कहां शुरू, कहां खत्म

गठबंधन को सौ दिन भी नहीं हुए हैं कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में इसके खत्म होने की तस्वीर भी सामने आ गई है। खासकर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने कांग्रेस के समानांतर चुनाव लड़ने का नारा देकर गठबंधन पर सवाल खड़ा कर दिया है।

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किसी भी कहानी की शुरुआत के साथ ही उसके अंत की दास्तां भी नियति तय कर दिया करती है। यह बात दीगर है कि नियति के इस अद्भुत खेल के बारे में उसके अलावा किसी और को पता नहीं होता है। भारत में लोकसभा चुनाव की तैयारी होने लगी है जिसके लिए बाकायदा राजनीतिक समीकरण बनाने का दौर चल पड़ा है।

केंद्र की मोदी सरकार लगातार दो बार सरकार चला चुकी है और तीसरी बार भी एनडीए की सरकार बनाने का ही दावा कर रही है। इधर एनडीए के विरुद्ध कांग्रेस ने भी अपना संगठन मजबूत करना शुरू किया है तथा तमाम गैर एनडीए दलों को साथ लेकर चलने का प्रयास कर रही है।

नए गठबंधन से सरकार असहज

इसके लिए एनडीए की तरह ही तमाम मोदी विरोधी दलों का एक गठबंधन बनाया गया है, जिसका नाम दिया गया इंडिया गठबंधन। इसके बनने से कुछ हद तक भाजपा नेताओं के माथे पर बल पड़ने लगा था। आनन-फानन में भाजपा की ओर से इंडिया को घमंडिया गठबंधन कहा जाने लगा। यहां तक कि देश के नाम से ही इंडिया हटाकर भारत को स्थापित करने का सिलसिला शुरू हो गया। इन गतिविधियों से कम से कम नागरिकों को इतना समझ में आने लगा था कि नए गठबंधन के नाम से कहीं न कहीं मोदी सरकार असहज महसूस कर रही है। यह थी शुरुआत।

लेकिन गठबंधन को सौ दिन भी नहीं हुए हैं कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में इसके खत्म होने की तस्वीर भी सामने आ गई है। खासकर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने कांग्रेस के समानांतर चुनाव लड़ने का नारा देकर गठबंधन पर सवाल खड़ा कर दिया है।

सीटों के बँटवारे पर सहमत नहीं

केजरीवाल की लाख कोशिशों के बावजूद कांग्रेस इन राज्यों में आम आदमी पार्टी के साथ सीटों के बँटवारे पर सहमत नहीं है। नतीजतन कांग्रेस के साथ अखिल भारतीय स्तर पर मोदी सरकार का विरोध कर इंडिया गठबंधन बनाने वाले केजरीवाल जबरन इन तीनों राज्यों में कांग्रेस के ही खिलाफ चुनाव में अपने प्रत्याशी खड़े कर रहे हैं।

गठबंधन के दूसरे सहयोगी अखिलेश यादव की हालत और भी बुरी हो चली है। उन्हें उम्मीद थी कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का साथ चाहने वाली कांग्रेस कम से कम मध्य प्रदेश में अखिलेश के लिए कुछ सीटें छोड़ देगी। लेकिन हुआ ठीक उलट। बल्कि समाजवादी पार्टी को मध्य प्रदेश में सीट दिए जाने के मसले पर कांग्रेस की ओर से मुलायम सिंह यादव के जमाने की बात दुहराई जाने लगी जिससे अखिलेश काफी असंतुष्ट बताए जा रहे हैं। जाहिर है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने जो सलूक समाजवादी पार्टी के साथ किया है, यूपी में अखिलेश भी कुछ वैसा ही कांग्रेस के साथ करेंगे।

इंडिया गठबंधन का वजूद साफ

यही हालत पश्चिम बंगाल में भी देखी जा रही है। ममता बनर्जी के साथ इंडिया गठबंधन में सीपीएम शामिल है लेकिन बंगाल माकपा के नेता तृणमूल कांग्रेस को भ्रष्टाचारी दल बताकर खुद को अलग ही रखने के हिमायती हैं। सीपीएम के अलावा बंगाल कांग्रेस भी ममता बनर्जी के सीटों के बँटवारे से सहमत नहीं लग रही है।

सवाल यह है कि लोकसभा चुनाव से पहले यदि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में ही इंडिया गठबंधन का वजूद साफ हो रहा है तो जनता को इस गठबंधन की ओर से क्या संदेश दिया जाएगा। गठजोड़ कर रहे दलों को यह भूलना नहीं चाहिए कि देश की जनता कम से कम उतनी अहमक नहीं है, जितना राजनेता उसे समझते हैं।