जुबान की फिसलन ठीक नहीं
370 के हटने तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस कार्रवाई को जायज ठहराने के बाद इन्होंने नए सिरे से जहर उगलना शुरू किया है। मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी महबूबा मुफ्ती की बातों पर गौर करें तो उनका कहना है कि धारा 370 के मसले पर गांधी का भारत हारा है। शर्म आनी चाहिए इस तरह की बयानबाजी करने वालों को। महबूबा मानती हैं कि लड़ाई अभी बाकी है। इसके लिए लोगों को तैयार रहने का आह्वान कर रही हैं।
देश की आजादी के साथ ही भारत और पाकिस्तान की कहानी शुरू हो गई थी। दोनों मुल्कों में दुश्मनी कुछ ऐसी रही कि अबतक कई बार पाकिस्तान की ओर से भारत पर जंग लादी गई मगर अफसोस पाक किसी भी जंग में जीत नहीं सका। बल्कि उल्टे 1971 की जंग में उसे अपने हाथ-पैर तुड़वाने पड़े थे और पूर्वी पाकिस्तान उससे आजाद होकर एक नया देश बना जिसे आज का बांग्लादेश कहा जाता है। इसके बावजूद पाक की नापाक हरकतें कभी थमी नहीं। वह जम्मू-कश्मीर में लगातार मजहबी दीवारें खड़ी करता रहा और इसमें सबसे ज्यादा फायदा उसे धारा 370 के कारण मिलता रहा।
इसी धारा के तहत भारतीय भूखंड के किसी दूसरे हिस्से के निवासी गैर कश्मीरी को घाटी में रहने, विवाह संबंध बनाने या कारोबार करने की इजाजत नहीं थी। यही वह कानून था जिसका लबादा ओढ़कर हुर्रियत जैसे कई संगठनों के नाम पर घाटी के दर्जनों नेता दिल्ली से करोडों रुपये वसूला करते थे। इन रुपयों से आम कश्मीरी का भले ही कुछ भला न हो मगर ये कथित नेता गुलछर्रे उड़ाते रहे। भारत की खाते और भारत को ही गालियां दिया करते थे। यहां तक कि जिस भारतीय फौज के जवान इनकी सुरक्षा करते थे, उन पर ये पथराव भी कराते रहे हैं।
सरकारी पैसे से अपने बच्चों की तालीम विदेशों में कराते थे और आम कश्मीरी लोगों के बच्चों के स्कूलों में आग लगवा दिया करते थे। जिस घाटी में सूफी परंपरा के तहत आध्यात्मिक सोच पनपती थी, वहां पाकिस्तान से हाथ मिलाकर इन कट्टरपंथी नेताओं ने फिजाओं में जहर भरने का काम किया- इसी धारा की बदौलत।
लेकिन 370 के हटने तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस कार्रवाई को जायज ठहराने के बाद इन्होंने नए सिरे से जहर उगलना शुरू किया है। मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी महबूबा मुफ्ती की बातों पर गौर करें तो उनका कहना है कि धारा 370 के मसले पर गांधी का भारत हारा है। शर्म आनी चाहिए इस तरह की बयानबाजी करने वालों को। महबूबा मानती हैं कि लड़ाई अभी बाकी है। इसके लिए लोगों को तैयार रहने का आह्वान कर रही हैं। शायद महबूबा भूल गईं कि इनके वालिद साहब जब देश के गृहमंत्री हुआ करते थे तो घाटी में क्या-क्या गुल खिलाए जाते थे।
देश आज भी नहीं भूला है कि महबूबा की ही बहन तथा तत्कालीन भारत के गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबिया सईद के अपहरण का नाटक कैसे किया गया तथा रुबिया की रिहाई के लिए देश का सिर झुका कर किस तरह तब के आतंकवादियों को रिहा किया गया था। शायद महबूबा की सोच उसी राह पर चल रही है, लेकिन उन्हें ऐसे नफरती भाषणों से बचने की सलाह दी जानी चाहिए। भारत को अपने संविधान पर नाज है तथा किसी भी नेता या किसी सिद्धांत से ऊपर है भारतीय संविधान।
जम्मू-कश्मीर रियासत के राजा ने भारत में विलय का फैसला पाकिस्तानी अत्याचार से बचने के लिए किया था। लेकिन दिल्ली की कुछ सामयिक गलतियों से जिस कानून को खुद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अस्थाई घोषित किया था- उसे स्थायी बनाने की साजिश हुई। नतीजा सबके सामने है। भारत की सुप्रीम कोर्ट ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया है। अब बराय मेहरबानी जुबान बंद रखकर घाटी में लोकतंत्र कायम होने देने में ही पाकपरस्त नेताओं की भलाई है। जुबान की फिसलन से बचें।