लोकतंत्र का नया रूप

देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की जिस तरह सदन परिसर के भीतर तृणमूल कांग्रेस के सदस्य कल्याण बनर्जी ने मिमिक्री की, जिस तरह का नाटक किया गया-उसे पूरे देश ने देखा है। खुद राहुल गांधी भी उस दृश्य का वीडियो उतारते देखे गए। यह देश की संसद का अपमान है। संविधान का अपमान है।

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अंग्रेजी हुकूमत से भारत को आजादी दिलाने के लिए जिन लोगों ने लड़ाई लड़ी थी, शायद उन्होंने आज की तस्वीर को सपने में भी नहीं देखा होगा। सोचा भी नहीं होगा। तब सोच यही थी कि भारत की आजादी के बाद अपने लोगों का शासन होगा जिसमें सभी आपसी विचार-विमर्श से देश चलाएंगे। देश भी ऐसे चलाएंगे कि दिन-दूनी-रात-चौगुनी तरक्की होगी और भारत फिर से सोने की चिड़िया बन जाएगा। लेकिन आजादी मिलने के बाद से भारतीय लोकतंत्र ने कई बार करवटें बदली हैं और आज बिल्कुल नई चीज सामने आई है।

नई चीज का मतलब यह है कि जिस सदन को आम लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए तैयार किया गया है, जिसका एक-एक पल देश की तरक्की पर विचार करने के लिए है तथा जिसकी प्रत्येक बैठक पर देशवासियों की नजर हुआ करती है क्योंकि उन्हें अपने निर्वाचित लोगों से विकास की उम्मीद होती है- उस सदन की हालत आज हास्यास्पद हो चली है। सत्ता पक्ष के लोगों का यह हाल है कि उनकी मर्जी के खिलाफ यदि विपक्ष की ओर से कोई बात कही जा रही है तो उसे शत्रुतापूर्ण व्यवहार मान लिया जा रहा है। इसी व्यवहार के तहत सदन से विपक्षियों को बाहर किया जा रहा है।

संसद की सुरक्षा में चूक

अबतक 143 सांसदों को सदन से बाहर कर दिया गया है, जिसकी नजीर भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में देखने को नहीं मिलती। आखिर जिन लोगों को सदन से बाहर किया गया है, उन्हें भी देश की जनता ने ही चुनकर संसद में भेजा है। वे भी जनता के ही प्रतिनिधि हैं तथा उन्हें भी संविधान के तहत ही सारे अधिकार हासिल हैं। यदि संसद में कुछ शरारती लोग दाखिल होते हैं और सदस्यों के बीच कोहराम मचता है तो जाहिर है कि इसे संसद की सुरक्षा में चूक का ही नतीजा करार दिया जा सकता है।

ऐसे में अगर चूक हो गई है तो विपक्ष का सरकार से सवाल पूछना गलत नहीं है। यह बात दीगर है कि सवाल पूछने का अंदाज कैसा रहा है। समझा जा सकता है कि जिस लहजे में सरकार से सवाल पूछा गया, वह अशोभनीय था। लेकिन इसके लिए चुने हुए प्रतिनिधियों को सीधे सदन से बाहर करने का फैसला पूरी तरह उचित नहीं कहा जा सकता। इसके पहले भी संसद में कई बार सत्तापक्ष और विपक्ष में रार के नमूने देखे गए हैं। लेकिन ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों को संसद के दोनों सदनों से ही निकाल बाहर किया जाए।

विपक्ष की भूमिका अजीबोगरीब

इसके अलावा विपक्ष की भूमिका भी अजीबोगरीब ही कही जाएगी। देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की जिस तरह सदन परिसर के भीतर तृणमूल कांग्रेस के सदस्य कल्याण बनर्जी ने मिमिक्री की, जिस तरह का नाटक किया गया-उसे पूरे देश ने देखा है। खुद राहुल गांधी भी उस दृश्य का वीडियो उतारते देखे गए। यह देश की संसद का अपमान है। संविधान का अपमान है। किसी भी संवैधानिक पद पर देश के किसी नागरिक को बिठाने का काम संविधान के दायरे में किया जाता है।

किसी की शारीरिक बनावट को लेकर प्रहसन करना वैसे भी भारतीय संस्कृति में अनुचित माना जाता है। ऐसे में देखा यह जा रहा है कि एक पक्ष अपने विरोधियों को सदन से बाहर कर रहा है तो दूसरा पक्ष संवैधानिक पीठ पर बैठे व्यक्ति की मर्यादा का मजाक बनाता है। सवाल पूछा जा सकता है कि इन सारी घटनाओं से देश का कितना भला होता है। कितना लाभ उसे पहुंचता है जिसकी गाढ़ी कमाई के पैसों से संसद का सत्र चलाया जाता है। संसद शायद इस सवाल पर खामोश रहेगी।