सीखने की जरूरत
विदेशों में नाम कमा चुके एक सुरंग विद्या के जानकार को भी भारत सरकार ने आनन-फानन में भारत बुला लिया। लेकिन पहाड़ काटने वाली मशीन खुद ही कट गई। फंसे हुए लोगों तक पहुंचना मुश्किल हो गया। बाद में तकनीक से अलग पारंपरिक तरीके से खुदाई करने वालों की टीम बुलाई गई जिन्होंने अपने देसी हथियारों से ही पहाड़ की छाती चीर कर सभी 41 लोगों को सकुशल बाहर निकाल दिया। इसे देश के लिए एक अनुभव कहा जा सकता है।
जिंदगी में अक्सर इंसान किसी न किसी मोड़ पर कुछ घटनाओं से सबक लेने की कोशिश करता है। इन्हीं छोटी-छोटी घटनाओं से मिले अनुभव के आधार पर आहिस्ता-आहिस्ता इंसान की सोच में परिपक्वता आती है। ताजा घटना में उत्तराखंड की सुरंग के हादसे को ही लिया जा सकता है जिसमें अचानक काम कर रहे 41 लोग फंस गए थे। तमाम तकनीकी विशेषज्ञों को जोड़ लिया गया। पहाड़ की छाती तोड़ने के लिए अमेरिकी मशीन लाई गई।
विदेशों में नाम कमा चुके एक सुरंग विद्या के जानकार को भी भारत सरकार ने आनन-फानन में भारत बुला लिया। लेकिन पहाड़ काटने वाली मशीन खुद ही कट गई। फंसे हुए लोगों तक पहुंचना मुश्किल हो गया। बाद में तकनीक से अलग पारंपरिक तरीके से खुदाई करने वालों की टीम बुलाई गई जिन्होंने अपने देसी हथियारों से ही पहाड़ की छाती चीर कर सभी 41 लोगों को सकुशल बाहर निकाल दिया। इसे देश के लिए एक अनुभव कहा जा सकता है।
घटना से पहला अनुभव सरकार को यही हासिल करना चाहिए कि तमाम पर्यावरणविदों की सलाह नहीं मानने की सजा क्या होती है। इसकी एक बानगी देखने को मिली है। दूसरा अनुभव यह भी हो सकता है कि ऑटोमेशन या तकनीकी प्रयोग की वकालत करने की मानसिकता से इतर मानव श्रम या देसी तरीकों को भी साथ-साथ लेकर चलने की जरूरत है।
तीसरा अनुभव यह हो गया कि अगर बेहद जरूरी हो और हिमालय की प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करनी पड़े तो पहले मिट्टी या पत्थर की गुणवत्ता की ठीक से परख की जानी चाहिए। इस घटना से सरकार किस तरह सबक लेगी, इसका तो पता नहीं- लेकिन समझा यही जाता है कि सुरंग में धँसान कैसे हुई, इसकी तफ्तीश बहुत जरूरी होगी।
बहुत पहले टिहरी परियोजना के समय ही सरकार को सचेत किया गया था कि हिमालय की बनावट या फिर नदियों की धारा से छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। लेकिन सरकार ने किसी की नहीं सुनी। जरूरत थी हर हाल में बिजली बनाने की, लिहाजा टिहरी परियोजना को हरी झंडी दे दी गई। हाल ही में बद्रीनाथ के पथ पर जोशी मठ में जमीन धंसने की खबरें मिलीं। लोग अपना घर-बार छोड़कर भागने को मजबूर हुए।
सरकार की ओर से सबको भरोसा दिलाया गया। तब भी यही कहा गया था कि हिमालय की बनावट से मजाक नहीं किया जाना चाहिए। मगर सरकार तो आखिर सरकार ही होती है। उसे किसी की बातों की कोई परवाह नहीं है। लगातार पहाड़ों में निर्माण का काम जारी है। पर्यावरण प्रेमी चिल्लाते रहें, इससे सरकारों को फर्क नहीं पड़ने वाला।
लेकिन इस हादसे ने एक गंभीर अलर्ट जारी किया है। भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालय के नीचे की बनावट अपना प्रारूप बदल रही है। धरती के नीचे की प्लेट लगातार खिसक रही है जिससे पहाड़ी इलाकों में लगभग रोजाना ही भूकंप के हल्के झटके लगते रहते हैं। इन बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार को चाहिए कि ऐसे निर्माण कार्य की समीक्षा करे।
भू-प्रकृति से किया गया खिलवाड़ भारत को किसी ऐसे संकट में न डाल दे जिसकी कल्पना से ही सिहरन होती हो। नेपाल के भूकंप की घटना तथा उसके बाद की तबाही को भी भूलने की जरूरत नहीं। बेहतर तो यही होता कि इस सुरंग कांड से सरकार सबक लेकर पहले विशेषज्ञों की एक खास टीम बनाती और उनकी राय से ही सामरिक जरूरतों के मद्देनजर निर्माण कार्य को अंजाम देती।