मजाक नौनिहालों से

बंगाल में हर बात पर सियासत ने इतना विकराल रूप ले लिया है कि जमीन से जुड़े सवालों के जवाब भी जल्दी नहीं सुने जाते ।

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बंगाल के बारे में गोपाल कृष्ण गोखले कहा करते थे कि बंगाल जो आज सोचता है, उसे पूरा भारत कल सोचता है। गोखले की इस बात को यहां के नेता बार-बार दुहराते हैं तथा इसी बहाने अपनी महानता साबित करने की कोशिश किया करते हैं। लेकिन यहां के नेताओं से पूछा जा सकता है कि क्या आज भी आप जो सोचते हैं वही पूरा भारत सोचता है। क्या आज जो आप करते हो, वही पूरा भारत करता है। इसका जवाब होगा नहीं।

दरअसल बंगाल में हर बात पर सियासत ने इतना विकराल रूप ले लिया है कि जमीन से जुड़े सवालों के जवाब भी जल्दी नहीं सुने जाते। इसमें सबसे बड़ी त्रासदी है भावी पीढ़ियों के लिए। बंगाल की भावी पीढ़ी को आज के राजनेता क्या सीख दे रहे हैं-इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। मिसाल के तौर पर आज के सियासी माहौल को ही लिया जा सकता है। इस माहौल में पंचायत चुनाव की घोषणा बस दरवाजे पर ही दस्तक दे रही है। रोजाना रह-रह कर कई सवाल उभर रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि बंगाल के बच्चे खेल-खेल में जिस तरह बमों के शिकार हो रहे हैं या जिस तरह उन पर तरह-तरह के अत्याचार हो रहे हैं-उनकी सुध कौन लेगा।

सत्ताधारी दल किसी भी विस्फोट का ठीकरा विपक्ष पर फोड़ने लगता है तथा विपक्ष की ओर से हर घटना के लिए सत्ताधारी दल को जिम्मेवार ठहरा दिया जाता है। बस केवल आरोप-प्रत्यारोप से ही बंगाल की सियासत चल रही है। इस बात की चिंता किसी को नहीं कि जिस पैमाने पर विस्फोटकों को यहां जमा किया जा रहा है, उससे सबसे ज्यादा नुकसान राज्य के नौनिहालों को हो रहा है। आए दिन किसी न किसी ओर से खबर आती है कि बच्चों ने खेलते-खेलते गेंदनुमा चीज को हाथ लगाई जिसमें एक बच्चा मारा गया और उसके बाकी साथी घायल हो गए। आखिर यह सवाल कौन करेगा कि इन विस्फोटकों की सियासत में हार-जीत चाहे जिसकी भी हो, लेकिन बच्चों ने किसका क्या बिगाड़ा है। लगता है कि बच्चों की चिंता किसी भी दल को नहीं है। इन घटनाओं से यह भी साफ है कि सत्तापक्ष हो या विपक्ष, सबको केवल इसी बात की पड़ी है कि किसी भी तरह जनता के बीच आतंक फैलाना है ताकि विपरीत खेमे को कोई वोट नहीं दे सके। मतलब यह कि इंसानी पहलू को दरकिनार रखकर हर पक्ष यहां केवल सियासी बाजी मात करने की कोशिश में लगा है।

लेकिन सभी पक्षों को यह याद रखना चाहिए कि जिस देश या राज्य का बचपन डरा-सहमा होगा उसकी जवानी भी कल दुबकी ही रहेगी। और दुबके हुए नागरिक किसी भी राज्य के विकास में उतने प्रभावी नहीं हो सकते जितनी उनसे अपेक्षा की जाए। बंगाल में वैसे भी नए निवेशकर्ताओं का अभाव है। अब अगर सियासत के चक्कर में जानबूझकर समाज में आतंक फैलाने की कोशिश हो रही है तथा विस्फोटकों का जखीरा बरामद किया जा रहा है तो कम से कम बच्चों की पहुंच से दूर ही रखे जाएं ऐसे पदार्थ। आज के बच्चे ही कल बंगाल के नायक बनेंगे लिहाजा विपक्षी दलों की अपेक्षा सत्तापक्ष को इस मामले में अधिक सतर्क रहना होगा। मानव संपदा ही किसी भी राज्य या देश की सबसे बड़ी संपत्ति होती है। इसकी रक्षा शारीरिक व बौद्धिक रूप से जरूर होनी चाहिए।