वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति

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वैदिकी से लोकतंत्र का संबंध शायद लोगों को अटपटा लगे, मगर वैदिक सोच से ही लोक संस्कृति की उत्पत्ति होती है। वैदिक शब्द का अनर्थ न हो अथवा कोई दूसरा मतलब नहीं निकालना चाहिए। वेद का मतलब है ज्ञान। और समाज का गठन इस ज्ञान के आधार पर ही हुआ। आहिस्ता-आहिस्ता इंसान ने अपने बनैलेपन से तौबा किया, आत्मज्ञान से अनुभव हासिल किया और उन अनुभवों को अपने बाद की पीढ़ियों को सौंपता चला गया। इससे बना समाज। और समाज में जब तरह-तरह की शासन व्यवस्था जन्मी तो उससे निकला लोकतंत्र। वैसे, राजकाज चलाने के लिए और भी कई मार्ग हैं मगर भारत में लोकतंत्र का ही दौर है।

यहां वैदिकी से मतलब ज्ञान से अर्जित व्यवस्था से है। लेकिन बाद के कुछ लोगों ने इसे राजनीति के साथ जोड़ते हुए कहना शुरू किया है कि राजनीति से जुड़े लोगों द्वारा किसी तरह की हिंसा अगर की जाती है तो उसे हिंसा न समझा जाए। बात जरा अटपटी लगती है। मगर अर्थ का लोगों ने अनर्थ जरूर कर दिया है। और यही अनर्थ आजकल बंगाल में देखने को मिल रहा है।

पंचायत चुनाव का शंखनाद

पंचायत चुनाव का शंखनाद हो चुका है। हर जिले में प्रायः हर दल के नेता अपने-अपने तरीके से लोगों को अपने पक्ष में मतदान करने के लिए समझा रहे हैं। यही प्रथा भी है। लेकिन इसमें एक बात गौर करने लायक है। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जहां विनम्र होकर जनता की सेवा का व्रत लेने का उपदेश दे रखा है, वहीं उनकी पार्टी के कुछ लोग जनता को लगातार खुलेआम धमका रहे हैं। धमकी यह दी जा रही है कि अगर हमारी जीत नहीं हुई तो जनता को मुफ्त में दी जा रही सुविधाएं छीन ली जाएंगी। कोई स्वास्थ्य साथी कार्ड को निष्क्रिय करा देने की धमकी दे रहा है तो कोई मुफ्त में मिल रहे राशन को ही बंद करने की बात कह रहा है। कन्याश्री योजना का लाभ नहीं मिल पाने की धमकी देकर ही कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि हर महीने लक्ष्मी भंडार के नाम पर महिलाओं के खाते में मिलने वाले पांच सौ रुपये भी बंद कर दिए जाएंगे। मतलब यह कि धमकी देकर वोट लेने की कोशिश हो रही है।

मजेदार बात यह है कि राज्य की मुख्यमंत्री ने किसी को भी यह सीख नहीं दी है। ममता बनर्जी सबके लिए काम करने की बात कहती हैं और यही वजह है कि बंगाल के लोग ममता को घर की बेटी मानते हैं। लेकिन शासक दल की धौंस दिखाकर मतदाताओं को धमकाने वाले ये फुटकर नेता खुद को सीएम से भी आगे समझने लगे हैं।

लगाम कसी जानी चाहिए

इनकी बातों पर लगाम कसी जानी चाहिए। लोकतंत्र में जिसकी भी सरकार बनती है वह सरकार जनता के हितों के लिए होती है, धमकाने या ब्लैकमेल करने के लिए नहीं होती। पंचायत चुनाव के नतीजे चाहे जिसके भी समर्थन में जाएं, इससे राज्य सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं होने वाला है। फिर भी लोगों को धमकाया जा रहा है। ऐसे ही लोग खुद को तृणमूल कांग्रेस का सिपाही कहकर पार्टी को बदनाम कर रहे हैं। हो सकता है कि इनकी धमकी से नतीजे सार्थक भी आ जाएं लेकिन इससे मुख्यमंत्री की साख गिरती है।

सत्ता द्वारा दी गई धमकी को भी हिंसा ही कहा जाता है। लेकिन शायद लोकतंत्र का ही बुरा वक्त चल रहा है। लोकतंत्र के नाम पर दी जा रही इस धमकी को हिंसा कहें भी तो यह हिंसा नहीं है क्योंकि समरथ को नहीं दोष गुसाईं अर्थात समर्थ लोगों के अन्याय को भी अन्याय नहीं माना जाता।