लोकतांत्रिक बदला
लोकतांत्रिक मान्यता यही रही है कि लोग अपने विरोधियों को भी सम्मान दिया करते थे, उनसे समानता का व्यवहार किया करते थे। लेकिन आजकल बात जरा उल्टी हो रखी है। जो सत्ता में है, ऐसे आरोप लगते हैं कि वह अपने को देश और संविधान से भी ऊपर मानने लगा है। ये लक्षण कम से कम भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए शुभ नहीं कहे जा सकते।
जैसे-जैसे आम चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है लोकतांत्रिक मूल्यों का वैसे-वैसे ह्रास हो रहा है। केंद्र में हो या किसी राज्य में, हर जगह सत्तारूढ़ दल अपने विरोधियों पर निशाना लगाने लगे हैं। निशाना लगाने वाले शायद यह भूल रहे हैं कि लोकतंत्र में किसी की भी कुर्सी स्थायी नहीं है। आज जो सत्ता में है, हो सकता है कि उसे विपक्ष में बैठने का जनादेश मिल जाए।
ऐसे में लोकतांत्रिक मान्यता यही रही है कि लोग अपने विरोधियों को भी सम्मान दिया करते थे, उनसे समानता का व्यवहार किया करते थे। लेकिन आजकल बात जरा उल्टी हो रखी है। जो सत्ता में है, ऐसे आरोप लगते हैं कि वह अपने को देश और संविधान से भी ऊपर मानने लगा है। ये लक्षण कम से कम भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए शुभ नहीं कहे जा सकते।
मिसाल के लिए केंद्र में बैठी एनडीए सरकार को ही लिया जा सकता है। आम तौर पर गैर भाजपा शासित राज्यों से यही आवाज उठती है कि गैर भाजपाइयों को परेशान करने के लिए सरकारी तंत्र तथा खासकर सरकारी एजेंसियों को पीछे लगाया जा रहा है। पहले ममता बनर्जी इस तरह के आरोप लगाया करती थीं, उसके बाद अरविंद केजरीवाल का नाम आया था।
ईडी की आड़ में सियासत
अब नए सिरे से झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी खुले मंच से कह दिया है कि सीबीआई और ईडी की आड़ में सियासत कर रही है भाजपा। इनके अलावा द्रमुक की ओर से भी केंद्र की भाजपा नीत एनडीए सरकार पर ऐसे ही आरोप लगते रहे हैं। इन आरोपों को यदि नजरअंदाज भी कर दिया जाए तब भी एक भ्रम जरूर होता है कि क्या समूचा विपक्ष झूठे आरोप लगा रहा है। विपक्ष की ओर से सवाल किया जा रहा है कि भाजपा शासित मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार के खिलाफ व्यापमं घोटाले की फाइलें खामोश कैसे रह गईं हैं।
नेहरू-गांधी परिवार के घोटालों की चर्चा अगर होती है, तो भाजपा के उन नेताओं के घोटालों (यदि सच हों तो) की चर्चा भी होनी चाहिए, जिनका उल्लेख विपक्ष करता है। सवाल यह किया जा रहा है कि हेमंत सोरेन यदि भ्रष्टाचार के आरोपित रहे हैं तो झारखंड की पिछली रघुवर सरकार ने उनके खिलाफ पांच सालों तक कोई वैधानिक कार्रवाई क्यों नहीं की।
आम चुनाव पर भी असर
भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टोलरेंस की बात करने वाली एनडीए सरकार के साथ कोई भी दलबदलू जैसे शामिल हो जाता है, उससे पूछताछ नहीं की जाती-ऐसा विपक्ष का आरोप है। इस मामले में केंद्र सरकार को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। विपक्ष ऐसे ही लगातार आरोप लगाता रहा तो इसका आम चुनाव पर भी असर हो सकता है। इसी क्रम में अन्य दलों की सरकारों से भी अपील की जानी चाहिए कि लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करें। केवल विरोध के लिए विरोध करना सही नहीं होगा।
यदि गैर भाजपा शासित राज्यों में भाजपाइयों को फर्जी मुकदमो में फंसाने की कोशिश हो रही है, तो इसे भी अनैतिक करार दिया जाना चाहिए। लोकतंत्र में जिन दलों को शासक कहलाने का जनादेश हासिल होता है, उन्हें विनम्र होने की जरूरत होती है। शासक यदि शत्रुवत व्यवहार करने लगे तो जनता उसे समाज का शत्रु मानने लगती है। जिस तरह आज की सियासत रोजाना चेहरा बदल रही है, उम्मीद है कि उसमें देश के सभी सियासी दल समझदारी का परिचय देंगे और भावी पीढ़ी के लिए उल्लेखनीय नजीर पेश करेंगे।