कुर्बानियों से मिली ये दौलत
अंग्रेज चले गए लेकिन कई मामलों में आजादी मिलने के बावजूद हमारी अंग्रेजियत अभी भी हावी है। वक्त की जरूरत यही है कि इस लबादे को भी अब उतार फेंका जाए। इसके लिए पहले हमें हमारी संस्कृति की पहचान जरूरी है।
आज भारत का स्वतंत्रता दिवस है, हमारा राष्ट्रीय पर्व। छिहत्तर साल गुजरे, अब सतहत्तरवें की बारी है। धीरे-धीरे लोकतंत्र मजबूत होता जा रहा है। आज भारत की सत्ता भरतवंशियों के हाथ में है। किसी गोरे से हमें आज जीने की इजाजत नहीं मांगनी पड़ती। फिर भी जो चीजें आज सहज उपलब्ध हैं, उन्हें पाने के लिए हमारे पूर्वजों को अपनी जान देनी पड़ी है। लाखों लोगों ने अपने खून से सींचा है इस बगीचे को। आज हिन्दुस्तान के लोग खुली हवा में सांस ले रहे हैं। ऐसे समय में एक बार पीछे मुड़कर देखना जरूरी हो जाता है।
दरअसल आदमी यदि इतिहास को भूल जाए तो वह अपने अतीत के साथ अन्याय करने लगता है। भारत कम से कम इस मामले में अन्यायी नहीं है। राजनीतिक तौर पर हमारे लोग भले एक दूसरे की टांग खिंचाई करें लेकिन जहां देश की मर्यादा का सवाल होता है, वहां हर दल के लोग देश की एकता के साथ आ खड़े होते हैं। यही है हमारी जम्हूरियत की निशानी।
वक्त की जरूरत
अंग्रेज चले गए लेकिन कई मामलों में आजादी मिलने के बावजूद हमारी अंग्रेजियत अभी भी हावी है। वक्त की जरूरत यही है कि इस लबादे को भी अब उतार फेंका जाए। इसके लिए पहले हमें हमारी संस्कृति की पहचान जरूरी है। दुनिया की जो जाति अपनी भाषा और संस्कृति को भुला देती है, उसका इतिहास भी आहिस्ता-आहिस्ता मिट जाया करता है। इस मामले में भारत को सोचने की जरूरत है। प्रसंगवश कहना गलत नहीं होगा कि अब पश्चिमी दुनिया के लोग भी भारत की ओर चाव से देखने लगे हैं। इसकी खास वजह है- हमारी भाषा और संस्कृति।
विरासत को पहचानें
भारत को पुरानी विरासत पाने के लिए अपनी भाषा को पहले मन से अपनाने की जरूरत है। हमारी सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत है। उत्तर भारत की सारी भाषाएं कभी न कभी संस्कृत से ही निकलीं हैं। यही वजह है कि टॉकिंग कम्प्यूटर बनाने की सोच के तहत पश्चिमी दुनिया के लोगों को भी एक मात्र संस्कृत ही उचित भाषा समझ में आती है। इसकी सबसे खास वजह यह कि संस्कृत में जैसा लिखा जाता है, वैसा ही बोला भी जाता है।
भले ही कथित आधुनिकता की धारा में बहने वाले लोग अंग्रेजी की छलांग लगा रहे हैं मगर सच्चाई यही है कि अंग्रेजी की शब्दावली में काफी पेंच हैं। इसमें लिखा कुछ और जाता है, बोला कुछ और जाता है। ऐसे में जरूरी है कि भारतवासी अपनी विरासत को पहचानें और कम से कम स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ही इस बात का संकल्प लें कि हर हाल में अपनी सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण रखने का प्रयास करेंगे। यदि अपनी विरासत का संरक्षण सही तरीके से कर लिया जाए तो आनुषांगिक बुराइयां खुद ही दूर हो सकती हैं।
उन्हें नमन
एक बात और। स्वतंत्रता हमें सीख देती है कि अपनी विरासत, अपने मूल्यों तथा अपनी संस्कृति की रक्षा करें लेकिन दूसरों को अपमानित करने से बचें। कभी एक-दूसरे से दुराव की भावना ने ही भारत को काफी बुरे दिन दिखाए थे। आज भी देश के दुश्मन एक-दूसरे को लड़ाने की ताक में हैं। अफवाहों के जरिए समाज के तानेबाने के साथ घिनौना खेल खेलने वालों की कमी आज भी नहीं है। इसलिए सावधान रहते हुए स्वाधीनता दिवस का अनुपालन किया जाना चाहिए। स्वतंत्रता की ज्वाला में जिन्होंने आहुति बनने का काम किया, उन्हें नमन।