आधार भी निराधार

आधार कार्ड में लोगों की उंगलियों के निशान या आँखों की पुतली की प्रतिच्छवि कई बार मेल नहीं खा रही है, जिससे जरूरतमंद लोगों को सेवाएं देने से संबंधित विभागों के लोग इंकार कर देते हैं। ऐसे लोगों के पास किसी से संपर्क करने या इन समस्याओं के समाधान की कोई वैकल्पिक राह भी सरकार की ओर से नहीं सुझाई जा रही है।

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भारत सरकार ने जिस माध्यम को सबसे सहज समझकर देश के गरीब लोगों तक सरकारी सुविधाएं पहुंचाने का संकल्प लिया था, उस आधार कार्ड की क्षमता पर खुद कैग ने ही सवाल खड़ा कर दिया है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के आधार पर अब मूडीज की भी प्रतिक्रिया सामने आ गई है, जिसमें मूडीज का दावा है कि दुनिया के सबसे अधिक डेटाबेस को संरक्षित रखने में आधार सक्षम नहीं है। उनका मानना है कि अधिक गरमी या जलीय वातावरण के कारण आधार के जरिए जिन लोगों का बाय़ोमेट्रिक सुरक्षित किया गया है, उनके तथ्य कई बार असली लोगों से मेल नहीं खाते। इससे कम से कम जिन लोगों को सरकारी मदद की जरूरत है, वह मदद उन्हें नहीं मिल पाती। कैग ने भी इसी तरह की आपत्ति जताई है।

माना जा रहा है कि आधार कार्ड में लोगों की उंगलियों के निशान या आँखों की पुतली की प्रतिच्छवि कई बार मेल नहीं खा रही है, जिससे जरूरतमंद लोगों को सेवाएं देने से संबंधित विभागों के लोग इंकार कर देते हैं। ऐसे लोगों के पास किसी से संपर्क करने या इन समस्याओं के समाधान की कोई वैकल्पिक राह भी सरकार की ओर से नहीं सुझाई जा रही है। जानकारों का यही मानना है कि जिस एक कार्ड को सबसे आवश्यक बताया जा रहा है, वह आधार कार्ड भी समय पर ठीक से काम नहीं कर रहा है। इस तरह की शिकायतों के मद्देनजर केंद्र सरकार फिलहाल क्या सोच रही है या इसका समाधान कैसे निकाला जाए, यह सवाल अब सबसे अधिक ज्वलंत हो गया है।

डेटाबेस आधार से मेल नहीं खाता

दरअसल इस बात की खबर सबसे पहले कैग को तब मिली जब झारखंड के कुछ इलाकों से लोगों की भुखमरी की घटना प्रकाश में आने लगी। पता चला है कि आधार कार्ड से देश के तकरीबन 765.30 मिलियन लोगों ने अपने राशन कार्ड को लिंक करा रखा है। समय पड़ने पर उनका डेटाबेस आधार से मेल नहीं खाता जिससे उन्हें राशन नहीं दिया जा सका। ऐसे लोग आज भुखमरी के शिकार हो रहे हैं। इसके अलावा देश के तकरीबन 280 मिलियन लोगों ने रसोई गैस के लिए अपने आधार नंबर को लिंक कराया है। राशन और रसोई गैस के अलावा 788 मिलियन भारतीयों का बैंक खाता भी अब आधार नंबर से जुड़ गया है।

ऐसे में जाहिर है कि यदि समय पर किसी का डेटाबेस मेल नहीं खाए तो उसे तमाम सुविधाओं से महरूम होना पड़ेगा। इसी संकट की ओर से मूडीज ने भी इशारा किया है। मूडीज नामक संस्था का यह मानना है कि भारत जैसे देश में जहां की आबोहवा एक जैसी नहीं है-वहां आधार कार्ड के जरिए लोगों को जरूरी सेवाएं प्रदान करना कठिन काम है। उनका मानना है कि मौसम की गड़बड़ी के कारण भी आदमी के शरीर में होने वाले बदलाव कभी-कभी इलेक्ट्रानिक यंत्रों की पकड़ से बाहर चले जाते हैं।

आधार की गुणवत्ता पर सवाल

ऐसे में भारत के उन लोगों के लिए कोई दूसरी व्यवस्था करने की जरूरतों पर बल देने की सलाह दी जा रही है, जिन्हें सरकारी मदद की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। अब चूंकि कैग के अलावा कई दूसरे संगठनों की ओर से भी आधार की गुणवत्ता पर सवाल खड़े होने लगे हैं लिहाजा सरकार को चाहिए कि जरूरतमंद लोगों के लिए शीघ्र कोई वैकल्पिक राह तलाशे। यदि इसमें देर हुई तो आम भारतीयों के लिए आधार भी निराधार ही साबित होगा तथा देश में एक अजीबोगरीब माहौल तैयार हो जाएगा।