कोलकाता, अंकित कुमार सिन्हा
जुलूसों के शहर कोलकाता में यह सिलसिला रह-रह कर शुरू हो जाता है, खासकर तब जब सियासत सिर चढ़कर बोलने लगती है। आजकल राजधानी कोलकाता पूरी तरह से जंग के मैदान की तरह तब्दील हो चुकी है। हर दिन कहीं ना कहीं से जुलूस निकल रहे हैं। जुलूसों का खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है। रास्ते सिसकते हैं, गाड़ियां किसी तरह खिसकती हैं।
अजीब सच है कि जुलूस में शामिल लोगों को जितना मिलता है, उससे कुछ अधिक चाहिए होता है। गुरुवार को भी यही नजारा दिखा, जिसमें सरकारी कर्मचारियों का जत्था डीए की मांग में सड़क पर था। इसे थोड़ा और की भूख है। मगर दूसरी ओर रोजमर्रा की जिंदगी में दिहाड़ी पर काम करने वाले बेहाल महानगर में धक्के खाते रहे। इन्हें रोजाना की पगार भी मयस्सर नहीं होती। कोई खोमचा लिए खड़ा होता है तो किसी सेठ की गद्दी में काम कर रहा होता है। इन्हें भी भागमभाग का शिकार होना पड़ा। परेशान जुलूस के लोग भी थे, परेशान ये दिहाड़ी वाले भी थे। फर्क बस इतना कि उन्हें थोड़ा और चाहिए और इन्हें बस कौर (खाने का निवाला या ग्रास) चाहिए।
बसें रेंगती रहीं
एजेसी बोस रोड, एपीसी रोड, जवाहरलाल नेहरू रोड, चितरंजन एवेन्यू, भूपेन बोस एवेन्यू, मेयो रोड, रेड रोड, परामा फ्लाईओवर सहित कई इलाकों में यातायात बुरी तरह प्रभावित हुआ। इन सड़कों पर जो गाड़ियां तूफान की तरह चलती हैं वो बैलगाड़ी की तरह रेंगती हुई नजर आईं। ट्रैफिक जाम के कारण कई लोग समय पर दफ्तर नहीं पहुंच सके। जो लोग कई रैलियों से अनजान थे, वे ट्रैफिक जाम में फंस गए और असुविधा की शिकायत की क्योंकि वाहनों को कई बिंदुओं पर डायवर्ट किया गया था।
कई दिहाड़ी मजदूर जो काम के लिए निकले वे वक्त पर नहीं पहुंच पाए और उनकी एक दिन की पगार चली गई। पगार जाना उन लोगों के लिए बहुत है जिनको अपना एक भरा-पूरा परिवार चलाना होता है। कई लोगों को लेट होने के कारण दफ्तर में भी नहीं घुसने दिया गया।
एक साथ कई आंदोलन
कोलकाता में एक नहीं कई आंदोलन एक साथ हो रहे हैं। शहीद मीनार में डीए को लेकर धरना हो रहा है, धर्मतल्ला के मातंगिनी हाजरा की मूर्ति के पास एसएलएसटी में नौकरी को लेकर आंदोलन हो रहा है। गांधी मूर्ति के पास एसएससी टेट में नौकरी की मांग को लेकर आंदोलन चल रहा है। खुद सीएम ही धरने पर बैठी हैं, वह भी दिल्ली के खिलाफ कोलकाता में। पंचायत चुनाव का बिगुल बजने वाला है, हर दल ताकत आजमा रहा है जिससे यह शहर ताकतगंज बना हुआ है।
और एवं कौर की जंग
ये लोकतंत्र है, सभी को अपनी आवाज उठाने का हक है। रैलियां और आंदोलन भी बेमतलब नहीं हैं लेकिन कोई जगह महानगर में होनी चाहिए जहां बामतलब लोग आंदोलन करें, थोड़ा और मांगें लेकिन किसी का कौर नहीं छिनें।