कोलकाता: महंगाई भत्ता (डीए) की मांग को लेकर आंदोलनरत सरकारी कर्मचारियों को पुलिस की ओर से शांतिपूर्वक रैली की अनुमति नहीं दिए जाने पर कलकत्ता हाई कोर्ट ने सवाल खड़ा किया है। न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा की एकल पीठ ने मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार से पूछा कि महंगाई भत्ता की मांग पर अगर शांतिपूर्वक तरीके से रैली निकालना चाहते हैं तो सरकार को समस्या क्यों है?
सरकारी कर्मचारियों के संगठन ने पुलिस से सचिवालय घेराव के लिए रैली निकालने की अनुमति मांगी थी लेकिन सरकार ने इनकार कर दिया। जिसके खिलाफ सोमवार को हाई कोर्ट में याचिका लगाई गई थी। मंगलवार को सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति मंथा ने कहा, ‘विरोध लोगों का मूल अधिकार है। जो लोग इस मामले में विरोध कर रहे हैं वो राज्य सरकार के कर्मचारी हैं। राज्य इस संबंध में प्रतिबंध लगा सकता है लेकिन कार्यक्रम को नहीं रोक सकते।’
उन्होंने कहा, ’30 से 40 मामले मेरे पास जुलूस निकालने की इजाजत मांगने आए हैं। जुलूस निकालने के लिए बार-बार कोर्ट को दखल क्यों देना पड़ रहा है?’
इसके बाद जस्टिस मंथा ने राज्य से कहा, ‘अगर शांतिपूर्ण आंदोलन है तो दिक्कत कहां है? विरोध या शांतिपूर्ण विरोध मौलिक अधिकार है। जुलूस की मंजूरी से इनकार नहीं किया जा सकता।’
उल्लेखनीय है कि अगले गुरुवार को समन्वय समिति सहित सरकारी कर्मचारियों के कई संगठनों ने सचिवालय अभियान की अनुमति के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है।
जस्टिस ने कहा, ‘आंदोलनकारी अपनी मुश्किलें बताना चाहते हैं। अगर यह शांतिपूर्ण है तो मैं इसे क्यों रोकूं? प्रतिबंध लगा सकते हैं लेकिन ऐसे कार्यक्रमों को नहीं रोक सकते।’
संयोग से, डीए का मामला अब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है। जब उस विषय को अदालत में उठाया गया, तो न्यायमूर्ति मंथा ने जवाब दिया, ‘मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने रैली पर रोक नहीं लगाई है।’ बहरहाल, रैली को अनुमति देने या नहीं देने पर फिलहाल उन्होंने फैसला नहीं सुनाया है।