मातृ-शक्ति को नमन

नरगिस मोहम्मदी को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए योग्यतम घोषित करना ही बताता है कि नकारात्मकता चाहे जितना सिर उठा ले, मूर्खता चाहे जितनी ऊंचाई तक उड़ ले, बुद्धिमत्ता और शांति की ही जीत होती रही है। और दुनिया आज भी सकारात्मक सोच वाले लोगों से खाली नहीं हुई है।

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दुनिया में हमेशा सकारात्मक और नकारात्मक विचारधारा के लोग रहे हैं। राम के जमाने में भी रावण हुआ करता था जिसे किसी भी अच्छाई से कोई सरोकार नहीं था। कृष्ण के दौर में कंस था। दरअसल कुछ ऐसे लोगों की पौध अनायास ही तैयार होती रहती है जिन्हें सर्वज्ञाता होने का दंभ रहा करता है। उन्हें खुद को सर्वशक्तिमान बताने की ललक रहा करती है जिससे वे हर परंपरा को ताक पर रख कर समाज को गलत दिशा में संचालित करने का कुचक्र रचते रहते हैं। लेकिन शुभ बुद्धि संपन्न लोगों की भी दुनिया में कमी नहीं है। ऐसे लोग खामोश रहकर हालात को पढ़ रहे होते हैं। ऐसी ही खामोशी से हालातों की समीक्षा करने वाली एक खास कमेटी का नाम नोबेल कमिटी है।

इस कमेटी के सदस्य साल भऱ दुनिया में विभिन्न क्षेत्रों में हो रही घटनाओं पर पैनी नजर रखते हैं और वक्त आने पर अपने सुझाव से सबको चकित कर देते हैं। नोबेल कमिटी ने विश्व शांति के 2023 साल के पुरस्कार के लिए जिसका चयन किया है, वह एक ईरानी महिला हैं तथा पेशे से इंजीनियर हैं। हैरत की बात है कि नोबेल शांति पुरस्कार के लिए जिसका नाम घोषित किया गया है, वह महिला आज भी जेल में बंद है। ईरान की जेल में वह 31 साल जेल की सजा काट रही हैं। उनका जुर्म यही है कि  ईरान में लड़कियों पर चलाए जा रहे दमन के विरुद्ध जो लोग प्रदर्शन में शामिल थे, उनका समर्थन किया। कसूर यह कि ईरान की आम बेटियों और महिलाओं की आजादी के लिए आवाज बुलंद की है।

धार्मिक नेताओं का फरमान

नरगिस मोहम्मदी नामक इस महिला ने ईरान की सरकार को महिलाओं के हक के लिए झकझोर कर रखा है। ज्ञात रहे कि ईरान की धार्मिक सरकार लगातार वहां की महिलाओं पर एक के बाद एक तालिबानी कानून थोपने का काम कर रही है। यहां तक कि महिलाओं के घूमने-फिरने या कपड़े पहनने के अलावा उनकी पढ़ाई-लिखाई के बारे में भी धार्मिक नेताओं का फरमान जारी होता रहता है।

मोहम्मदी ने लेकिन सरकारी आदेश को ठेंगा दिखाकर विकास को ही अपना लक्ष्य बनाया जिसका नतीजा यह हुआ कि नरगिस को अबतक 13 बार जेल में डाला गया है। 2019 से लगातार जेल की चहारदीवारियों में बंद नरगिस की लड़ाई मगर अनवरत जारी है। हैरत की बात यह भी है कि अबतक उन्हें पांच बार सजा हो चुकी है। लेकिन किसी धमकी की परवाह किए बगैर नरगिस ने महिलाओं के विकास तथा उनकी आजादी के लिए अपनी लड़ाई को जारी रखा है।

विश्वशांति का नोबेल पुरस्कार

इसके पहले सिरिन इबादी नाम की ईरानी महिला को भी विश्वशांति का नोबेल पुरस्कार 2003 में दिया गया था। लड़कियों में शिक्षा के प्रसार के लिए आतंकियों की गोली खा चुकी पाकिस्तानी युवती मलाला यूसुफजई को भी विश्वशांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। इन पुरस्कारों का कुछ मतलब है। मतलब यही है कि नकारात्मक और दकियानूसी सोच वाले मूर्खों को होश में लाया जाए। पुरस्कारों का मतलब यही है कि दुनिया भर की महिलाओं को भी समाज में बराबरी का हक दिया जाए।

नरगिस मोहम्मदी को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए योग्यतम घोषित करना ही बताता है कि नकारात्मकता चाहे जितना सिर उठा ले, मूर्खता चाहे जितनी ऊंचाई तक उड़ ले, बुद्धिमत्ता और शांति की ही जीत होती रही है। और दुनिया आज भी सकारात्मक सोच वाले लोगों से खाली नहीं हुई है। नरगिस को विश्व शांति का प्रतीक बनाने के साथ ही नोबेल कमेटी ने एक बार फिर से मातृ-शक्ति की वंदना की है, साधुवाद।