मैच जिताऊ तरकीब
खिलाड़ी की प्रतिभा से कहीं अधिक उस अंपायर की भूमिका अहम होती है जो खेल के दौरान फैसले दिया करता है। भारत की सियासत में जो भी सत्तारूढ़ होता है, उस पर सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के आरोप लगते हैं। अब एनडीए सरकार पर भी इसी तरह के आरोप लग रहे हैं।
एक बार किसी क्रिकेट में भारतीय टीम के पराजय के बारे में किसी पत्रकार ने तत्कालीन कप्तान से हारने की वजह के बारे में सवाल किया। बातचीत के क्रम में विश्व एकादश टीम गठन की बात भी हो चली। भारतीय कप्तान से भी पूछा गया कि उनके मुताबिक दुनिया के किन-किन खिलाड़ियों को शामिल करने पर वह टीम सर्वश्रेष्ठ हो सकती है। इसके जवाब में भारतीय खिलाड़ी ने उस पत्रकार से कहा था कि मुझे खिलाड़ियों का चयन नहीं करना है। बस अंपायर्स मुझे पाकिस्तान से मिल जाएं तो मेरी टीम दुनिया में किसी को भी हरा सकती है। मतलब यह कि खिलाड़ी की प्रतिभा से कहीं अधिक उस अंपायर की भूमिका अहम होती है जो खेल के दौरान फैसले दिया करता है।
कानून बनाने का फैसला
प्रसंगवश ही खिलाड़ियों और अंपायर्स की बात की जा रही है क्योंकि भारत सरकार भी अंपायर्स को ही साधने की कोशिश कर रही है। भारत की सियासत में जो भी सत्तारूढ़ होता है, उस पर सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के आरोप लगते हैं। अब एनडीए सरकार पर भी इसी तरह के आरोप लग रहे हैं क्योंकि सरकार ने मार्च महीने के सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देकर नया कानून बनाने का फैसला किया है जिसके तहत कहा गया था कि चुनाव आयुक्त के चयन में प्रधानमंत्री तथा विपक्ष के नेता के अलावा देश के मुख्य न्यायाधीश को भी शामिल किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने तब यह भी कहा था कि जबतक सरकार इससे संबंधित कानून नहीं बना लेती तबतक यही नियम लागू रहेगा। गौरतलब है कि यह नियम कई मामलों में लागू होता है जिनमें सीवीसी, ईडी प्रमुख या सीबीआई के प्रमुख की नियुक्ति भी शामिल है। बताया जाता है कि तीनों प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में तीन लोगों की यह टीम ही देश के शीर्ष पदों पर नियुक्तियां करने की हकदार है।
लेकिन अंपायर बदलने की सोच पर काम किया जा रहा है। संसद के इसी सत्र में कानून मंत्री एक विधेयक लाने वाले हैं जिसमें कहा गया है कि चुनाव आयुक्त या मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में तीन लोगों की टीम ही शामिल होगी लेकिन टीम का चेहरा बदल जाएगा। इस टीम में प्रधानमंत्री तथा नेता प्रतिपक्ष तो होंगे, अलबत्ता देश के मुख्य न्यायाधीश नहीं होंगे।
चुनाव आयोग का काम
नए विधेयक के तहत मुख्य न्यायाधीश की जगह उस टीम में प्रधानमंत्री की ओर से किसी कैबिनेट मंत्री को ही शामिल किया जाएगा। ऐसा माना जाता है कि चुनाव आयोग का काम देश भर में चुनाव कराने का होता है। और चुनावी प्रक्रिया की पूरी जानकारी नेताओं या अफसरों को तो होती है, न्यायाधीशों को नहीं।
विधेयक में प्रवाधान रखा गया है कि जिन प्रशासनिक सेवा के लोगों ने कम से कम केंद्र में सचिव स्तर पर काम किया है तथा जिन्हें पूर्व में चुनाव कराने का अनुभव है- ऐसे लोगों के नाम ही चयन कमेटी के सामने पेश किए जाएंगे। उन पांच लोगों के पैनल में से किसी एक को इन तीन लोगों की टीम मुख्य निर्वाचन आयुक्त या निर्वाचन आयुक्त के तौर पर चुनेगी।
लेकिन विपक्ष का दावा है कि इस कोशिश के तहत केंद्र सरकार खिलाड़ियों के बदले अंपायर्स को ही अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है। विधेयक तो पारित हो ही जाएगा, देश के मुख्य न्यायाधीश के बदले पीएम के अति विश्वस्त किसी मंत्री को भी चयन समिति में दाखिल कर लिय़ा जाएगा। लेकिन इससे चुनावी ईमानदारी पर सवाल खड़े होंगे। विपक्ष का यह भी मानना है कि इससे चुनाव आयोग की गरिमा कम हो जाएगी। सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार करे तो बेहतर हो।