पढ़ाई का नया विधान

अब प्राथमिक या माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों को शरीर के अंगों के बारे में खुली सीख दी जाएगी। खुली सीख का मतलब यह कि कान-नाक-आंख की तरह ही शरीर के गोपनीय अंगों के नामों का भी खुलकर उच्चारण करने की सीख दी जाएगी। विभाग का मानना है कि इससे कम उम्र के बालक-बालिकाओं को यौन शोषण से बचाने में मदद मिलेगी।

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कहा जाता है कि जानवर और इंसान के बीच का फर्क इंसान की मेधा तय करती है। यह मेधा भी तबतक कुंद ही रहती है जबतक उसे शिक्षित नहीं किया जाए। मतलब यह कि इंसान को समाज में जीने लायक बनाने की दिशा में शिक्षा का बड़ा योगदान है। यही वजह है कि शिक्षा के क्षेत्र में लगातार दुनिया भर में कई तरह के सुधार होते रहते हैं। कई मामलों में शिक्षा को लेकर तरह-तरह के प्रयोग भी किए जाते रहे हैं।

शिक्षा में सुधार के लिए नया फार्मूला

भारत भी इस मामले में किसी देश से कम नहीं है। बल्कि मेधावी लोगों को तैयार करने में दुनिया के कई देशों की तुलना में भारत आगे ही कहा जाएगा। ऐसे में पश्चिम बंगाल की सरकार ने शिक्षा में सुधार के लिए एक नया फार्मूला आजमाने का फैसला किया है। इस फार्मूले के तहत एक सामाजिक बुराई को खत्म करने की सोच है। शिक्षा विभाग की ताजा सूचना के आधार पर बताया गया है कि माइक्रोसॉफ्ट नामक नामचीन सॉफ्टवेयर कंपनी के सहयोग से बंगाल के शिक्षकों को नई तालीम दी जा रही है।

इस तालीम या प्रशिक्षण के तहत अब प्राथमिक या माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों को शरीर के अंगों के बारे में खुली सीख दी जाएगी। खुली सीख का मतलब यह कि कान-नाक-आंख की तरह ही शरीर के गोपनीय अंगों के नामों का भी खुलकर उच्चारण करने की सीख दी जाएगी। विभाग का मानना है कि इससे कम उम्र के बालक-बालिकाओं को यौन शोषण से बचाने में मदद मिलेगी।

कच्ची उम्र में यौनता का शिकार

प्रशिक्षण हर स्कूल के प्रधानाध्यापक के अलावा दो सहयोगी शिक्षकों को भी दिया जा रहा है। अनुमान है कि राज्य के तकरीबन दो लाख शिक्षकों को इन अंगों के नामों का कैसे प्रयोग किया जाएगा, इस बारे में प्रशिक्षित किया जा रहा है। विशेषज्ञों की राय है कि अक्सर कम उम्र के बच्चों के साथ उनके गोपनीय अंगों को लेकर उनके संपर्क में आने वाले लोग ही छेड़छाड़ करते हैं। लेकिन पहले से इन अंगों को शरीर का बुरा हिस्सा या ऐसा ही कुछ और बताने वाले अभिभावकों की सीख के आधार पर बच्चे भी उनके साथ की जा रही ज्यादती का खुलासा समय रहते नहीं करते। लेकिन कालांतर उनके साथ गलत हरकतें करने वाले लोग उन्हें कच्ची उम्र में ही यौनता का शिकार बना दिया करते हैं।

ऐसे बच्चे बाद में हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं तथा कई तरह की मानसिक विकृतियों के भी शिकार हो जाते हैं। भावी समाज को और अधिक सुदृढ़ बनाने की दिशा में राज्य सरकार के शिक्षा विभाग की ओर से यह पहल की जा रही है। लेकिन इस पहल का सकारात्मक तो ठीक है, कुछ लोगों का सवाल है कि यदि नकारात्मक प्रभाव हुआ तो फिर क्या होगा। सामाजिक मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखने वाले कुछ लोगों का मानना है कि पहले से ही मोबाइल फोन और इंटरनेट की दुनिया ने कम उम्र के लोगों को अपने प्रभाव में ले लिया है।

सावधानी की जरूरत

शिक्षा के नाम पर इंटरनेट ब्राउजिंग की दरों का पता लगाने से जान पड़ता है कि सबसे ज्यादा ब्राउजिंग दुनिया भर में यौन संबंधों को लेकर ही की जाती है। पोर्न देखने वालों की संख्या भी तमाम मनाही के बावजूद लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में अगर सरकारी तौर पर भी यौनाचार से संबंधित अंगों की जानकारी खुल कर देने की व्यवस्था की जाती है तो नतीजे क्या होंगे-यह अभी ठीक से नहीं कहा जा सकता। लेकिन सावधानी की जरूरत होगी।