लोकल से ग्लोबल होता रुपया

भारत सरकार ने रुपये को अब देशी से विदेशी बनाने की सोची है। इसके लिए कई देशों से बात हो रही है।

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भारत सरकार ने रुपये को अब देशी से विदेशी बनाने की सोची है। इसके लिए कई देशों से बात हो रही है तथा हाल ही में पीएम मोदी के संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) दौरे पर इस मामले में दोनों देशों के बीच एक समझौता भी हुआ है। इस समझौते के तहत तय हुआ है कि दोनों मुल्कों के बीच व्यापार में लेनदेन रुपये के जरिए होगा। हर भारतीय के लिए यह खुशखबरी है। खुशखबरी इसलिए भी डालर से इतर एक नई मुद्रा की तलाश हो रही है। इससे दोनों देशों के कारोबार में और तेजी आयेगी।

भारत का विदेशी व्यापार

प्रसंगवश कहना गलत नहीं होगा कि भारत के साथ व्यापार करने वाले देशों में अमेरिका और चीन के बाद यूएई का ही स्थान है। वैसे रूस के साथ भी भारत ने रुपये के जरिए ही व्यापारिक लेनदेन करने का समझौता कर रखा है। इससे विदेशी मुद्रा के भंडारण का बोझ कुछ हद तक कम हो जाएगा। लेकिन इस राह में कई मुश्किलें अभी आनी बाकी हैं। दरअसल भारत का विदेशी व्यापार अभी उस स्तर पर नहीं पहुंचा है जिससे दुनिया के सारे देश रुपये में ही लेनदेन कर सकें। बाजार की समीक्षा के हिसाब से कहा जा सकता है कि दुनिया में हो रहे कुल निर्यात का भारत केवल 2 फीसदी ही भागीदार है। ऐसे में महज 2 फीसदी निर्यात के लिए जल्दी कोई तीसरा देश रुपये में लेनदेन को तैयार नहीं होना चाहेगा।

मिसाल के लिए रूस को ही लिया जा सकता है। रूस ने रुपये में भारत से लेनदेन का करार तो कर लिया है लेकिन अभी तक इस करार को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। इसकी वजह भी वही है, हमारा विदेशी व्यापार कम होना। इसके लिये दुनिया के अन्य देशों से भी भारत को संपर्क साधने की जरूरत होगी। वैसे कुछ ऐसे देश भी हैं जिनसे भारत का कारोबारी संबंध दूसरों की अपेक्षा कहीं ज्यादा है। हाल ही में बांग्लादेश से भी भारत ने रुपये के जरिए ही लेनदेन की शुरुआत की है। यह अच्छी पहल है।

भारत की यह पहल

खासकर दुनिया जब अजीबोगरीब मोड़ से गुजर रही है तथा हर देश अपनी सुविधा के मुताबिक काम कर रहा है तो भारत की यह पहल बुरी नहीं है। इस मामले में बांग्लादेश के अलावा नेपाल, ब्रिटेन तथा तुर्की से भी व्यापारिक लेनदेन को बढ़ावा दिया जा रहा है लेकिन इसके साथ ही विदेशी व्यापार को उस स्तर पर ले जाने की जरूरत है जब भारत किसी भी दूसरे देश के साथ कारोबार करने के लिए रुपये को ही लेनदेन की मुद्रा के तौर पर लागू कर सके। इस कोशिश में समय लग सकता है।

हो सकता है कि निकट भविष्य में यह सपना पूरा नहीं भी हो सके लेकिन तब भी शुरुआत जो की जा रही है, उसके दूरगामी नतीजे जरूर होंगे। शायद इसी बात को समझते हुए हाल के अमेरिका दौरे पर पीएम मोदी ने दावा किया था कि जब बतौर प्रधानमंत्री पहली बार अमेरिका गए थे, तब भारत विश्व की आर्थिक व्यवस्था में दसवें स्थान पर था जबकि इस बार पांचवें स्थान पर आ चुका है। पीएम मोदी की इस बात का आशय यही है कि भारत तेजी से आर्थिक मोर्चे पर आगे बढ़ रहा है तथा यदि मौजूदा गति बरकरार रही तो यह संभव है कि सचमुच जल्दी ही दुनिया की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में भारत का उदय हो। बहरहाल, देर से ही सही लेकिन रुपये में शुरू किया जाने वाला विदेशी व्यापार भारतीय अर्थ व्यवस्था को और मजबूत ही करेगा।