कोलकाताः हिंदी कहानी के प्रमुख कथाकार शेखर जोशी तथा मूर्धन्य आलोचना मैनेजर पाण्डेय जी की याद में काज़ी नज़रुल विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा गुरुवार को एक शोक सभा का आयोजन किया गया।
इस आयोजन में प्रोफेसर विजय कुमार भारती, हिंदी विभाग के संयोजक डॉ. बिजय कुमार साव, डॉ. एकता मंडल, डॉ. प्रतिमा प्रसाद, डॉ. काजू कुमारी साव के साथ-साथ पीएचडी और एम.फील.के शोधार्थियों एवं स्नाकोत्तर के विद्यार्थियों की उपस्थित में 2 मिनट के मौन व्रत के साथ प्रोफेसर मैनेजर एवं शेखर जोशी को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इसके साथ ही शोक सभा आरम्भ किया गया।
डॉ. विजय कुमार साव (निशांत) ने कहा कि लेखक और कलाकार को श्रद्धांजलि देने का अर्थ है उनके लेखन और कला से परिचित होना। प्रथम वक्ता के रूप में पीएचडी स्कॉलर ज्योति पासवान ने दलित साहित्य से संबंधित मैनेजर पाण्डेय के आलोचनात्मक दृष्टिकोण को गहराई के साथ सबके समझ रखते हुए कहा कि हिंदी साहित्य ने एक आलोचक खोया है किन्तु दलित आंदोलन एवं दलित साहित्य ने अपना एक समर्थक खोया है।
दूसरे वक्ता शोधार्थी अमित साव ने मैनेजर पाण्डेय के लेख ‘उपनिवेशवाद का शिकार भारत और देशेर कथा’ के माध्यम से महत्वपूर्ण तथ्यों को रखते हुए उपनिवेशवाद और 1905 के बंगाल की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला।
शोधार्थी सुशील कुमार राम ने शेखर जोशी की कहानी ‘कोसी का घटवार’ की समीक्षा की तथा शोधार्थी रियाज़ ने उसकी मूल संवेदना पर बात की।
एम. ए प्रथम सत्र की छात्रा निकिता पासवान ने शेखर जोशी की कहानी ‘कोसी का घटवार’ की समीक्षा रखते हुए उसकी मूल संवेदना पर बात की।
तृतीय सत्र की छात्रा अंजलि ने लोकतंत्र के चार स्तम्भ न्यापालिका, कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और मीडिया की तरह मैनेजर पाण्डेय को भी आलोचना का एक स्तम्भ बताया।
डॉ. एकता मंडल ने कहा ‘उसने कहा था’ के बाद हिंदी साहित्य में प्रेम पर आधारित दूसरी महत्वपूर्ण कहानी अगर कोई है तो वह है शेखर जोशी का ‘कोसी का घटवार’। आगे मैनेजर पाण्डेय से जुड़ी आवश्यक तथ्यों को भी उन्होंने सामने रखा।
डॉ. प्रतिमा प्रसाद ने शेखर जोशी की कहानी ‘बदबू’ की चर्चा की तथा मैनेजर पाण्डेय के सन्दर्भ में कहा कि साहित्य को कैसे पढ़ा जाए, यह सिखाने का कार्य आलोचक मैनेजर पाण्डेय ने किया।
डॉ. काजू कुमारी साव ने मैनेजर पाण्डेय के संघर्षपूर्ण जीवन के बारे में बताते हुए शोधार्थियों एवं विद्यार्थिओं को उनसे प्रेणना लेने की बात की।
प्रोफेसर बिजय कुमार भारती ने मंच का संचालन करते हुए मैनेजर पाण्डेय के कथन को कोट किया, “ इतिहास जिनका जीवन छीन लेता है साहित्य उसको जीवन दे देता है, इतिहास विजीतों का लिखा जाता है साहित्य पराजितों और उपेक्षितों का लिखा जाता है।”
आगे उन्होंने जोड़ा कि शेखर जोशी ने न केवल प्रेम कहानियाँ लिखी, बल्कि पहाड़ी जीवन के श्रमिकों की परेशानियों और कठिनाइयों को भी व्यक्त करने का कार्य किया है।