भारत के उत्तर में खड़ा हिमालय जहां हमारी पहरेदारी करता है वहीं इस बात का भी रोजाना संकेत देता है कि प्रकृति की स्वाभाविक अवस्था से किसी को भी छेड़छाड़ की इजाजत नहीं है। हिमालय की इसी विशेषता ने भारत को दुनिया के नक्शे में एक खास स्थान दे ऱखा है।
इसी हिमालय से निकलने वाली गंगा कई राज्यों से होकर बंगाल की खाड़ी तक पहुंचती है। हिमालय से सागर तट की यात्रा में गंगा को कई रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है जिसमें भिन्न-भिन्न भाषा, स्वभाव, बोली, खानपान तथा विचारों वाले लोग रहा करते हैं।
उत्तराखंड में हिमालय की गोद से निकलने वाली गंगा इतनी सारी विषमताओं को पार करके पश्चिम बंगाल के सागरद्वीप तक पहुंचती है। इसकी धारा को अविरल रखने की जरूरत पर समय-समय पर हमारे ऋषियों ने बल दिया है।
लेकिन अफसोस है कि विकास के नाम पर सरकारें हमेशा गंगा के साथ घिनौना खेल खेलती रही हैं। इसका बुरा असर भी देखा जाता है। अपनी राह में बाधा देखकर गंगा तरह-तरह से लोगों को दंडित भी करती रही है, फिर भी सरकारों या स्थानीय लोगों के कान पर जूँ नहीं रेंगती है।
आज फिर से गंगा ने एक नया संकेत दिया है। अब चमोली जिले का जोशीमठ ही जमींदोज होने जा रहा है। जोशीमठ ही वह जगह है जहां भगवान बद्री विशाल सर्दी के मौसम में बद्रीनाथ से नीचे आकर विराज रहे होते हैं।
हिमालय और गंगा के स्नेह की छाँव में पले इस छोटे से शहर की खास बात यह है कि यहीं से बद्रीनाथ और हेमकुंड साहब तथा वैली ऑफ फ्लावर्स की यात्रा होती है।
जोशीमठ से ही विश्वप्रसिद्ध भारत के स्केटिंग ग्राउंड औली की भी यात्रा की जाती है। यहां की खूबसूरती देखते ही बनती है। कुदरत ने जोशीमठ को अपने खास तरीके से सजाया-सँवारा है। लेकिन यह शहर अब धंस रहा है और लोग इधर-उधर भटक रहे हैं।
पर्यावरणविदों की राय रही है कि गंगा की धारा को रोकने के कारण ही ऐसा हो रहा है। जोशीमठ या बद्रीनाथ वैसे भी भूकंप प्रभावित इलाकों में शीर्ष पर हैं। ऐसी जगहों पर हेलांग बाइपास बनाने का जो काम हो रहा है या फिर टिहरी की जो परियोजना रही है अथवा तपोभूमि में जलविद्युत परियोजना की जो आधारशिला रखी जा रही है-वह अत्यंत घातक है।
वैसे भी यहां एक किंवदन्ती है कि बद्रीनाथ से पहले नर और नारायण नामक दो पहाड़ आपस में झुक कर मिलने को आतुर हैं। और यदि ऐसा हो गया तो बद्रीकाश्रम जाने का मार्ग ही बंद हो सकता है।
कुल मिलाकर लगता यही है कि इंसान ने अपने तथाकथित विकास के नाम पर कुदरत से खेलने का जो सिलसिला शुरू किया है, उस पर विराम लगाने की जरूरत है।
कई मनीषियों ने गंगा की अविरल धारा को अबाध प्रवाहित होने देने की अतीत में भी गुजारिश की थी लेकिन कथित विकास की आस में लालायित सरकारों ने उनकी एक नहीं सुनी।
आज जोशीमठ शहर भी कुदरत के कोप का शिकार होने जा रहा है और लोग भविष्य के प्रति आशंकित हैं। केंद्र और राज्य की जिम्मेदारी है कि जोशीमठ जैसे पवित्र तीर्थ को बचाने की पहल की जाय।
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