त्यौहारों की प्रासंगिकता

त्यौहारों का आर्थिक क्षेत्र में भी बड़ा महत्व हुआ करता है। बरसात के मौसम में जो कारोबारी हानि हुआ करती है, त्यौहारों के आते ही उस घाटे को पूरा करने का अवसर व्यापारियों को मिल जाता है। कारोबार को भारी मात्रा में रसद और पूँजी मिल जाती है जिसके बूते आगे की राह आसन होने लगती है।

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दीपावली की शुभकामनाओं के साथ यह बेहद जरूरी हो गया है कि पाठकों से इस बात की चर्चा की जाए कि त्यौहारों की अवधारणा के पीछे की मानसिकता क्या है। आज तेजी से बदलते समाज में कुछ लोग जरूर मिल जाएंगे जो त्यौहारों की जरूरत पर सवाल करते हैं तथा परंपराओं को ढकोसला बताने की अपनी स्वयंसिद्ध बुद्धि का परिचय दिया करते हैं। लेकिन यदि गहराई तक जाएं तो पता चलता है कि त्यौहार मनाने की जो भारतीय परंपरा रही है, उसमें कहीं न कहीं ऋषियों की वैज्ञानिक सोच काम करती रही है। और इन्हें अनिवार्य मानकर ही समाज ने इन्हें अपनाया था।

यह और बात है कि आधुनिक समाज के लोग हाल ही में करवा चौथ को लेकर महिलाओं की सोच पर मिम्स बनाते रहे हैं। इसके विरुद्ध कई तरह की दलीलें दी जाती रही हैं। वैसे ही हरतालिका तीज को लेकर भी तरह-तरह के बयान आते हैं। यहां तक कि गणगौर के बारे में भी आधुनिक सोच के लोगों की दलीलें अजीबोगरीब हैं। लेकिन इन त्यौहारों के पीछे की सोच को समझना जरूरी है।

त्यौहारों की जरूरत

सबसे खास बात है कि तपती गर्मी के बाद बरसात और ठीक उसके बाद शारदीय नवरात्रि से शुरू होने वाले पर्वों में सबसे ज्यादा सफाई का ध्यान दिया जाता है। भारतीय आबोहवा में गरमी और बारिश से थक चुकी जनता शरदकाल के त्यौहारी मौसम का आनंद लेने लगती है। ऐसे में जो मौसमी बदलाव होते हैं, उनका लोगों के मन-मष्तिष्क पर व्यापक प्रभाव होता है। मौसमी तनाव मन पर हावी न हो जाए, उससे बचने के लिए त्यौहारों की जरूरत महसूस की गई। त्यौहारों के नाम पर ही सफाई के साथ लोगों का एक दूसरे से मिलना-जुलना शुरू होता है। मेल-मिलाप और वार्तालाप से इंसान भीतर से हल्का होता है, उसे मानसिक तनाव से राहत मिलती है।

इसके साथ ही रंग-बिरंगे परिधानों से सुसज्जित होकर घूमना-फिरना मन को और हल्का कर देता है। इस क्रम में महिलाओं के मिम्स बनाने वालों को भी बताना जरूरी है कि घरेलू महिलाओं का आपसी मेलजोल समाज में कम ही हो पाता है। खासकर उनका जो ग्रामीण माहौल में जी रही हैं, उन महिलाओं के पास घरेलू काम के अलावा खुद को हल्का करने का दूसरा साधन नहीं हुआ करता। मगर त्यौहारी मौसम में उन्हें अपनी सहेलियों से बातचीत करने, अपनी भावनाओं को शेयर करने तथा घूमने-फिरने का मौका मिल जाया करता है। लिहाजा उन्हें भी मानसिक तनाव या एकरंगी जिंदगी के रंग बदलने का अवकाश मिल जाता है।

दीपावली की शुभकामनाएं

इसके अलावा त्यौहारों का आर्थिक क्षेत्र में भी बड़ा महत्व हुआ करता है। बरसात के मौसम में जो कारोबारी हानि हुआ करती है, त्यौहारों के आते ही उस घाटे को पूरा करने का अवसर व्यापारियों को मिल जाता है। कारोबार को भारी मात्रा में रसद और पूँजी मिल जाती है जिसके बूते आगे की राह आसन होने लगती है। व्यापारी वर्ग के अलावा कामगारों को भी त्यौहारों के नाम पर काम मिलना शुरू हो जाता है जिससे उनकी भी आर्थिक हालत में सुधार होने लगता है। मतलब यह कि त्यौहारों के जरिए पूरे समाज को एक सूत्र में पिरोने का जो काम भारतीय समाज के पुरखों ने किया था, वह कहीं से भी अवैज्ञानिक या अप्रासंगिक नहीं है। हाँ, कुछ मायने में विकृतियां जरूर आ गई हैं। उनसे निपटने की सोच रखी जाए लेकिन त्यौहारों की निंदा करने से बेहतर है कि उनकी उपयोगिता का लाभ उठाया जाए।