खुद की समीक्षा करे सरकार

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केंद्र की एनडीए सरकार के पास कई मामलों की समीक्षा का अवसर है। जबतक कोई सत्तारूढ़ रहता है तबतक शायद सत्ता का मद भी कई लोगों को पीछे मुड़कर देखने की इजाजत नहीं देता। लेकिन और लोगों की तुलना में भाजपा को रखना सही नहीं है क्योंकि अमित शाह और मोदी की अगुवाई में पार्टी ने खुद को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनाने का कीर्तिमान स्थापित किया है। यही नहीं, पार्टी की लोकप्रियता भी लगातार बढ़ती चली गई है, कुछ अपवादों को छोड़कर। ऐसे में अगर भाजपा नीत एनडीए की सरकार बार-बार किसी एक ही आदमी के नाम का उल्लेख करती है, बार-बार किसी खास अधिकारी की सेवाओं को विस्तृत करने का प्रयास करती है तो लोगों के माथे पर बल पड़ना स्वाभाविक है। लेकिन इससे शायद सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता। इसीलिए अदालती मनाही के बावजूद कानून में थोड़ा बदलाव करके ईडी या प्रवर्तन निदेशालय के मुखिया का कार्यकाल तीसरी बार भी बढ़ाने का प्रयास किया गया। इस प्रयास को अदालत ने सिरे से खारिज करके एक तरह से केंद्र की एनडीए सरकार को भविष्य में ऐसी हरकतों से बचने का संकेत दे दिया है। हो सकता है कि अंदर ही अंदर फिर किसी दूसरे तरीके से किसी अपने खास चहेते का नाम किसी बड़े पद के लिए सुझाया जाए। लेकिन सरकार को ऐसी घटनाओं से सबक लेने की जरूरत है।

पूरे देश को पता है कि लगातार विपक्ष की ओर से यही आरोप लगाया जाता है कि मोदी की सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों को दबाव में रखने के लिए ही केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है। हो सकता है कि इन बातों में सच्चाई नहीं भी हो। मगर अदालती फैसले के बाद जिस तरह की कई भाजपा नेताओं की प्रतिक्रिया सुनी जा रही है, उससे किसी को भी लगेगा कि ईडी जैसी एजेंसी को सचमुच विरोधियों के खिलाफ प्रयोग में लाया जाता होगा। अदालत ने 2020 और 2021 के सेवा विस्तार के समय ही संकेत दे दिया था कि अब विस्तार की गुंजाइश नहीं है। दरअसल देश की शीर्ष एजेंसियों के उच्च पदों पर नियुक्ति का मामला भी बड़ा पेचीदा रहा है जिसे सरकार और विपक्ष की सूझबूझ से सुलझाया गया है।

अब कम से कम यह तय हो गया है कि सीबीआई या ईडी अथवा सीवीसी (चीफ विजिलेंस कमिश्नर) के पदों पर होने वाली नियुक्तियों में पूरी तरह पारदर्शिता बरती जाएगी। यह भी तय कर दिया गया कि ऐसी नियुक्तियों में प्रधानमंत्री के अलावा नेता प्रतिपक्ष और भारत के मुख्य न्यायाधीश की मंजूरी लेनी होगी। जाहिर है कि तीनों की मौजूदगी में लिए गए फैसले पर पक्षपात करने का आरोप कोई नहीं मढ़ सकेगा। आम लोगों के दिमाग में भी यही सवाल उभरेगा कि आखिर ईडी के प्रमुख एसके मिश्रा का कार्यकाल बढ़ाने का मकसद क्या हो सकता है। सरकार को चाहिए कि वह देश को बताए। अगर अधिकारियों का अभाव है, तो वह कमी भी देश ही पूरा करेगा। लेकिन किसी एक को ही बार-बार अवसर देने का मतलब नकारात्मक होता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र की एनडीए सरकार चुनावी वर्ष में कम से कम ऐसे जोखिम भरे या बदनाम करने वाले फैसलों से दूर ही रहे। याद रहे कि हर सरकार कभी न कभी अपना कार्यकाल पूरा करके चली जाती है। मोदी सरकार को भी कुछ ऐसा ही कीर्तिमान स्थापित करना चाहिए कि सत्ता जाने के बाद भी लोग आपके नेक कर्मों की प्रशंसा करें।