नमन्ति फलिनो वृक्षाः

फलदार पेड़ और गुणी लोग झुक जाया करते हैं लेकिन मूर्ख और सूखे पेड़ सीना ताने अड़े रहते हैं। इसमें संकेत यही है कि गुणी या कद्दावर लोगों को अपनी ताकत दिखाने की जरूरत नहीं है।

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भारतीय संस्कृति में पुरखों के जमाने से चली आ रही कहावतों या नीति वचनों की बड़ी उपयोगिता रही है। इन वचनों या उपदेशों के आधार पर ही भारतीय समाज टिका रहता है। इनसे थोड़े से विमुख हुए तो फिर लीक से फिसलने का डर बना रहता है। इसी क्रम में एक नीति श्लोक की बात आती है जिसमें आने वाली पीढ़ियों के लिए संकेत है-

नमन्ति फलिनो वृक्षाः, नमन्ति गुणिनो जनाः।

शुष्क वृक्षाश्च मूर्खाश्च, न नमन्ति कदाचन।।

उपदेश यह है कि फलदार पेड़ और गुणी लोग झुक जाया करते हैं लेकिन मूर्ख और सूखे पेड़ सीना ताने अड़े रहते हैं। इसमें संकेत यही है कि गुणी या कद्दावर (आज के परिप्रेक्ष्य में) लोगों को अपनी ताकत दिखाने की जरूरत नहीं है। सीधा-सा मतलब यह है कि जब आप क्षमतावान बनते हैं तो आप में विनम्रता का होना जरूरी है।

इस मामले में पश्चिम बंगाल के शासक दल तृणमूल कांग्रेस के एक शीर्ष नेता का उल्लेख जरूरी हो जाता है। बंगाल में कथित तौर पर कई घोटाले हुए हैं जिनकी जांच हो रही है। इसमें विपक्ष की ओर से बार-बार टीएमसी के एक बड़े नेता का नाम लिया जा रहा है। हालांकि उस नेता ने यह पहले भी कहा है कि किसी भी घोटाले में अगर मेरी संलिप्तता का रत्ती भर भी सबूत मिलता है तो मैं दंड का भागी हूं। युवा नेता खुद भी एक सांसद हैं। लेकिन उन्होंने कलकत्ता हाईकोर्ट के जजों पर जिस तरह निशाना साधा है तथा खासकर एक विशेष जज का नाम लेकर उनपर पक्षपात करने का जो आरोप लगाया है, उसकी निंदा हो रही है।

किसी भी कद्दावर नेता के मुंह से ऐसी ओछी बातें अशोभनीय लगती हैं। उन्हें खुद मुख्यमंत्री से ही सीख लेनी चाहिए। हर चुनावी जीत के बाद सीएम ममता बनर्जी खुद कहा करती हैं कि जनता का प्यार तृणमूल कांग्रेस के लिए जितनी तेजी से बढ़ा है, जनता ने शासक दल पर जिस तरह का भरोसा जताया है-उससे शासक दल के लोगों को और भी विनम्र होने की जरूरत है। दरअसल तृणमूल कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं को शिकायत है कि जजों का एक वर्ग जानबूझकर भाजपा के लोगों को महत्व दे रहा है।

कोई भी जज भगवान नहीं है, गलती उनसे भी हो सकती है। लेकिन किसी जज के फैसले से अगर किसी को असंतोष है तो उन्हें ऊपरी अदालत में अपील करने की पूरी छूट है। हर राजनेता को यह अधिकार हासिल है। उन्हें कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ उचित फोरम में शिकायत करनी चाहिए लेकिन राजनीतिक तौर पर किसी जज का नाम लेकर दोषारोप करना विनम्रता का परिचायक नहीं है। उनकी टिप्पणी से कुछ भूतपूर्व जजों को भी तकलीफ हुई है। कुछ जजों की ओर से नेता के बयान की तीव्र निंदा भी की जा रही है। ऐसे में जरूरी यही है कि कद्दावर लोग कम से कम संभल कर बोलें।

न्यायालय के प्रति देश की अवाम में जो विश्वास है, उस आस्था का सम्मान किया जाना चाहिए। यह सही है कि जब भी अदालत किसी सरकार के खिलाफ फैसला देती है तो सियासी बवाल मचता है। इस कड़ी में एनडीए सरकार के पूर्व कानून मंत्री भी शामिल रहे हैं जो सुप्रीम कोर्ट के जजों की आलोचना करते रहे हैं। लेकिन आलोचना करने वाले राजनेताओं को पहले खुद के गिरेबान में झांकना चाहिए। जजों की तुलना में राजनेताओं ने अपनी साख खो दी है।  जरूरी है कि राजनेता अपनी साख बनाने की कोशिश करें और इसके लिए विनम्र होने की जरूरत है। उद्दंडता केवल अनुशासनहीनता को जन्म देती है, इससे समाज लीक से हट जाता है और अराजकता फैलती है। न्यायपालिका का सम्मान जरूरी है।