जंगलराज या कानून का राज

नीतीश के विरोधी इस बात की कोशिश करते रहेंगे कि बिहार में अराजक माहौल बनाया जाए ताकि 2024 के आम चुनाव में नीतीश की छवि को खराब बताया जा सके। नीतीश कुमार को चाहिए कि अपने विरोधियों की जुबान बंद करने की कोशिश करें।

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सुशासन बाबू के नाम से जाना जाता है। बिहार की सियासत में ऐसा कहा जाता है कि बिहारी मानुष की सोशल इंजीनियरिंग में पारंगत नीतीश कुमार हर तरह की सियासी चाल समझते हैं और समय-समय पर अपनी समझ का नमूना भी पेश करते रहते हैं। लेकिन पता नहीं क्यों इस बार उनका हर फार्मूला उल्टा-पुल्टा होने लगा है। सबसे पहली बात है कि नए सियासी गठबंधन को तैयार करने में उनकी भूमिका का कोई खास महत्व नहीं दिख रहा। दिल्ली गए और लौट कर आ भी गए लेकिन किसी तरह की कोई खास राजनीतिक हलचल समझ में नहीं आई।

अपराध बढ़ने के आरोप

इसके साथ ही राजद और जदयू की मिलीजुली सरकार के दौर में कथित तौर पर अपराध बढ़ने के भी आरोप मढ़े जा रहे हैं। इसकी ताजा मिसाल समस्तीपुर और अररिया की घटनाओं के जरिए देखी जा सकती है। समस्तीपुर में जहां बदमाशों ने एक पुलिसकर्मी की हत्या कर दी वहीं अररिया में एक पत्रकार की उसके घर से बुलाकर हत्या कर दी गई। फिर भी नीतीश कुमार का यही दावा है कि बिहार में अपराध बहुते कम है। समझा जा सकता है कि ऐसा कहने से पहले सीएम को अपने राज्य की ठीक से समीक्षा कर लेनी चाहिए थी। विपक्ष का दावा है कि सुशासन बाबू की नई पारी में उनकी छवि खराब होती जा रही है क्योंकि राजद के संरक्षण में पल रहे बिहार के अपराधी अब बेखौफ होकर राज्य के हर इलाके में घूम रहे हैं।

गौरतलब है कि राजद के शासनकाल में वह दौर भी देखा गया है जब राज्य में केवल हत्या, डकैती, अपहरण और फिरौती का ही कारोबार शुरू हो गया था। तब माफिया कितना प्रबल था, इसकी एक मिसाल सड़क निर्माण से जुड़े इंजीनियर की कहानी से ही पता चलता है। इंजीनियर ने पीएम के दफ्तर तक पत्र लिख कर घपले की पोल खोलने की कोशिश की थी लेकिन रोड और कंस्ट्रक्शन माफिया के पैरों तले उसे रौंद दिया गया। कम से कम नीतीश कुमार ने बिहार के लोगों को उस दौर से बाहर लाने की कोशिश की और उसमें बहुत हद तक सफल भी रहे।

लगाम कसने की जरूरत

लेकिन इन दिनों जिस तरह लगातार कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, पटना में ही पुलिस पर पथराव किया जा रहा है- इस पर लगाम कसने की जरूरत है। कानून के साथ किया गया मजाक किसी भी राज्य को रसातल में ले जा सकता है। नीतीश कुमार की छवि आज भी एक साफ सुथरे नेता की है। उनका पूरा कार्यकाल किसी घपले में नहीं जुड़ा। ऐसे राजनेता से बिहार के लोगों को काफी उम्मीदें हैं। जरूरी यही है कि अधिकारियों के बूते राज्य की शासन व्यवस्था को नहीं छोड़कर सीएम खुद लोगों से जुड़ने की कोशिश करें। बिहार के लोगों को एक सही दिशा देने की जरूरत है जिसमें मुख्यमंत्री को अग्रणी भूमिका निभानी होगी।

ध्यान रहे कि यदि नीतीश के विरोधी इस बात की कोशिश करते रहेंगे कि बिहार में अराजक माहौल बनाया जाए ताकि 2024 के आम चुनाव में नीतीश की छवि को खराब बताया जा सके। नीतीश कुमार को चाहिए कि अपने विरोधियों की जुबान बंद करने की कोशिश करें और जितनी जल्दी हो सके बिहार की कानून-व्यवस्था को नियंत्रित करने का प्रयास करें। वक्त तेजी से गुजर रहा है और विपक्षी लगातार सक्रिय हो रहे हैं। जंगलराज के बदले कानून के राज की स्थापना जरूरी है और इसमें नीतीश कुमार सिद्धहस्त हैं।