सीमा पार की साजिश
भारत में किसी घटना के होने का सीधा संबंध पड़ोसी पाकिस्तान से जोड़ कर लोग खुद के कर्तव्य की इतिश्री मानते हों। क्योंकि पाकिस्तान का नाम आते ही कुछ दलों को दोहरा लाभ मिलता है। इसलिए भी पाकिस्तान का नाम लिया जा सकता है।
मणिपुर की हिंसा अभी शांत तक नहीं हुई कि हरियाणा को नए सिर से हिंसा की आग में झोंक दिया गया। हिंसा भी ऐसी जिसे सांप्रदायिकता का रूप दे दिया गया। हो सकता है कि सियासी फायदा लेने के लिए ही जानबूझकर दंगे को भड़काया गया। एक पक्ष की धार्मिक यात्रा पर अचानक पथराव करना या नारे लगाना तो था ही, उसके साथ ही पहाड़ियों से मंदिर में दाखिल होने वालों पर गोलियों की बारिश करना भी कहीं न कहीं किसी बड़े षड्यंत्र का संकेत दे रहा है।
इस बीच हरियाणा पुलिस तथा खासकर खुफिया विभाग की ओर से जो ताजा जानकारी भेजी गई है उसमें कहा गया है कि इस्लामाबाद तथा अन्य दूसरे शहरों में बैठे आतंक के आकाओं की ओर से हरियाणा के नूंह में आग जलाई जा रही थी। पुलिस का यह भी दावा है कि पाकिस्तान में बैठे आतंकी हरियाणा में अपने शागिर्दों को नफरत भरे संदेश भेज रहे थे, जिससे अचानक माहौल विस्फोटक हुआ और भीड़ ने अपना आपा खोया। हरियाणा पुलिस के इस खुलासे से दो बातें सामने आती हैं।
खुफिया तंत्र पूरी तरह फेल
पहली बात यह कि हरियाणा पुलिस तथा खुफिया तंत्र पूरी तरह फेल हुआ है। यदि प्रशासन की नाक के नीचे इतनी बड़ी साजिश रची जा रही थी तो जाहिर है कि पुलिस सो रही थी। किसी भी गुट की साजिश इस पैमाने पर सफल हो जाए, यह कुछ दिनों में नहीं हुआ करता है। इसके लिए लंबा समय, पैसा तथा ग्राउंड टीम लगती है। ग्राउंड की टीम या स्लीपर सेल तैयार करने में भी वक्त लगता है। जाहिर है कि इसमें पुलिस निष्क्रिय रही।
दूसरी बात यह भी हो सकती है कि भारत में किसी घटना के होने का सीधा संबंध पड़ोसी पाकिस्तान से जोड़ कर लोग खुद के कर्तव्य की इतिश्री मानते हों। क्योंकि पाकिस्तान का नाम आते ही कुछ दलों को दोहरा लाभ मिलता है। इसलिए भी पाकिस्तान का नाम लिया जा सकता है। वैसे, इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इतनी व्यापक मात्रा में हिंसा फैलाने में पाक का हाथ नहीं रहा होगा।
सियासत का अजीब चेहरा
दरअसल भारतीय प्रायद्वीप में सियासत का भी अजीब चेहरा है। दिल्ली की सियासत जब डगमगाने लगती है तो इस्लामाबाद का नाम लिया जाता है और इस्लामाबाद में सियासी रूप से मजबूत होने के लिए दिल्ली की ओर इशारा किया जाता है। यह सिलसिला लंबे समय से जारी है। किंतु पाकिस्तान जिस हालत से फिलहाल गुजर रहा है तथा जिस तरह भारत से लगातार वार्ता की पेशकश कर रहा है, उससे यही लगता है कि वह हर हाल में भारत के साथ खुद को जोड़ने की कोशिश में है।
मतलब यह बेमानी नहीं कि पाक की धरती पर मौजूद आतंकियों को आईएसआई ने प्रशिक्षित करके हरियाणा में किसी चरमपंथी गुट को सक्रिय करने की सोची होगी। इसकी वजह भी है। वजह यह है कि आनंदपुर साहेब प्रस्ताव पर पाक ने एक बार फिर से पंजाब की हवा को गरम करना शुरू कर दिया है।
खालिस्तानी गुटों को लगातार पाकिस्तान की धरती से सहयोग दिया जा रहा है। इसलिए हो सकता है कि हरियाणा के नूंह या गुरुग्राम में हुए हाल के दंगों को भड़काने में पाकिस्तानी तत्व शामिल रहे हों। लेकिन तब भी यही कहा जाएगा कि कानून-व्यवस्था को सुदृढ़ करने या खुफिया तंत्र को मजबूत करने में कहीं न कहीं हरियाणा प्रशासन से चूक हुई। जानबूझकर की गई किसी ऐसी संभावित गफलत में शामिल प्रशासनिक लोगों की जवाबदेही भी तय की जानी चाहिए। केवल घटना का दोष दूसरों पर मढ़ कर खामोश रहा गया तो आने वाले कल की पोटली में अभी और जख्म मौजूद हो सकते हैं।