नमन नीच के अति दुखदाई

चीन के साथ भारत का सीमा विवाद कभी-कभी ऐसे मुकाम पर भी पहुंच जाता है जब दोनों ओर से फैजियों की गुत्थमगुत्थी हो जाती है। ऐसे में केवल फौजी अफसरों की बैठक से ही यदि काम चल जाता तो शायद 19 बार बैठक करने की जरूरत नहीं होती।

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गोस्वामी तुलसीदास ने जिस रामचरितमानस की रचना की है, उसमें कहानियों के अलावा कई जगह युगोपयोगी बातें भी सुझाई गई हैं। इस रचना को लेकर आजकल टीका-टिप्पणी करने वाले कई विद्वान सामने आ गए हैं जो अपनी-अपनी समझ के हिसाब से उन पंक्तियों का अन्वय किया करते हैं। बहरहाल, एक प्रसंग में उन्होंने अपनी इसी रचना में लिखा है कि यदि नीच प्रकृति का कोई अचानक आपके समक्ष नतमस्तक होता है या दोस्ताना भाव दिखाने लगे तो उस समय सावधान हो जाना चाहिए। आशय यह है कि ऐसे नीच लोग जब आपके समक्ष आत्मसमर्पण कर रहे होते हैं तो दूसरी ओर आप पर प्राणघाती हमले की योजना भी बना रहे होते हैं। उन पंक्तियों को ठीक से समझना जरूरी है क्योंकि प्रसंग ही कुछ ऐसा आन पड़ा है-

नमन नीच के अति दुखदाई,

जिमि धनु,अंकुश, उरग, बिलाई।

धनुष, अंकुश, सांप या बिल्ली में से कोई भी जब झुकता है तो सामने वाले पर हमला ही करता है। ठीक वही बात चीन के संबंध में कही जा रही है। चीन के साथ भारतीय सेना की 19वीं राउंड की बैठक समाप्त हुई है। दोनों ही ओर से सेना के अधिकारी इस बैठक में शामिल हुए और इस बात पर चर्चा हुई कि भारत और चीन की सीमाओं की रक्षा की जाएगी तथा कोई भी किसी के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश करने की गलती अब नहीं करेगा।

चीन की नाकाम कोशिश

लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब चीन की ओर से भारत को आश्वस्त किया गया हो। बार-बार यही दुहराया जाता है कि दोनों देशों की सीमाओं को सुरक्षित रखने की कोशिश होगी, किंतु बार-बार चीन की ओर से भारत के किसी न किसी हिस्से को अपना बताने की नाकाम कोशिश होती रहती है। चीन के साथ भारत का सीमा विवाद कभी-कभी ऐसे मुकाम पर भी पहुंच जाता है जब दोनों ओर से फैजियों की गुत्थमगुत्थी हो जाती है। ऐसे में केवल फौजी अफसरों की बैठक से ही यदि काम चल जाता तो शायद 19 बार बैठक करने की जरूरत नहीं होती।

फैसले व्यावहारिक नहीं

जाहिर है कि फौजी अफसरों के साथ ही राजनीतिक ताकतों को भी इस कोशिश में साथ देना होगा। दरअसल किसी भी मसले पर फौज के अधिकारियों को वह अधिकार हासिल नहीं होता जिससे वे कोई ठोस फैसला ले सकें। उनके फैसले प्रशासनिक तौर पर उतने व्यावहारिक तबतक नहीं हो सकते जबतक उनमें प्रशासनिक, कूटनैतिक व राजनैतिक ताकतों को शामिल नहीं किया जाता। यह सही है कि दो पड़ोसी देश आपस में किसी भी स्तर पर बातचीत करते रहें लेकिन चीन के लिए यह कहना सही नहीं है। उसकी विस्तारवादी सोच हमेशा इसी ताक में लगी रहती है कि भारत के सुदूर पूर्वी क्षेत्र को अथवा उत्तरी हिस्से को अपना बता दिया जाए।

बातचीत केवल औपचारिक

हाल ही में हुई गलवान घाटी की घटना को भुलाया नहीं जा सकता। इसके साथ ही अरुणाचल प्रदेश के कई हिस्सों को बार-बार चीन द्वारा अपने नक्शे में दिखाना तथा अरुणाचलवासियों को अपना नागरिक बताना उसकी नीचता का ही प्रमाण रहा है। ऐसे शत्रु से बातचीत केवल औपचारिक ही कही जा सकती है, उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

यही वजह है कि भारत सरकार ने भी चीन के तमाम विरोध के बावजूद अपनी सामरिक ताकत को लगातार सीमा पर मजबूत करना शुरू किया है। पूर्वी और उत्तरी छोर पर स्थित सेना की अग्रिम चौकी तक सामरिक साजोसामान पहुंचाने के लिए भारत को लगातार अपनी आधारभूत संरचना को मजबूत करने का सतत प्रयास करते रहना होगा। चीन जैसे पड़ोसी के लिए यही जरूरी है।