निर्मोही बने निजी स्कूल,अभिभावकों की जेब कर रहे ढीली
नामांकन के नाम पर अभिभावकों से वार्षिक शुल्क के नाम पर मोटी रकम ली जा रही है।
रांची, शिखा झा
झारखंड के निजी स्कूलों में नामांकन चल रहा है। नामांकन के नाम पर अभिभावकों से वार्षिक शुल्क के नाम पर मोटी रकम ली जा रही है। मासिक ट्यूशन फीस और स्कूल फीस में भी बढ़ोतरी की गई है। बच्चे भी स्कूलों से किताबें और कॉपी खरीदने को मजबूर हैं। वहीं स्कूल वाले 700 की किताबों को 7000 में बेच रहे हैं। बच्चे के अभिभावक स्कूल ड्रेस की खरीद से लेकर किताब-कापी की खरीद तक को लेकर चिंतित हैं। हर साल किताबें और ड्रेस बदली जा रही है, इससे भी अभिभावकों की परेशानी बढ़ रही है। अभिभावकों का कहना है कि सरकार को निजी स्कूलों की फीस पर अंकुश लगाने की जरूरत है। अभिभावकों की परेशानी सुनने वाला कोई नहीं है।आखिर वह कहां करेंगे शिकायत। निजी स्कूल के रवैए से अभिभावक काफी परेशान है।
निजी स्कूल अपनी मनमानी कर रहे है लेकिन उन्हें रोकने टोकने वाला कोई नहीं है। जितनी मर्जी होती फीस ले लेते और अभिभावकों पर आने वाले महीने से पहले ही उस महीने का फीस जमा करने का प्रेशर बनाते है। कुछ अभिभावकों का कहना है की प्राइवेट हमेशा अपनी मनमानी करते हैं। फीस वृद्धि हो या किताबें बदलनी हो, वे अपने मन के मुताबिक ही निर्णय लेते हैं। इसमें अभिभावकों कीर्ति का ध्यान नहीं रखा जाता है। कम से कम जिला स्तर से इसकी मॉनिटरिंग होनी चाहिए और स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाया जाना चाहिए। सरकार इस पर जल्द एक्शन ले। हर साल फीस वृद्धि करने के बजाय स्कूलों को कम से कम 2 या 3 साल के अंतराल पर फीस वृद्धि करनी चाहिए। इससे पूर्व अभिभावकों को भी इसकी जानकारी दी जानी चाहिए, हर साल की तरह बदल दिए जाने के कारण नई व महंगी किताबें खरीदनी पड़ती हैं। इसे भी अभिभावकों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है।
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