झगड़ा नहीं, विमर्श चाहिए

सच तो यह है कि वह लगातार भारतीय सैन्य अधिकारियों से बैठकें भी कर रहा है और दूसरी ओर भारत के हिस्से को अपना भी बताते चल रहा है। यह है चीन की चालबाजी। लेकिन उसे उसी की चाल से मात देने की कला सीखने की जरूरत है।

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पड़ोसी चीन एक बार फिर अपनी औकात पर आया है। अपने ताजा मानचित्र में उसने फिर से भारत के अरुणाचल प्रदेश के अलावा अक्साई चिन को भी अपना हिस्सा बता दिया है। इसके अलावा उसकी विस्तारवादी सोच में ताइवान व दक्षिणी चीन सागर भी चीन के मालिकाना हक में शामिल दिखाया गया है। जाहिर है कि भारत की ओर से इसका प्रतिकार किया गया है तथा भारत सरकार ने इस मानचित्र को सिरे से खारिज कर दिया है। इस पर घरेलू सियासत में हंगामा खड़ा करने की कोशिश भी होगी। खुद गैर एनडीए दलों की ओर से कहा जाने लगा है कि मोदी सरकार में साहस है तो वह चीन के खिलाफ भी किसी सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देकर दिखाए। यह घरेलू सियासत के लिए हो सकता है कि सही हो लेकिन अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी के लिए ऐसी बात बचकानी लगती है।

सावधानी की जरूरत

चीन के साथ भारत का एक लंबा सीमा विवाद रहा है और यह किसी एक काल खंड में इन दिनों ही शुरू हो गया है, ऐसा नहीं है। यह पुराना घाव है। इस घाव से निपटने के लिए सावधानी की जरूरत है। मिसाल के लिए जिस अक्साई चिन की बात कही जा रही है, जब उसके बारे में चर्चा होगी तो आम अवाम को बताना होगा कि वह किस सरकार के कार्यकाल में विवाद का मुद्दा बना। इसके अलावा मैकमोहन लाइन को दखल करने की कहानी भी सामने आ सकती है। हकीकत यह है कि सन 1962 की कहानी को चीन भूल नहीं पा रहा है। वह लगातार भारत को कमजोर समझने की गलती करता जा रहा है। चाहे गलवान घाटी हो या लद्दाख हर जगह चीन की मानसिकता 1962 जैसी ही है।

चीन की चालबाजी

सच तो यह है कि वह लगातार भारतीय सैन्य अधिकारियों से बैठकें भी कर रहा है और दूसरी ओर भारत के हिस्से को अपना भी बताते चल रहा है। यह है चीन की चालबाजी। लेकिन उसे उसी की चाल से मात देने की कला सीखने की जरूरत है। इसके लिए सीधे जंग लड़ना या किसी तरह का सर्जिकल स्ट्राइक करना आत्मघाती हो सकता है। आज हथियारों से जंग लड़ने के बजाय बेहतर है कि आर्थिक मोर्चे पर लड़ाई लड़ी जाए। सच तो यह है कि भारत सरकार की नीति आर्थिक मोर्चे पर चीन के समक्ष आत्मसमर्पण की ही रही है।

दिल्ली में सरकार चाहे किसी भी दल की क्यों न रही हो, चीन के लिए भारत के सारे रास्ते हमेशा खुले रखे गए। पता नहीं किसके दबाव में या किस गुप्त समझौते के तहत पूरे भारतीय बाजार को लूटने की इजाजत चीन को दे दी गई। हालात इतने बदतर हो गए कि वह भारत की खाकर भारत को ही धौंस दिखाने लगा। आर्थिक मोर्चे पर ही चीन को सबक सिखाया जा सकता है लेकिन इसके लिए भारत में पहले राजनीतिक एकरूपता की जरूरत होगी।

आज चीन किसी न किसी रूप में भारत के घर-घर में दाखिल हो चुका है। कहीं इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स के नाम पर या किसी किसी मशीन के नाम पर, दवाओं के नाम पर या खिलौने, कम्प्यूटर्स अथवा मोबाइल फोन्स या अन्य गैजेट्स के नाम पर चीन ने पूरे भारत को कब्जे में कर रखा है। इससे निपटने के लिए जरूरी है कि चीन की घुसपैठ भारतीय बाजारों में बंद की जाए। यह कुछ दिनों में संभव नहीं है क्योंकि यह बीमारी लंबे समय से पाल कर रखी गई है, निदान होने में भी वक्त लगेगा। लेकिन उपचार जरूरी है।