नये युग की नई चुनौती

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युगों में जैसे-जैसे परिवर्तन होता जाता है, इंसानी फितरत और सहूलियतें भी अपने आप बदलती रहती हैं। अभी कोई ढाई-तीन दशक पहले तक इस बात की कल्पना भी नहीं कर पाता था कि गली-मुहल्ले में चलने वाले एसटीडी बूथ हमेशा के लिए खामोश कर दिए जाएंगे। नई क्रांति के रूप में उभरे उन बूथों पर लोगों की कतारें देखते ही बनती थीं। लेकिन परिवर्तन हुआ, बूथ गायब। जीवन के हर क्षेत्र में ऐसे ही इंसान लगातार तरक्की(?) करता चला गया। मिलती रहीं सुविधाएं और कदम-दर-कदम मंजिल की तलाश बढ़ती गई। इसी क्रम में एक नई क्रांति आई है जिसे नेट दुनिया कहा जाता है। इस नेट दुनिया ने तरह-तरह के सोशल प्लेटफॉर्म तैयार कर दिए जिनसे लोगों में हमेशा कनेक्ट रहने की भूख बढ़ती जा रही है।

किसी को परवाह नहीं है

कनेक्ट होने की टीस कुछ इस कदर है कि अपने सगे-संबंधियों से लोग कनेक्ट नहीं होते-आभासी दुनिया में विचरण कर रहे होते हैं। इसकी खास वजह भी है और जरूरत भी। अपनों की दुनिया में विचरे तो छोटे-बड़े का लिहाज रखना होगा। सामाजिक मान्यताओं की मजबूरियां झेलनी होंगी। लेकिन आभासी दुनिया में किसी की किसी को परवाह नहीं है। नेट के जरिए दुनिया के किसी भी कोने में जा पहुंचिए। एक आनंद की बात और है। इस दुनिया में सिर्फ लाइक, कमेंट्स (वो भी अच्छे वाले), शेयर और सब्सक्राइब की छूट है लेकिन डिसलाइक (नापंसद) करने का प्रावधान नहीं है। मनभावन है ये दुनिया। लेकिन इस दुनिया में विचरने वाले लोग दिमागी तौर पर इतने बीमार हो जाते हैं कि जैसे ही कोई भड़काऊ बात उनके साथ शेयर की जाती है- वे भी लगते हैं धड़ल्ले से शेयर करने। दिमाग पर जोर देने की जहमत जल्दी कोई नहीं मोल लेना चाहता है। लेकिन इस लाइक और शेयर के चक्कर में समाज का कितना नुकसान होता है, इसकी चिंता कम लोगों को ही होती होगी।

वाइरल करने की होड़

आजकल भारत में धार्मिक (जो अधार्मिक हैं) खबरें फटाफट वाइरल करने की होड़ चल रही है। वाइरल करने से पहले कोई जल्दी अपने दिमाग पर जोर देना नहीं चाहता। वाइरल करने का नतीजा क्या होता है-इसकी ताजा मिसाल मणिपुर में देखने को मिली, बंगाल में रामनवमी के मौके पर देखने को मिली। मजबूरन सरकार को नेट सेवाओं पर पाबंदी लगानी पड़ी। वजह यह है कि आभासी दुनिया में विचरण करने वाले लोग मनगढ़न्त घटनाओं को भी सनसनी के तौर पर परोसने लगते हैं ताकि उन्हें लाइक मिले। और सरकार मजबूरन तुरंत इंटरनेट सेवा को बंद करके अपना होमवर्क पूरा समझ लेती है। लेकिन इस मामले में भारत सरकार को फ्रांस से सीख लेने की जरूरत है।

सिरफिरों से पूरे समाज को परेशानी

फ्रांस में इन दिनों लगातार हंगामा जारी है। लोगों का गुस्सा सरकारी दफ्तरों पर फूट पड़ा है, हिंसा थम नहीं रही। लेकिन किसी भी सूरत में इंटरनेट सेवा को बंद नहीं किया गया। इसकी वजह यह कि सरकार को पता है कि इंटरनेट सेवाओं का प्रयोग जितने बलवाई कर रहे हैं, उससे ज्यादा देश की सुरक्षा में लगे लोग या डॉक्टर्स, इंजीनियर्स अथवा अदालतें कर रही होती हैं। इस सेवा पर अंकुश लगाने का मतलब है चंद सिरफिरों की वजह से पूरे समाज को परेशानी।

फ्रांस ने सोशल मीडिया चलाने वाली कंपनियों से संयम बरतने की अपील तो की है मगर आम लोगों के हितों को ध्यान में रखकर इंटरनेट सेवा पर रोक नहीं लगाई है। इस सोच का स्वागत किया जाना चाहिए और हो सके तो भारत में भी सेवा प्रदाता कंपनियों की नकेल कसी जाए। सेवा बंद करने का कोई फायदा नहीं है। मिसाल मणिपुर ही है जहां दो महीने से लगातार इंटरनेट सेवा बंद है लेकिन हिंसा थमी नहीं।