती थी। उस दौर में पहले भारतीय लोगों के साथ ही अंग्रेजी बच्चों को भी ऊंची शिक्षा देने के लिए कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। कालांतर में कई और विश्वविद्यालय बनते गए। इसी क्रम में जादवपुर विश्वविद्यालय का नाम भी आता है। लेकिन दुनिया में इतना नाम कमा चुके इस विश्वविद्यालय (विवि) में हाल में एक छात्र की रैगिंग के दौरान हुई मौत ने सबको झकझोर कर रख दिया है। पूरा समाज हिल गया है।

पढ़ाई करने के लिए जहां बच्चों को भेजा जाता है, वहां ऐसी नारकीय हरकतें भी होती हैं-यह जानकर ही लोग सन्न हैं। दावा यह किया जाता है कि इस विवि में आज भी वामपंथी सोच के छात्रों की बहुतायत है तथा वाम विचारधारा यहां के दर-ओ-दीवार पर छाई हुई है। अफसोस की बात है कि राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी हाल ही में कह दिया था कि जादवपुर को वहां के वामपंथियों ने आतंकपुर बना दिया है। यह बयान अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है।

राज्य का मुख्य प्रशासक ही अपने ही किसी संस्थान के बारे में ऐसी टिप्पणी करे तो यह शर्म की बात है। जादवपुर विश्वविद्यालय की इस हालत के लिए अगर केंद्र सरकार कुछ हद तक दोषी है तो इसमें राज्य सरकार की भूमिका भी कम नहीं है। राज्य सरकार को यह पता है कि पहले से ही वहां वामपंथी विचारधारा के लोग काबिज हैं तो इससे क्या हो गया। किसी भी विचारधारा के लोगों को क्या किसी की हत्या करने की खुली छूट है।

अराजक बयानबाजी किसके खिलाफ

आखिर वहां के अध्यापकों या विवि की व्यवस्था में कारगर कर्मचारियों को पगार तो सरकार ही दिया करती है। अगर सरकार की मंशा स्पष्ट हो तो क्या मजाल कि कोई भी सरकारी आदेश की अवहेलना करे। लेकिन सरकार में शामिल लोगों को भी केवल सियासत करने की ही पड़ी है। राज्य के मुख्य विपक्षी दल भाजपा की ओर से भी जादवपुर में जो प्रतिवाद सभा की गई उसमें केवल धमकियां सुनने को मिलीं। उखाड़ देंगे, फेंक देंगे..ऐसी बात क्यों। विवि अपना है, बच्चे भी अपने हैं, राज्य भी अपना है। फिर ऐसी अराजक बयानबाजी किसके खिलाफ और क्यों।

हो सकता है कि जादवपुर के छात्रों की मानसिकता में जहर घोलने या उन्हें गलत राह पर चलाने में कुछ अध्यापकों का ही हाथ हो। वैसे भी सरकार को ठीक से पता है कि विद्यार्थी बदलते रहते हैं, शिक्षक वहीं रह जाते हैं। ऐसे में राज्य सरकार या विपक्षी भाजपा को चाहिए कि जादवपुर की हालत की सही समीक्षा करे और भटके हुए लोगों को सही राह पर लाने की कोशिश करे।

इतिहास कभी माफ नहीं करेगा

किसी संस्थान को बर्बाद करना बड़ा आसान है लेकिन जादवपुर जैसा संस्थान फिर से खड़ा करना बहुत मुश्किल काम है। नागरिक समाज से अपेक्षा की जाती है कि सकारात्मक सोच के तहत कुछ लोगों को सामने लाएं जो सीधे सरकार, विपक्ष तथा विवि प्रबंधन के साथ बातचीत के जरिए एक सकारात्मक माहौल बनाए। हर बात को सियासत से जोड़ते जोड़ते बंगाल का वैसे भी बेड़ा गर्क हो चुका है। अब कम से कम होश में आने की जरूरत है ताकि एक प्रतिष्ठित संस्थान को बर्बादी से बचाया जा सके। देर हुई तो आज के प्रशासकों को इतिहास कभी माफ नहीं करेगा।