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जबतक पुलिस को दल-दास बनाए रखने की मानसिकता बनी रहेगी तबतक समाज में संभावित हिंसा भड़कनी अस्वाभाविक नहीं है। सरकार के साथ ही नागरिक समाज को भी अमन बहाली से जुड़ना होगा। केवल इंटरनेट सेवा बंद करने का लाभ नहीं हो रहा।
आम चुनाव से पहले देश की हवा बदलने लगी है। इसके पहले भी हवा में हल्की हरकत जरूर दिख रही थी लेकिन अब तेजी से बदलाव हो रहे हैं। इन बदलावों को ही राजनीतिक रूप से ध्रुवीकरण का नाम दिया जाता है। कहा जाता है कि ध्रुवीकरण के लिए समाज में तरह-तरह से आग लगाने की कोशिश की जाती है। और जब आग पूरी तरह से जलने लगती है, हिंसा शुरू हो जाती है, कुछ लोगों की जान जाने लगती है तो हिंसा रोकने के लिए सरकारें कठोर कदम उठाने की घोषणा करने लगती हैं। कठोर कदम के रूप में धारा 144 लागू करने के साथ-साथ इलाके में इंटरनेट सेवा बंद कर दी जाती है।
समझा जाता है कि इंटरनेट सेवाएं बंद करने से हिंसा खुद ही थम जाएगी क्योंकि लोग तरह-तरह की अफवाहें सोशल मीडिया पर परोस नहीं पाएंगे। बस, इतना करने के बाद सरकार संतुष्ट हो जाया करती है। उसे पता है कि कुछ लोग मारे भी जाएंगे लेकिन चुनावी वैतरणी पार करने लायक उसके पास तबतक उतने कार्यकर्ताओं की भीड़ जमा हो चुकी होती है।
मानवाधिकारों का हनन
शायद ही इस बात का ध्यान रखा जाता है कि किसी भी हिंसा की स्थिति में इंटरनेट जैसी आवश्यक सुविधा को बंद कर देने से इलाके के आम आदमी के मानवाधिकारों का कितना हनन होता है। जहां कहीं भी गड़बड़ी होती है वहां जितने लोग गड़बड़ी में शामिल होते हैं, उससे अधिक लोग अमन पसंद हुआ करते हैं। अमन पसंद इंसान अपनी तरक्की के लिए दिन-रात परिश्रम कर रहा होता है- कहीं व्यवसाय के क्षेत्र में तो कहीं अध्यवसाय में। उसकी भी आवश्यक सेवाएं इंटरनेट बंद होने से प्रभावित होती हैं। जीवन रक्षा में लगे कई जगह अस्पतालों के अलावा सृजनात्मक काम भी रुक जाया करता है। ऐसे में इंटरनेट बंद करके हिंसा को रोकने की सरकारी कोशिश कितनी मुफीद है-इस पर सवाल खड़े होते हैं। फिर भी सरकार तो सरकार है। उसे जनता के सवालों से उतना मतलब नहीं हुआ करता।
लेकिन सत्तारूढ़ लोगों को कम से कम आईना तो जरूर दिखाया जा सकता है। मतलब यह है कि बताया जाए कि इंटरनेट सेवाएं बंद करने के बावजूद माहौल में खास बदलाव नहीं दिखता। मिसाल के तौर पर जम्मू-कश्मीर राज्य को ही लिया जा सकता है। अतिवादियों से निपटने के लिए वहां लगातार 550 दिनों तक इंटरनेट सेवाएं बंद रखी गईं। लेकिन माहौल में कोई बदलाव नहीं आया तो सरकार को अंत में धारा 370 हटानी पड़ी।
सामाजिक एकता पर जोर
ताजा घटनाक्रम में बंगाल में रामनवमी के जुलूसों पर हुए हमले के बाद इंटरनेट सेवाएं इलाके के आधार पर बंद रखी गईं। अफवाहें फिर भी तेजी से बढ़ती रहीं। मणिपुर में मई महीने से ही लगातार इंटरनेट पर पाबंदी है लेकिन सरकार चाहकर भी वहां अमन कायम नहीं कर पा रही है। वजह यह है कि इन सेवाओं के बंद हो जाने से तरह-तरह की अफवाहें लोग फोन के जरिए भी लोगों तक पहुंचाने लगते हैं। इनसे माहौल और भी खराब होता जाता है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि इंटरनेट सेवा बंद करने के बजाय सामाजिक एकता पर जोर दे। हर राज्य या शहर के कुछ ऐसे लोगों को सामने लाया जाए जो कानून का पालन करने वाले तथा अमन पसंद हों। उनसे सरकार का नियमित सामंजस्य बना रहे तथा किसी भी संभावित गड़बड़ी की आशंका के तहत पुलिस को स्वतंत्र रूप से काम करने दिया जाए।
जबतक पुलिस को दल-दास बनाए रखने की मानसिकता बनी रहेगी तबतक समाज में संभावित हिंसा भड़कनी अस्वाभाविक नहीं है। सरकार के साथ ही नागरिक समाज को भी अमन बहाली से जुड़ना होगा। केवल इंटरनेट सेवा बंद करने का लाभ नहीं हो रहा।