नीचता की हद

इजरायल-फिलिस्तीन की लड़ाई का हश्र चाहे जो हो, भारतीय राजनेताओं ने हवा को अपने पक्ष में करना शुरू कर दिया है। भारत में भारतीय जनता पार्टी अगर इजरायल के पक्ष में खड़ी है तो कांग्रेस ने फिलिस्तीन का समर्थन किया है। इसी मसले पर भारत में चुनावी सियासत शुरू हो गई है।

89

देश की प्रांतीय भाषाओं में सबसे अग्रणी बांग्ला को माना जाता है क्योंकि यह भाषा पश्चिम बंगाल के अलावा, त्रिपुरा व बांग्लादेश के साथ ही देश के कई राज्यों में बोली और समझी जाती है। इस भाषा के विद्वानों ने एक कहावत रच डाली है जिसमें कहा गया है- कारो पौष मास, कारो सर्वोनास अर्थात किसी की बर्बादी भी किसी और के लिए जश्न की वजह बन जाती है।

बांग्ला की यह कहावत अब भारत के परिप्रेक्ष्य में जीवंत हो चली है क्योंकि यहां चुनावी बिगुल फूंका जा चुका है और पांच राज्यों के लिए होने वाले इन चुनावों को ही दिल्ली की सत्ता के लिए सेमीफाइनल माना जा रहा है। वैसे, यह बात दीगर है कि विधानसभा और लोकसभा के चुनावों का दायरा अलग होता है, उनका प्रभाव क्षेत्र अलग होता है तथा आमतौर पर विधानसभा के चुनावी नतीजे लोकसभा के चुनावों से अलग ही हुआ करते हैं। फिर भी भारत में चुनाव सामने हो तो हर बात को मुद्दा बनाया जा सकता है।

एक अनचाही लड़ाई शुरू

बहरहाल जिस बांग्ला कहावत की बात कही जा रही है, उसका सीधा असर भारतीय सियासत पर पड़ने लगा है। दरअसल संयोग से फिलिस्तीन और इजरायल के बीच एक अनचाही लड़ाई शुरू हो चुकी है। दोनों देशों की यह लड़ाई कोई नयी नहीं है। लेकिन हमास नामक आतंकी संगठन ने जिस तरह इजरायली लोगों को हमले का शिकार बनाया है तथा जैसे इजरायल के नागरिकों का अपहरण करके उनपर बर्बर अत्याचार किया जा रहा है, उससे भारत के लोगों में भी रोष है। रोष तो है लेकिन मजहब के आधार पर लोग बंट चुके हैं। जिन लोगों को भारत में इस्लामी दुनिया से हमदर्दी है, वे फिलिस्तीन का समर्थन कर रहे हैं तथा हमास की कार्रवाई का समर्थन भी पुरजोर तरीके से किया जा रहा है, उनके साथ समाज का एक धार्मिक वर्ग खड़ा हो गया है।

घिनौनी सियासत आखिर क्यों?

दूसरी ओर एक वर्ग वह भी है जो इजरायल को अपना दोस्त मानता है तथा यहूदी समाज के साथ हमदर्दी रखता है। मतलब यह कि इजरायल-फिलिस्तीन की लड़ाई का हश्र चाहे जो हो, भारतीय राजनेताओं ने हवा को अपने पक्ष में करना शुरू कर दिया है। भारत में भारतीय जनता पार्टी अगर इजरायल के पक्ष में खड़ी है तो कांग्रेस ने फिलिस्तीन का समर्थन किया है। इसी मसले पर भारत में चुनावी सियासत शुरू हो गई है। भाजपा जहां इजरायल का समर्थन करके हिन्दू मतदाताओं की हमदर्दी जुटाने में लगी है वहीं कांग्रेस पर हमास का समर्थक होने का तोहमत लगाकर उसे मुसलमानों की हमदर्द बताने की सियासी कोशिश हो रही है। इससे घिनौनी सियासत आखिर क्य़ा हो सकती है।

चुनावी रोटी सेंकने की कोशिश

इजरायल हो या फिलिस्तीन, दोनों ही देशों में इंसानियत लहूलुहान हो रही है। इस तरह की घटनाओं की विश्वव्यापी निंदा की जानी चाहिए तथा प्रयास होना चाहिए कि खूरेंजी बंद हो। लेकिन भारत में इस बात पर लोग फूले नहीं समा रहे कि अमुक ने अमुक का बदला ले लिया। किसी का देश जल रहा है, किसी की इज्जत लूटी जा रही है, किसी की हत्या हो रही है और इन घटनाओं पर कोई चुनावी रोटी सेंकने की कोशिश कर रहा है। इसे ही बांग्ला कहावत से जोड़ा जा सकता है। इजरायली या फिलिस्तीनी अवाम का सर्वनाश हो रहा है जबकि भारत के सियासी दल विध्वंस को भी चुनावी हथियार बनाने में लगे हैं। घृणित है यह मानसिकता।