जस यूपी, तस बिहार

पहले सियासत में बीमारू राज्यों की बात की जाती थी जिनमें बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश का नाम भी शामिल था। बाद में केंद्र की मोदी सरकार ने बीमारू नाम को बदलने का दावा किया। यह दावा कितना सही है, इसकी तस्वीर सामने आने लगी है। बीमार लोगों को इलाज की जरूरत होती है, लिहाजा सबसे पहले इलाज की व्यवस्था पर ही बात की जानी चाहिए।

83

पहले सियासत में बीमारू राज्यों की बात की जाती थी जिनमें बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश का नाम भी शामिल था। बाद में केंद्र की मोदी सरकार ने बीमारू नाम को बदलने का दावा किया। यह दावा कितना सही है, इसकी तस्वीर सामने आने लगी है। बीमार लोगों को इलाज की जरूरत होती है, लिहाजा सबसे पहले इलाज की व्यवस्था पर ही बात की जानी चाहिए। मध्य प्रदेश और राजस्थान की हालत पहले से कुछ बेहतर जरूर हुई है लेकिन बिहार और उत्तर प्रदेश की हालत के बारे में जानकर हैरानी ही होती है।

स्वास्थ्य सेवाओं की हालत

बिहार के बारे में बताया जाता है कि नए डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने में यह राज्य सबसे निचले पायदान पर चल रहा है जबकि उत्तर प्रदेश इतनी बड़ी आबादी को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं तक नहीं दे पाता। योगी आदित्यनाथ की सरकार के आने से पहले ही बताया जाता था कि यूपी में स्वास्थ्य सेवाओं का सरकारी क्षेत्र में बहुत बुरा हाल रहा है। लोगों को उम्मीद जरूर रही है कि योगी की सरकार में इन सेवाओं की हालत सुधरेगी। लेकिन सरकारी क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत के बारे में हाल में जो रिपोर्ट आई है, उससे हैरत होती है।

ग्रामीण उत्तर प्रदेश में जन स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या में बढ़ोतरी करने के निर्देश दिए गए थे। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने सभी नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा देने के लिए आयुष्मान भारत नामक परियोजना की शुरुआत की थी। इस परियोजना के तहत देश के हर नागरिक को पांच लाख रुपये तक के मुफ्त इलाज की घोषणा की गई है। लेकिन आलम यह है कि यदि जन स्वास्थ्य केंद्र ही नहीं हों तो लोग किससे संपर्क करें। पता चला है कि तकरीबन दो सौ जन स्वास्थ्य केंद्र बनाने की बात की गई थी लेकिन ऐसे केंद्र अबतक बन कर तैयार ही नहीं हुए हैं।

हालत सुधरने की उम्मीद

समझा जाता है कि ग्रामीण उत्तर प्रदेश में जब स्वास्थ्य सेवाओं का आधारभूत ढांचा ही नहीं बन सका है तो फिर यहां के लोगों को सेवाएं कैसे मिलेंगी। इसकी एक बानगी गोरखपुर के सरकारी अस्पताल में ही देखी गई थी। ज्ञात रहे कि गोरखपुर के सरकारी अस्पताल में कोरोना के दौरान सैकड़ों बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी के कारण हो गई थी। उसके बाद हालत सुधरने की उम्मीद जरूर थी लेकिन हाल की रिपोर्ट यही बताती है कि ऐसा कुछ भी नहीं हो सका है। ऐसे में यदि केंद्र की आयुष्मान भारत योजना यूपी में विफल हो जाती है, आम लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पाता है तो इसका ठीकरा किसके सिर फोड़ा जाएगा।

आधारभूत ढांचा ही तैयार नहीं

कुछ ऐसी ही हालत नीतीश कुमार के बिहार की भी है। बिहार में तमाम सुविधाओं के बावजूद स्वास्थ्य सेवाओं का आधारभूत ढांचा ही तैयार नहीं हो पा रहा है। कहने को यदि सरकारी अस्पताल या जन स्वास्थ्य केंद्र मौजूद भी हों और वहां कोई इलाज के लिए डॉक्टर नहीं हो तो आम लोगों को मजबूरन सरकारी क्षेत्र से अलग निजी अस्पतालों की शरण में जाने के सिवा कोई रास्ता नहीं है। दरअसल जन स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर बिहार में भी वही हुआ है जो उत्तर प्रदेश में देखा जा रहा है। केवल नारेबाजी या पोस्टरबाजी से हालात नहीं सुधर सकते। समय तेजी से बीत रहा है। जरूरी है कि उत्तर प्रदेश और बिहार के नागरिकों को सरकारी तौर पर बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने की व्यवस्था हो। केवल सियासत से जनता का भला नहीं होने वाला।